रविवार, 29 अक्तूबर 2017

पीड़ा मांग रही संवेदन

रोए कौन किसकी अर्थी पर
तन जिंदा मन मरे हुए
पीड़ा मांग रही संवेदन
जिंदा भी जीवन हार गए -
चौड़ी हुई विद्वेष की ड्योढ़ी
सँकरे मंदिर द्वार हुए
स्नेह सृजन शमशान गए
दस्यु लंबरदार हुए -
उलझ गए सुलझाने वाले
आँखों के आँसू सूख गए
घात प्रतिघात में कर उलझे
बंद प्रगति के द्वार हुए -
कौन जगाए जाग्रत को
निद्रा का ढोंग रचा सोया
सुलग रही है भूख की ज्वाला
कहीं शोक मंगलाचार हुए -
उदय वीर सिंह



शनिवार, 21 अक्तूबर 2017

पुरुषार्थ होना चाहिए -

भक्ति का भावार्थ होना चाहिए
कर्म है वांछित निरंतर
निहितार्थ होना चाहिए -
विकल्पहीनता में युद्ध वांछित
सत्यार्थ होना चाहिए -
दंड भी स्वीकार्य अंतस
न्यायार्थ होना चाहिए -
रक्षित रहेगी अस्मिता
पुरुषार्थ होना चाहिए -

उदय वीर सिंह

शुक्रवार, 20 अक्तूबर 2017

दीये जलते हैं उजालों के लिए

दीये जलते हैं उजालों के लिए
बुझते हैं उजाला देकर
दीये जलते हैं प्रतीक्षा पथ में
बुझते हैं निवाला देकर -
दीये जलते हैं शाला समाधि पर भी
बुझते हैं साधक को शिवाला देकर -
दीये जलते हैं उत्सव और वेदन दोनों
बुझते हैं तूफान से मुक़ाबला लेकर
हम जलते हैं देख उंची पगड़ी
नुझते हैं विष का प्याला देकर -
उदय वीर सिंह




रविवार, 8 अक्तूबर 2017

पाँवों के निशान रास्ता देंगे

fमुझे दिल में ही रहने दो ताज बनाओ
देकर आंसूओ का मोहताज न बनाओ -
पीपल की छांव भी मुस्कराती है जींद
सल्तनत शाहजहाँ हसरत मुमताज़ बनाओ -
बेकस की बैसाखी बन जाऊ ख्शी होगी
मुझे जुल्मो सितम की आवाज बनाओ
मिलकर गले पोंछ लूँ आँसू कातर नयनों के
देकर दूरियाँ जमीन से आकाश बनाओ- -
आँखें देख लेती है आसमा को जमीन से
पाँवों के निशान रास्ता देंगे परवाज़ बनाओ

उदय वीर सिंह