मेरा देश,साज़िशों का, शिकारहो गया -
स्वस्थ था ,संपन्न था, बीमार हो गया -
फासले दिलों में, बेसुमार हो गए
मंजिले - मुसाफिर की राह न रही ,
इनसानियत का घर,कत्लगाह हो गया -
घूरती हैं आँखें, अजनवी हो गए हैं ,
आँगन, एक थाली विद्वेष हो गए हैं ,
प्रसाद भी प्रभु का, व्यापार हो गया -
दौरे सितम में, हमसे दूर चली गयी -
लुटा रहबरों ने ,जिनसे प्यार हो गया -
चलते हैं एक कदम, कीमत वसूलते हैं ,
बेचते थे फूल , अब मुल्क बेचते हैं-
जोर और जुल्म का बाजार हो गया -
मनीषियों का देश ,तार- तार हो गया-
उदय वीर सिंह