शनिवार, 26 अगस्त 2017

सिर्फ गर्दन हमारी है -

मुशिफ भी तुम्हारा है वजीर भी तुम्हारा है
शमशीर भी तुम्हारी है सिर्फ गर्दन हमारी है -
खेल भी तुम्हारा है खिलाड़ी भी तुम्हारे हैं
पत्ते भी तुम्हारे हैं सिर्फ हार ही हमारी है -
मुल्क भी हमारा है ये मिट्टी भी हमारी है
अमन के सिपाही हैं ये किस्मत तुम्हारी है

उदय वीर सिंह       

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शुक्रवार, 18 अगस्त 2017

खाई गरीब घर रोटी गरीब जैसा हो गए


खाई गरीब घर रोटी गरीब जैसा हो गए
छिड़क लिया गंगा जल पहले जैसा हो गए -
देख गरीब को आँखों मेंआँसू बहे टूटकर
शर्मिंदा हुआ घड़ियाल जा मरा कही डूबकर
गरीब की बेटी के सिर रखाआशीष भरा हाथ 
होकर कलंकिनी मर गई ट्रेन के नीचे कूदकर -
गिरगिटों की तरह भेष बदलने का हुनर है
बहुरूपिये भी न जाते उनके डगर भूलकर -
अवतारी हैं देवों देवदूतों के हर मर्ज की दावा हैं
चमत्कार है सूखी नदी पार कर लेते हैं तैरकर -
नापसंद है हर चेहरा उनके चेहरे को छोड़कर
फिर भीओढ़ मुखौटा बदले भेष उनके जैसा हो गए

उदय वीर सिंह



मंगलवार, 15 अगस्त 2017

वतन आजाद है कुर्बानियों के बाद

ये सच है की गुलामी मिली बड़ी नादानियों के बाद 
वतन आजाद हुआ है बड़ी कुर्बानियों  के  बाद
सत्ता मद पक्षपात मोह में जब जब  डूबा सिंहासन 
सदियों बस न पाया ये चमन उजड़ जाने के बाद 
धर्म राजनीति के नक्कारों में टूटा समाज टूटी एका
वो आज भी मिल न पाए हैं बिछड़ जाने बाद -
शहीदी की राह कदम जाने के हैं वापसी के नहीं  मिलते 
वतन आबाद रहेगा उन निशानियों पर चलने  के बाद -

उदय वीर सिंह 

मासूम मौत

B RD मेडिकल कालेज गोरखपुर में असमय काल कवलित हुए नौनिहालों को अश्रुपूरित श्रद्धांजलि उनकी की आत्मा को ईश्वर शांति दे । रब परिजनों को असीम वेदना सहन करने की सामर्थ्य दे ।
हजहब जाति संप्रदाय क्षेत्र नहीं जीवन का नाश हुआ है राजनीतिक आंकड़ेबाजी नहीं आरोप प्रत्यारोप नहीं, व्यवस्था व समस्या के निदान की अनिवार्यता है । कुआं खोदकर पानी पीने की सलाह की जगह तत्काल जल की आवश्यकता है । सलाह देने वालों कभी पीड़ित परिवारों की जगह खड़ा होकर देखो बुझे चिराग, सुनी हुई गोंद॰ विलुप्त हुई किलकारी का दर्द क्या होता है ....शायद दर्द समझ में आ सके । नैतिकता अनैतिकता शायद राजनीति का विषय न हो परंतु स्वस्थ देश व समाज के लिए आवश्यक तत्व जरूर है जिसे हम कही खो रहे हैं ।
संवेदना मर गई तो त्राशदी ही हाथ आएगी
आज सत्ता की जंग है कल मौत मुस्कराएगी
उदय वीर सिह

शनिवार, 12 अगस्त 2017

मरना मेरे नसीब में जीना तेरे नसीब में है -

दोस्तों इसे किसी जाती जिंदगी या तंजीम से मत जोड़ देखना -
इसे ईत्तेफाक कहें या साजिश वीर
मरना मेरे नसीब में जीना तेरे नसीब में है -
ले इंसानियत की चादर अमन की बात करता हूँ 
मेरा नाम सबसे उपर सतरे रकीब में है
धो लेता हूँ घाव आंसुओ से सब्र से सील कर
इत्तेफाक है या साजिश मेरी गर्दन करीब में है
मैं बंधा हूँ कर्तव्य शपथ संस्कारों की गांठ
तूँ मुकर के भी ऊपर सतरे रफीक में है -
फाँकों में बसर होता है रखा अमीरों की सूची में
शाही जिंदगी का मालिक तूँ सतरे गरीब में है -
उदयवीर सिंह

सोमवार, 7 अगस्त 2017

8 अगस्त 1945 [ हिरोशिमा ]

8 अगस्त 1945 [ हिरोशिमा ]
मनुष्यता के समग्र विनाश का एक अक्षम्य कदम !
परमाणु बम विस्फोट हिरोशिमा में मारे गए लोगों को विनम्र श्रद्धांजलि पीड़ितों से अनन्य सहानुभूति ....
परमाणु बम का प्रथम नगरीय विस्फोट जिसमे मनुष्यता के खुले नरसंहार का विद्रुप प्रदर्शन था जिसमें मनुष्य मात्र नहीं मनुष्यता और संवेदना मरी।
उपनिवेशवाद व उसके प्रसार की अतिमहत्वाकांक्षा मनुष्यता से ऊपर होने का मद कारक बने । 
दुर्भाग्य है मनुष्यता देशों की तथाकथित सुरक्षा ग्रंथि से इतर हो गई है । मनुष्यता जहां मानव विध्वंस के हथियाओं की मुखालफत कर रही है ,वही देशों की लोलुपता अहंकार ग्रंथि ,तथाकथित श्रेष्ठता इसकी वकालत कर रही है ।
राष्ट्रीय अंतराष्ट्रीय बुद्धजीवी अवगत हैं इसके परिणामों से पर कदाचित असमर्थ हैं या उनकी मौन स्वीकृति यह रहस्य का विषय बन गया है ।
आवश्यकता है इन मानव विनाशक घातक हथियारों के निर्माण व प्रयोग पर पूर्णतया प्रतिबन्ध की । वरना जीवनविहीन हो जाएगी ये प्यारी धरती ।
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मिट गई मनुष्यता मनुष्य न रहेंगे
कब्रें तलाशेंगी हमदर्द कोई -
सोया मिलेगा हाथ धर चलने वाला
मुंतजिर न होगे खुले नैन कोई -
करने को सिजदा सिर न मिलेंगे
खंजर तो होंगे सिकंदर न कोई -
उदय वीर सिंह

रविवार, 6 अगस्त 2017

पनामा दस्तावेज़ रिसाव !

पढ़कर आश्चर्य ,विकलता द्वेष अद्द्भुत अविश्वसनीय अकल्पनीय नहीं लगा ।अब आदत सी हो गई है ,अब आशा प्रबल हो गई की हम आप से बेहतर कर सकते हैं - भले ही वह भ्रष्टाचार कदाचार व्यभिचार अत्याचार ही क्यों हो , आदर्शवादी नैतिकतावादी ब्रम्हचारी शाकाहारी अल्पाहारी सत्याचारी धर्म दिव्य संस्कारों के ध्वजवाहक, आदर्शों के पुरोधाओं का कत्थ्य क्या है कर्म क्या है
किस दलदल में है भारत का पुनरोत्थान कर्म .... आह पणामा ! वाह पणामा !
राजनीति, खेल, चित्र-पट, अर्थ, शिक्षा, व्यवसाय से प्रातः स्मरणीय स्वनामधन्य बुद्धजीविता,कमनीयता की वंशबेल -जड़ पनामा तक गहरी पसरी है । इसका पोषण कौन कर रहा है ? ये किसके लोग हैं कौन लोग हैं ? इनको छद्म आवरण कौन दे रहा है ? इनके पापों को प्रछन्न रूप से कौन धो रहा है ?
ज्वलंत गंभीर प्रश्न हैं .... आज भी अनुत्तरित हैं किसको सरोकार है इससे ? सरोकारी मौन हैं ।
धर्म जाति संगठन क्षेत्र प्रथम हुए देश गौड़ हो चला है शायद हम अवसरवादिता का पर्याय बनकर रहा गए है मूल्यों का जखीरा किताबों है मानवता के महाग्रंथ रोज रचे जाते हैं आदर्शों के मानदंड प्रतिमान इतने ऊंचे कि रीतिकालीन कवि महाकवि भूषण ,चन्द्रवरदाई भी छु पाएँ ....
आज हम गजलों में गीतों में मंचों प्रपंचों में वेदना तलाशते हैं
कित्रपट की सीता ,रंग-मंच का राम ,विदूषक की हंसी ,ब्र्म्हचारी का आचार चोले का रंग बेनामी संपत्ति का विमर्श अवसरनुकूल नहीं सम्यक रूप से दृश्य अदृश्य दोनों रूपों में आगणन वांछित क्यों नहीं होता ।
श्रद्धा आस्था भाव यथार्थ को वंचित करते हैं और हम इसके पोशाक हो गए सदा की तरह इसका भी विमर्श विलुप्त हो जाएगा परिभाषित कर दिया जाएगा ,एक नई परिभाषा दे
पानामा होते रहे हैं ..होते रहेगे हैं .... कभी गलती से अभेद्य- कवच कनक -कलश को कोई किट भेद देता है ,पनामा दस्तावेज़ का रिसाव हो जाता है और हम कुछ पढ़ लेते हैं ..... शायद यही हमारी नियति है

उदय वीर सिंह

बुधवार, 2 अगस्त 2017

दस्तावेज़ पनामा

वरश्रेष्ठ बता दो पनामा दस्तावेज़ रिसाव क्या है
कौन हैं इसके प्रतिभागी संबंध देश से क्या है -
आदर्शों के लंबे पोथे पढ़ते लिख रहे तकदीरों को
रह पद प्रतिष्ठा के आँगन भेद रहे प्राचीरों को -
सत्ता का गलियारा ले विष किट पल्लवित होते
पहले याचक फिर भक्षक ले विषदंत अंकुरित होते -
राजनीति के वैधव्य काल में सिंदूर पिरोते मांगों में
कटि पग में फिर बांध नूपुर ,बैठा देते हैं कोठों में -
ओढ़े चादर छिपे हुए हैं मंदिर मस्जिद गुरुद्वारों में
निश्चय अंत करो इनका जा सड़क सदन घर बारों में -
न्याय नीति के रचनाकारों शुचिता कर्म आरम्भ करो
वरना दीमक खा जाएंगे किट नाश अविलंब करो -
उदय वीर सिंह



सिर हथेली ले आओ वतन चाहिर तो

सिर हथेली ले आओ वतन चाहिर तो
हाथ शमशीर हो जो अमन चाहिए तो -
तन समिधा बनाओ समर्पित करो
 वीर सिंचो लहू से ,चमन चाहिए तो -
खूंन की हर ईबारत शहीदी लिखे
नींव बनना ही होगा सृजन चाहिए तो-
त्याग वलिदान की अक्षय पूंजी रहे
भारत भूमि में अपना जनम चाहिए तो -
गुमनाम कायर सा मरना भी क्या
ले शहीदी मरो बाँकपन चाहिए तो -
उदय वीर सिह

सिर मेरा.कटा तेरी नाइंसाफ़ियों पर

मैं निहत्था हूँ तेरे पास शमशीर है
मैं आवाम का हिस्सा तूँ बेशक वजीर है-
तूँ दौलतमंद हुकुमतदार सौदागर
फिर भी खरीद न पाए ये मेरा जमीर है -
सिर मेरा.कटा तेरी नाइंसाफ़ियों पर 
कभी झुका नहीं ये पत्थर की लकीर है -
मैं सह कर सितम भी बे-ईमान रहा
अफसोस सितमगर ही दौर का फकीर है -
तेरा बाग खून से सींच आंसुओं से धोया जाता है
ये किस्सा नहीं हकीकत है बे-नज़ीर है -

उदय वीर सिंह