याचन में गंतव्य लिए सडकों पर उतर आई है
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आये थे सुरक्षित करनेको दुर्दिन सेजीवन अपना,
दुर्दिन को बांधे पेट-पीठ,ले लौट चले टुटा सपना-
मालिक व मजदूर अबल क्यों ढेले पत्ते सा साथी हैं ?
शंसय व दुर्भाग्य नियति, क्या जीवन के
अपराधी हैं ?
छाँव ढूढ़ते बादल के ,हो विकल बरसते तापन में
कंदुक से मारे-मारे फिरते सबल राष्ट्र के आँगन में -
अनिश्चित जीवन प्रश्न-चिन्ह प्राचीर मनस में पाई है
इस
पार करोना बैठा है
,उस पार पर्वत और खाईं है -
उदय
वीर सिंह