शुक्रवार, 29 अगस्त 2014

कब तक तूं झूठे फ़साने लिखोगे...


कब  तक   तूं  झूठे  फ़साने  लिखोगे
मोहब्बत  के   झूठे   बहाने  लिखोगे- 

मांगी   दुआ    दर -  दीवारों  से  तेरी  
समझ,नाससमझ तूं दीवाने लिखोगे -

जला जिनका जीवन बचाने में तुमको 
उन्हें  आशिक जूनूनी परवाने लिखोगे -


करोगे   फरेबी  , फरेबों     की    बातें 
कहीं  का  कहीं  तुम ठिकाने लिखोगे -

परिंदों  के  मानिंद  ठहरोगे  तब तक 
जब आएगा पतझड़ कहीं जा बसोगे - 


 उदय वीर सिंह 

                       


रविवार, 24 अगस्त 2014

दर्दों के बोझ में ..


दर्दों  के बोझ में  इजाफ़ा    कीजिये
अस्मिता के मोल पर मुनाफ़ा कीजिये -

आशाओं  के  पंख  पर सपने  संवारे हैं
किया  एतबार , झूठा  वादा  कीजिये -

भरोषे  की  ईंट  से  ईमारत  बनायी है
स्वागत  है आप  का बहाना कीजिये-

खुशियों में  आप  की  निसारेंगे  जिंदगी
भले मेरे गम में आप ,साझा   कीजिये -

                                      - उदय वीर सिंह
  

गुरुवार, 21 अगस्त 2014

याद आये बहुत ....

याद  आये  बहुत ,गुम शिकायत हुई
एक पल  में  हजारों , सदी जी लिया -
कहने को तो दिलवर से बातें बहुत थीं
दिलवर  की सुनीं अपने लब सी लिया -

एक नदी थी रही जूझती पत्थरों संग
अब  दिल  के  दयारों में  घर ले लिया -

समंदर  में  रहकर   भी  प्यासा  रहा
देकर अमृत किसी को जहर पी लिया-

                                                -   उदय वीर सिंह

Photo: याद आये बहुत ,गुम शिकायत हुई 
एक  पल में हजारों सदी जी लिया -

कहने को तो दिलवर से बातें बहुत थीं 
दिलवर की सुनीं अपने लब सी लिया -

एक नदी थी रही जूझती पत्थरों संग 
अब दिल के दयारों   में घर ले  लिया -

समंदर   में रहकर  भी  प्यासा  रहा 
देकर अमृत किसी को जहर पी लिया-

उदय वीर सिंह

रविवार, 17 अगस्त 2014

इश्क की रहमत मिली -


इश्क की रहमत मिली वो 
आँखों का  तारा  हो गया -

बख्स दी जींद मांग ली कुछ  
उलफत में गुजारा हो गया -

डूबा  सूरज जब  किसी का 
अधेरा भी  सहारा  हो गया -

दम  यौमें - सिकंदर डूबता है 
दीये   का   उजारा   रह गया-

मांगी जो  उलफत दर - बदर 
वो   पीरे - मुकद्दर   हो   गया -

               - उदय वीर सिंह  




शुक्रवार, 15 अगस्त 2014

एक बार फिर हम आजाद ....


दौर-ए-आजादी आ
एक बार फिर हम आजाद
होने की कोशिश करें ....
सितमगर चले गए
सितम उनका रह गया ....
संपन्न भारत टुर गया 
बिपन्न भारत रह गया .....
योजनाओं, बयानों, वादों का हिमालय बढ़ता गया
पेट भूखा रह गया.....
अस्मिता भयभीत ,कांपते कदम ,मुश्किल इंसाफ
मजलूमों का सफीना
डूबता रह गया ......
सहर तो हुई ,तेजाबी बारिस में भींगते रह गए
नंगा बदन. वही पीपल का
आशियाना रह गया ....
जाति जमात मजहबों के खिलाडी मशगूल हैं खेल में
कद उनका ऊँचा हुआ
हिंदुस्तान बौना रह गया ...
पत्थरों के शहर ,महलों में रौशनी आई
अंधेरों में हिंदुस्तान का
कोना- कोना रह गया......
शिक्षा, सुरक्षा, समता, सुराज की बिना पर
मुक़र्रर हुईं कुर्बानियां उनकी,
पहरेदारी में जिसके देश था
बेखबर सोता रह गया -

- उदय वीर सिंह
Photo: दौर-ए-आजादी आ 
एक बार फिर हम आजाद 
होने की कोशिश करें ....
सितमगर चले गए 
सितम उनका रह गया ....
संपन्न भारत टुर गया 
बिपन्न भारत रह गया .....
योजनाओं, बयानों, वादों का हिमालय बढ़ता गया 
पेट भूखा रह गया..... 
अस्मिता भयभीत ,कांपते कदम ,मुश्किल इंसाफ 
मजलूमों का सफीना 
डूबता रह गया ......
सहर तो हुई ,तेजाबी बारिस में भींगते रह गए 
नंगा बदन. वही पीपल का 
आशियाना रह गया ....
जाति जमात मजहबों के खिलाडी मशगूल हैं खेल में 
कद उनका ऊँचा हुआ 
हिंदुस्तान बौना रह गया ...
पत्थरों के शहर ,महलों में रौशनी आई 
अंधेरों में हिंदुस्तान का
कोना- कोना रह गया......
शिक्षा, सुरक्षा, समता, सुराज की बिना पर 
मुक़र्रर हुईं कुर्बानियां उनकी, 
पहरेदारी में जिसके देश था 
बेखबर सोता रह गया -

                           -  उदय वीर सिंह

हमनवा हमदर्द हैं -


नौजवानों हमवतन हम
हमनवा , हमदर्द हैं -
दमवतन की शान हैं हम
हमकदम हमफर्ज हैं -
मेरा मक्का, मदीना मेरा
मेरा काशी , काबा यहीं -
निभाएंगे हम साथ इसका
हाथ मेरे कमजर्फ हैं -
इसकी मिट्टी, पवन, पानी
मेरे जीवन ,मेरे कफ़न -
ये जान भी अहलेवतन की
ना हम कभी खुदगर्ज हैं -

                      -  उदय वीर सिंह

बुधवार, 13 अगस्त 2014

लौट आने के बाद ....

लौट आने के बाद ....

न थी मेरी सिफारिश न पैरोकार कोई
जश्न ख़त्म होने के बाद मैं याद आया -

इंतजार में था मैं, सुबह से कतार में 

लौट आने के बाद ,मेरा  नाम आया-

ग़मों के पैरहन में मैं उन्हें अच्छा लगा
उम्दा - खयाली का मुझे इनाम आया -

मेरी गुरबती पर हंसी अच्छी लगती है
माँगा था पानी,मगर हाथ में जाम आया -



                            -  उदय वीर सिंह 



मंगलवार, 12 अगस्त 2014

नयी सोच की बस्तियां.....

तेरा अस्तित्व किसी व्यवस्था से नहीं,
व्यवस्था तुमसे है अहसास तो कर -

कैद है तमाम जिंदगी जुल्मों सितम की जेल 
साजिशों से उन्हें आजाद तो कर-

बन एक चिराग के जलने की वजह कामिल 
परवानों के जलने की परवाह न कर-

उजड़ कर ही बसी हैं वो उनकी फितरत है 
नयी सोच की बस्तियां आबाद तो कर -

- उदय वीर सिंह

गुरुवार, 7 अगस्त 2014

मुझे मौन रहने दो -


Photo: न बनो मेरी वेदना के स्वर 
मुझे मौन रहने दो -
खामोशियों में तेरे शब्द गूंजते हैं 
निहितार्थ सुनने दो -
तुम्हें जरुरत होगी अक्षय पियूष की 
मुझे गरल पिने दो -
पीड़ा बन गयी है मेरी पैरहन उदय 
उन्हीं के साथ रहने दो -
आज खाली है दामन उसकी उलफत से 
यादों के संग रो लेने दो  -
मुझे बहुत रंज है अपनी नाफरमानी का 
उसे कहने दो मुझे सुनने दो -

                       -  उदय वीर सिंह
न बनो मेरी वेदना के स्वर
मुझे मौन रहने दो -
खामोशियों में तेरे शब्द गूंजते हैं
निहितार्थ सुनने दो -
तुम्हें जरुरत होगी अक्षय पियूष की
मुझे गरल पिने दो -
पीड़ा बन गयी है मेरी पैरहन उदय
उन्हीं के साथ रहने दो -
आज खाली है दामन उसकी उलफत से
यादों के संग रो लेने दो -
मुझे बहुत रंज है अपनी नाफरमानी का
उसे कहने दो मुझे सुनने दो -

- उदय वीर सिंह

सोमवार, 4 अगस्त 2014

कवि - तुलसी की शाला देखी -



**** 
नील -गगन के स्मृति - वन में 
कवि - तुलसी  की  शाला देखी -
मैथिली शरण की काव्य मंजरी
जनमानस कर रस-हाला देखी -
नक्षत्र - द्वय  का प्रकाश- पर्व 
आलोकित  काव्य - धरा  देखी -
काव्य- धरा के साधक -जन के 
हाथों  जपते   में   माला   देखी-

                           - उदय वीर सिंह  



शनिवार, 2 अगस्त 2014

तुम होगे न हम होंगे -


जब   तक   किसी   के  आंसू 
किसी की ख़ुशी के सबब होंगे -
चाटुकार  तो  रहेंगे  अदब  में 
गैरतमंद हमेशा बे-अदब होंगे -

जब  लिखी  जाएगी  ख़ुदक़शी, 

किसी  वतनपरस्त  की कुर्बानी  
यकीनन मौकापरस्तों की शान 
गद्दारों  के  कायम  हरम  होंगे- 

साबित हो जायेगा तेरा जूनून वाजिब

और तेरी जिद का चिराग भी जले ,
तूफां देगा न एक पल भी संभलने को
सैलाबों में न तुम होगे न हम होंगे -

  -   उदय वीर सिंह