गुरुवार, 31 जनवरी 2013

मुझे दवा देगा-

हमकदम !
फ़सानों ने दी है  इतनी  शोहरत ,
कि चाहता हूँ कुछ बाँट दूँ तुमको......
 
मुझे दवा देगा-
***
दर्द      मेरा  ,   मुझे     दवा    देगा
दरम्यां   शोलों     के    हवा    देगा-

हांथों  पे  ईमारत, खड़ी  नहीं  होती  ,

हाथों  से   ताजमहल    बना   देगा-

दिल  में  क्या छिपा हुआ  है  मंजर

वक्त     आने     पर ,   बता     देगा-

तूफां  के  काफिलों से  बेखबर नहीं

आशियाना   समंदर  को बना लेगा -

पास जिसके दिल  नहीं, दौलत रही

वो   गरीब   किसी   को   क्या  देगा-

मेरे रोने  की  अदा  तुम्हें  हंसाएंगी,

मत आना पास मेरे तुम्हें रुला देगा-

                                 - उदय  वीर सिंह  

                     


सोमवार, 28 जनवरी 2013

तेरे आईने में
















हसरत   से   तेरे  आईने   में  देखा  
मेरा     चेहरा    ही   नजर    आया-

जिसको    तू   अपना   कहता   था
तेरा   साया    भी    गैरहाजिर   था ,
हुजूम  था   अपना   कहने  के लिए
तुझे  अकेला  शमशान  छोड़ आया
 
क्यूँ  रोता  है  बेजार ,दगाबाजी  पर
तुम    भी     तो    दोगे    एक   दिन ,
बिन   बताये , बिन  पयाम  मितरां
रुखसत    कर   जायेगा  एक   दिन-

तेरी  दोस्ती  से,तेरी  दुश्मनी बेहतर
मेरी  आँखों  में तेरे ख्वाब तो न होंगे,
मुन्तजिर न  होंगे किसी  कि राह में
किसी के आने के इंतजार तो न होंगें -

मुकद्दर  लिखने  का  दम भरने वाले
तू    भी    मुकद्दर   का   तलबगार है ,
चार   कंधे,  कफ़न   दो  गज  जमीन
का मिलना  भी  मुकद्दर  की बात  है-

दिलों   की   तंगदिली   का  आलम है
कि   टूट   जाते    हैं , बिखर  जाते  हैं
अरे   दिल   क्या   हुआ खुदा  हो गया
खुदा   भी   रुठते  हैं ,  मान   जाते  है-

                                  -  उदय वीर सिंह 





गुरुवार, 24 जनवरी 2013

भारत हमारा



शीर्ष  संवेदनाओं   का   भारत   हमारा 
फूलों   का    आंचल ,  अंगारे    न   देंगें-
वीथियों   में   बसंती  बहारों  का  मेला
पतझड़   को  उपवन  में  आने   न  देंगें -

यश- प्रभा मंजरी शांति सुख का सवेरा 
प्रीत  की  रीति का ही सृजन मांगता है 
वेदना  के   प्रवाहों  में बहता है फिर भी
मानस    में    प्रज्ञा    प्रखर   बांटता   है-

शांति - एका  का संदेश - वाहक रहा  है 
शांति  का  पुंज धरती से मिटने  न देंगें-
   
शौर्य  का ,धैर्य  का , सौम्य  का  रूप  है 
इसकी धरती  पर ईश्वर के पग आते हैं
सभ्यताओं का घर प्रेम  की  पाठशाला
दिया   जो   वचन   वो   अमर   होते  हैं-  
     
आग  विद्वेष   की  जो  जलाई  किसी ने 
हृदय   में   है   सागर   दहकने   न   देंगे-

                                 -उदय वीर सिंह  

मंगलवार, 22 जनवरी 2013

ख्वाबों में तुम थे...


सजाई  पलक  थी  करीने  से  हमने

छलक  गए   हंजू   बताऊँ   मैं  कैसे -

इरादों  में  तुम  थे  ख्वाबों में तुम थे

टुर  गए  दिल  से  बताऊँ   मैं   कैसे -

छाया भी थे तुम सरमाया भी तुम थे 

बिखर  गए   ऐसे   बताऊँ   मैं   कैसे-

तेरी  यादों  के  धागे दरख्तों  से बांधे 

निकले कमजोर इतनेबताऊँ मै कैसे

सुनीआँखों में आहट की आशाभरी है
कितनी विरानगी  है बताऊँ मैं  कैसे-

जो निकले तो ऐसे कि मुड़ के न देखे
समाये  क्षितिज  में  उठाउं  मैं  कैसे- 


 

                            -  उदय वीर सिंह

रविवार, 20 जनवरी 2013

मुक्तसर न हुई उल्फत....

















                         अफसाने न रहे तुम्हें सुनाने  के  लिए 

                                   बेगाने ही रहे दर्द मेरे ज़माने  के  लिए - 

                        जख्म रिसते रहे, मिलती  रही  ठोकर  

                                    न मिला नकाब इन्हें  छिपाने के लिए  -

                         मुक्तसर न हुई उल्फत अपनों  के  लिए  

                                    जिया भी अगर  हूँ  तो बेगानों  के लिए  -

                         कहना    नहीं   माकूल   बेवफा   मैं  हूँ  

                                     पूछो   मैखाने   पड़े  हैं , बताने के  लिए  -
   
                         तोलेगी  ये  दुनियां  तेरा  वजन  कितना
                                    ये हमदर्दी  का आलम है दिखाने के लिए -

                        संगमरमरी  पांव  हैं  ,बेदिल  है  कूंचे  में 

                                     दो कदम भी मुश्किल साथ आने  के लिए-

                                      -  उदय वीर सिंह   


गुरुवार, 17 जनवरी 2013

फिजां कह रही है ....


फिजां  कह  रही  है, देख !  कैसे  वक्त
करवट  ले   रहा  है
ब्रह्मवेत्ता , छद्म - वेत्ता  की  राह  में ,
ज्ञानी   कर   वसूल   रहा  है-
सन्यासी  धर्म  की  आड़ में  कितनी
संजीदगी से छल रहा है  -
तोता  बांचता   इन्सान  का  भाग्य
ज्योतिषी  सो  रहा है-
तक़दीर  बन  गयी  है  आवारा  बादल
कर्म उपेक्षित  रो  रहा  है -
तिलस्म पर कब कायम जिंदगी का वजूद
यथार्थ से मुख मोड़ रहा है-
शांति  का  वाचक ,बारूद  की  गोंद में
अंगारे  बो   रहा  है -
विडम्बना  है -
ढोर डंगरों सा समाज,आज भी शालीनता से
इनका बोझ ढो  रहा  है -

                                            -उदय वीर सिंह


मंगलवार, 15 जनवरी 2013

बात करता है .....|


बात करता है -

मांगता है दुआ अपने लिए 
दूसरों को बद्दुआयें खैरात करता है -
जलता है शोलों की तरह दिल जिसका 
शबनमी शुरुआत करता है- 
जलाया न कभी अमन का दीया घर में,
मजलिस में रौशनी इफरात रखता है-
मगरूर इतना है  सुनामी  की तरह
आबाद चमन को बर्बाद करता है - 
एक दिन पूछ लिया उससे अमन का रास्ता ,
हँस कर कहा बावले !
किसकी बात करता है -
सीख जीने का दस्तूर हूजुर ! 
हरिश्चन्द्र ,धर्मात्मा मरते हैं भूखे, 
जा पकड़ अपनी राह!
क्यूँ दिन ख़राब  करता है -
बात करता है .....|

                      उदय वीर सिंह 


                 


                     

                                 


  

  

रविवार, 13 जनवरी 2013

अब धियाँ दी लोड़ी .....|



अब धियाँ  दी लोड़ी .....|

लोड़ी [लोहड़ी]  की  मेरे हमवतन ,
हमदर्दों को लख - लख बधाईयाँ जी !
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खुशियों  की  रंगत  कभी  कम  न हो 
कुछ हम गाते हैं ,कुछ  सुनाओ  मुझे ,
मेरी समिधा,तुम्हारी भी मिल के जले 
हर  बला  कह  उठे  कि  जलाओ मुझे-
*
रंग  लोई   का  फीका  नहीं, सुर्ख  हो,
हर मुकद्दर का दर पाए  इतनी ख़ुशी 
बेटी   मांगती   है   लोड़ी   में   बलैयाँ    
भैया  की   ख़ुशी  में  है  अपनी  ख़ुशी-

हसरत  में  उसकी कहीं कुछ छिपा है 
कुछ  हमसे  सुनो  कुछ  बताओ मुझे -

नवाजा  है जिसने  सिर पर ताज  को ,
हर   नजर  से बचाने   का हरकारा  है 
गाली   में   मुहब्बत    की   चासनी है ,
वीर का  देखा  दुःख तो जीवन वारा है 

युगों   तक   रहे  चंबा  लोड़ी   दा माये  
अब   धियाँ   दी   लोड़ी  जलाओ  कदे- 

                                    - उदय वीर सिंह 

मत बांच आदर्श की पाती को ..

मत बांच  आदर्श की पाती को 
जब  चलने  का  संकल्प न हो -
विस्थापित  कर  दो भाषा  को 
शब्दों   का   जब   अर्थ   न  हो-
*
प्रणय   भाव    का   अवगाहन 
प्रमुदित   उर   संचय    करता ,
लालित्यश्रृंगार,सौम्य संवेदन 
भर  नेह  नयन अर्पित  करता -

अभिलाषा पुष्पित हो मन  की 
परिमल  प्रसून  की व्यर्थ न हो-
*
वंचित करता हो  स्नेह, सृजन 
मंगल ,  अभिष्ट  सम  भावों से
उस पथ को तज, अवरुद्ध  करो 
वो  दंश  न  दे  फिर   पांवों को-

निष्ठा  अर्पण  प्रेम  की गलियां 
घन   बरसे  तो   अल्प   न हो  -
*
वाणी में मधुरिम अमिय प्रवाह
जब   भेद    रहा    हो   अंतर्मन 
विषपान का कारण सृजित करे
निर्भय  विद्रोह  का  करो  वरण-

मिटना  तो  अंतिम   रचना  है 
जीवन का जब  विकल्प  न हो-


शूल   प्रलाप   कर    रहा   मंच  
दंश    फूलों    को    देने    वाला 
मत   आह  करो  सह  लो पीड़ा 
कह  रहा  वाचाल  ठगने  वाला -

हों  अदृश्य  कामी   वंचक  जन 

पृथ्वी   पर  इनका  कल्प न हो - 



                                  -उदय वीर सिंह 


   

   

बुधवार, 9 जनवरी 2013

जीने नहीं देता--


जीने  नहीं देता-


दौर - ए - आवारापन जीने  नहीं देता,

खुले  हैं जख्म  इतने , सीने नहीं देता-

परायी सी  हो गयी है सौगात जिंदगी ,

चाहते  हैं  पीना गम,  पीने  नहीं देता-

कलियों  की   बेबसी  दोजख कबूल है

जालिम  है जमाना  खिलने नहीं देता-

बेबसी  है सितम सहकर भी जीने की

बसा  है   दर्द  आँखों में ,रोने नहीं देता-

तमगे  भी  मुफलिसी   के  यार  न  हुए 
संगदिल हैं ये जमाना बिकने नहीं देता -
  
                                       -उदय वीर सिंह  




रविवार, 6 जनवरी 2013

मुझे सतनाम देना ,


नामवाले , ऊँची  शान, मुझे  सतनाम  देना ,
एक भुला  मुसाफिर हूँ,  मुझे  मुकाम  देना -
*
मुकद्दर में खाक दे  दे ,शिकायत  नहीं  मुझे
होठों  पर   मेरे  मालिक , अपना  नाम देना -
*
माना   की  नामुराद , मेरी  तरह  नहीं  कोई
आया  हूँ   तेरे   दर  पे , मेरा  सलाम   लेना -
*
हसरत है  तेरे  दर  की, फासले  हैं दरमियाँ ,
गिर  पड़ें  की  उससे पहले ,हाथ  थाम लेना-  
*
वन्दगी ही मेरी दौलत,तख्तो ताज तेरी दया
पाओगे सरफ़रोश सदा,जब भी फरमान देना-
*
पनाही  में   तेरी   बसर  हो,  ख्वाब   है  मेरा  
तेरी    राह   में   निगाहें  मुझे    पयाम   देना-  

                                        - उदय वीर सिंह  

शनिवार, 5 जनवरी 2013

आपे गुरु चेला ...


वाहे गुरु जी दा  खालसा,
                    वाहे गुरु जी दी फ़तेह .. |
 दसवें सिक्ख गुरु , श्री गुरु गोबिंद सिंह जी महाराज के पावन प्रकाश पर्व पर समस्त पृथ्वी वासियों को लख-लख  बधाईयाँ ,स्नेह व सत्कार ...... |
  वाह! वाह! गोबिंद सिंह ,आपे गुरु चेला ...
जोर जुल्म  की दुनियां का विनासक ,मानुष की जाति सब एकै पछानाबो, का वाचक .देश धर्म  के निहितार्थ सर्वस्व न्योछावर  करने वाला ,'शहंशाहों  का शहंशाह ,
तेरे भाणे सरबत दा भला'  का भाव बख्सने वाला अप्रतिम बलिदान को संचरित करनेवाला, कलगीधर पातसाह यूँ आह्वाहन  करते हैं -
"जो तो प्रेम खेलन का चावो,
सिर धर तली गली मेरे आवो " 
जे मार्ग पैर धरीजै,  शीश  दीजै कान न कीजै -  
 बोले सो निहाल ,सत श्री अकाल......
आपजी की शान में मैं याचक! कुछ दे नहीं सकता सिवा मांगने के | दाते ! मुझ दास  को  अपनी दात बख्सना,तेरी राह में अडोल रहूँ ..... 
****
पीर  मेरे ,  तेरे  दर   पे  दाखिल  हुआ  
अपने  घर  का  मुझे,  आसरा  दीजिये  -

मौत  को  जिंदगी  का  सफ़र  दे  दिया ,
मेरे  मालिक  मुझे  भी  दया  दीजिये -

दात  बरसी  कि उजड़ा चमन बस गया , 
मुसाफिर  हूँ    भूला ,  रास्ता  दीजिये -

तेरे  पाहुल को  तरसे  हैं कितने  जनम  
मुकद्दर   में   जिसको   था   पाया  वही  -

तेरे  कदमों   में   बसती है  दुनियां  मेरी  
गिरा    हूँ   शरण   में    उठा    लीजिये -

                              - उदय वीर सिंह 

बुधवार, 2 जनवरी 2013

दिल में आग क्यों है ......


आज सर्द  दिल में  आग क्यों है ,
जो गुनाहगार था बेदाग क्यों है
गर्व  के  माथे  पर  बिंदिया  थी,
बेशर्मी  का काला दाग  क्यों  है -

उजाड़ा घर, हँसता  हुआ  चमन
उसकी  दुनियां  आबाद  क्यों है,
लगायी पूंजी इंसानियत के हाट
दुनियां  उसकी  बर्बाद   क्यों  है-

होते   थे   सुर्ख   गुलाब  के  फूल
आस्तीन  में  काला नाग क्यों है
जिस चेहरे  का  नूर, आईना था
आज  उस   पर   नकाब  क्यों  है-

देखा नहीं दर्दो यतीम की दुनियां
हमनावाजी  का  ख़िताब क्यों है ,
नींद  न  आई  हो मुद्दतों से उदय
उन   आँखों   में   ख्वाब   क्यों  है -


                            -उदय वीर सिंह 



 


मंगलवार, 1 जनवरी 2013




मंगल प्रभात मित्रों !
      अनंत खुशियों, नयी आशाओं,संवेदनाओं का वाहक हो,
                          मंगलमय हो,  नूतन  वर्ष ..2013 .

     नवल  भोर, नव दिवस के अंक में एक नयी सुबह का आगाज ले, 
तमाम हसरतों  स्वप्नों  संवेदनाओं ,जो आकर नहीं ले सके ,साकार
करने ,सुरमई धरातल  की ओर अभिसरित है ,खुले  हृदय से ,आओ
सम्मान सुस्वागतम करें .........अनंत  सार्थक प्रयासों को आयाम दें|
*****  
नव    वर्ष ,  नवल   प्रभात, 
नव  रश्मियाँ ,नवल आश,
विस्वास नूतन ,नव स्वांस
अभिसरित   हो रहा नवल 
भोर,   कंठ   ले   नव  गान,
विस्मृत   कर  स्मृतियों से
स्याह   रातें  , दग्ध  दिवस 
फूटे कोमल किसलय प्रसून
पुष्पितहो मानवता, फले मान...

                      उदय वीर सिंह