मंगलवार, 27 दिसंबर 2016

आदर्शों को कुचल रहे... शपथ आदर्श की लेते हैं

वो नारों पर जीते हैं
हम नारों को जीते हैं
उनके हाथों में हाला
हम आँसू को पीते हैं -
सत्ता इनका गंतव्य
सेवा का आडंबर है
आदर्शों को कुचल रहे
शपथ आदर्श की लेते हैं
याद नहीं कल के वादे
जो मंचो से कहते हैं
पूरी होगी अपनी आशा
हम आश लगाए रहते हैं -
उनकी महफिल चाँद सितारे
चूर नशे में हँसते हैं
हम बेबस चौबारे गलियाँ
ले भूख यतिमी रोते हैं -

उदय वीर सिंह


प्राचीर भेद की गिरने दो -

उत्थान पतन तो सबका है ,
आंखो को रोशन रहने दो
प्रेम दया करुणा की वीथी
वीर मानवता को बसने दो -
शांति स्नेह भर सागर छलके
रस- धार धरा से बहने दो -
मिटे धुंध विनास की बदली
प्राचीर भेद की गिरने दो -
उदय वीर सिंह

रविवार, 25 दिसंबर 2016

क्रिसमस की बधाइयाँ

[ क्रिसमस की ढेरों बधाइयाँ ,शुभकामनायें ! ]
उत्थान पतन तो सबका है ,
आंखो को रोशन रहने दो
प्रेम दया करुणा की वीथी
वीर मानवता को बसने दो -
शांति स्नेह भर सागर छलके
रस- धार धरा से बहने दो -
मिटे धुंध विनास की बदली
प्राचीर भेद की गिरने दो -


उदय वीर सिंह

शनिवार, 24 दिसंबर 2016

सोणी गुरु ,गुरु- पुत्रों की राह

सोणी गुरु ,गुरु- पुत्रों की राह 
ऐसी मरनी जो मरे ,बहुरि न मरना होए - 
 बाल अवस्था जिसमें सोचने समझने की ,निर्णय लेने की अल्प सीमा ,राजनीतिक , सामाजिक, आर्थिक सोपानों के आरंभिक निर्माण का चरण ,समान्यतः अविकसित व थोड़ा ही होता है । दूसरी तरफ परिस्थितियाँ अत्यंत प्रतिकूल परिवार दूर- दूर बिखरा हुआ, माँ ,पिता ,भाई का छूटा संग  जो फिर कभी मिलन का प्रारब्ध न बन सका । उजाला भी मिला तो पूस की असीमित कठोर शर्दी में होती वर्षा की तड़ित से जो अट्टहास कर क्षणिक प्रकाश दे पहचान कम, संत्रास अधिक दे जाती । समाज अतिशय  भयभीत मत -बिभाजित बलहीन चाहकर भी सहायता देने में असमर्थ था  मात्र उसके पास था तो वेदन भरा मौन । अप्रत्यासित  भय कुंठा और निराशा । 
आतंक अत्याचार सहने को अभिशप्त ...... अपनों के विस्वासघातों ने अत्याचारियों को बल दिया । 
  गुरु गोबिन्द सिंह के दो पुत्र साहबजादे जोरावर सिंह उम्र मात्र 9 वर्ष  और सहबजादे फतेह सिंह उम्र मात्र 6 वर्ष साथ में दादी माता गुजर कौर जी ,सूबा लाहौर के नवाब वजीर खान की कैद में जो गंगू पंडित [ गुरु घर का रसोइया था ] पद प्रतिष्ठा की लालच में गिरफ्तार कराया । 
दोनों गुरुपुत्रों का अपराध था -
 गुरु गोबिन्द सिंह का पुत्र होना तथा
धर्म से सिक्ख  । ये अक्षम्य अपराध की श्रेणी थी ।
  हथकड़ी व  बेड़ियों में कस  सेना की अभिरक्षा मे दोनों मासूम अदालत में सुनवाई हेतु चार किलोमीटर दूर ठंढे बुर्ज से जहां वो कैद कर दादी माँ के साथ रक्खे गए थे । वहाँ से  वो कई दिनों से पैदल ही लगभग घसीटते  हुए से लाये जा रहे थे ।कोई रहम नहीं , बेरहमी की पराकाष्ठा ,अदालत में आज फैसले का दिन -
मुंसिफ़ - तो तुम लोग सल्तनत के नियम और क़ानूनों से इत्तेफाक नहीं रखते ?
जोरावर सिंह और फतेह सिंह समवेत स्वरों में बोल उठे - बिलकुल  नहीं ? 
मुंसिफ़ - इस्लाम स्वीकार नहीं करना , क्या तुम दोनों का आखिरी फैसला है ?
शावक  द्वय - यकीनन हमारा आखिरी फैसला है । 
मुंसिफ़ -एक बार और सोचने का मौका देता हूँ,इस्लाम कबूल कर लो जिंदगी तुम्हारी होगी ।बख्स देंगे जिंदगी । 
तुरंत बेखौफ बुलंद आवाज में फतेह सिंह ने प्रश्न किया -
  तुम्हारा इस्लाम कबूल करने के बाद क्या फिर हम कभी मरेंगे नहीं ?
मुंसिफ़ खामोश ! कोई उत्तर न दे सका  अदालत में खामोशी थी । उपस्थित तमासबीन और सरकारी मुलाज़िम हैरान थे ... देर तक खामोशी छाई रही । 
   फिर साहबजादे फतेह सिंह की तेजश्वी स्वाभिमानी आवाज मुखर हुई । 
जब तुम्हारा इस्लाम मौत से ऊपर नहीं है , तुम्हारे इस्लाम में भी रहकर मरना ही है तो, मुझे अपने धर्म में ही रहकर मरना स्वीकार है, इस्लाम में नहीं । 
ऐसी मरनी जो मरे, फिर बहुरि न मरना होए । 
वाहे गुरु जी खालसा ! वाहे गुरु जी की फतेह ! के अप्रतिम जैकारे छोड़ कर वे अडिग निडर व आत्मबल से भरपूर थे ,समूची मानवता ही नहीं  धर्म, संस्कार, संकल्प, वचन को सास्वत जाज्वल्यमान कर दिया । भरी अदालत विस्मित थी । 
तमाम अंतर्विरोधों से भरा फैसला - दोनों सिंह शावकों को जिंदा ही दीवार में चुनवाने का हुक्म आया । हुक्म की तामीर हुई । मासूम सिंह अपने  वचन से डिगे नहीं  दीवार में जिंदा चुन दिए गए । 
ठंडी बुर्ज पर गुरु  माता गुजर कौर  ने अपने प्राण त्याग दिये । 
इसी पुस माह में एक सप्ताह के भीतर साहबजादे अजीत सिंह 17 वर्ष ,साहबजादे  जुझार सिंह उम्र  14 वर्ष चमकौर साहिब की जंग में गुरु -पिता की निजामत मे रक्षार्थ  देश, धर्म  संस्कृति वीर गति को प्राप्त हो गए । गर्व है हम उनके वारिस हैं । कोटि-2  नमन ,अश्रु पूरित विनम्र श्रद्धांजलि । 

उदय वीर सिंह 
 
 



  

गुरुवार, 22 दिसंबर 2016

जय बोल उदय दलाली की

जय बोल उदय दलाली की-
****
***
दाल गले दांव चले जब
जा छाँव उदय दलाली की-
दिल टुटा या दंश लगा 
गह पांव उदय दलाली की -
तीर कमान या तोप खरीदो 
खुली है हाट दलाली की -
मिर्च मसला कपड़ा कागज 
सब भेंट चढ़े दलाली की
जड़ जमीन का ऊँचा सौदा
जिस्म भी राह दलाली की
लभ- गुरु का सीजन चमका
बीमार भी नाव दलाली की -
अभिनेता -नेता क्या कहने 
सब रंगे हाथ दलाली की -
शिक्षा दीक्षा आंदोलन बिकता 
घर मोल - भाव दलाली की -
भूखा पेट मल्हार क्या गाये
अन्न चढ़ा भेंट दलाली की -
मंत्री , संतरी अफसर बाबू 
प्रिय पूजे चरण दलाली की -
मन उदास मन मैला कर
जा गठ्ठर बांध दलाली की
शादी का बधन चाहे तलाक 
बनती सरकार दलाली की -
उदय वीर सिंह


रविवार, 18 दिसंबर 2016

टुकड़ों में जीवन कितना ....

टुकड़ों में जीवन कितना
सिया भी करो -
प्याला भरा प्रीत का
पिया भी करो -
काँटों के दर्द से मायूस होते क्यों
खुशियों की आश में
जिया भी करो -
पत्थर न होते तो घर भी न होते वीर
शीशे रोशनी के जानिब
चुना भी करो -

उदय वीर सिंह

सोमवार, 12 दिसंबर 2016

साक्ष्य समय का मौन रहा -

अशेष, अवशेष का वाचन किया भी जाए तो कैसे और किससे ? आवरण मे ढके ईर्ष्या और आघात, स्वस्थ पृष्ठभूमि का निर्माण करने के कारक मानने का कोई कारण नहीं दिखता -
साक्ष्य समय का मौन रहा -
***
क्यों लिखते हो गीतों को
सद गाने वाला कौन रहा
जिसने देखी खून की होली
साक्ष्य समय का मौन रहा -
टूटा नभ अचला कंपित
दिग दिगंत निरपेक्ष रहे
जिसने खेली खून की होली
हर दंड न्याय से मुक्त रहा -
तर्कों और वक्तव्यों का आदर्श
अप्रतिम रत्न सा गढे गए
विप्लव विदोह द्रोह का मंडन
उर न्याय प्रतीक्षित दग्ध रहा -
कंठस्थ हुए विकृत शब्द युग्म
संवेदन सम्प्रेषण कितना सूना
भाषा का गरल सम्मोहन वांछित
नायक प्रबोध का कौन रहा -
दहकी ज्वाला अन्याय कृतघ्न की
अतिचारी की चेरी शक्ति है
शील शुचिता का वाचक रोता
मदांध प्रलापी निर्विघ्न रहा -

अंगार बने पथ प्रेम नगर के
पीयूष प्रवाह अवरुद्ध हुआ
सत्य सरित का अवसान हुआ
सदाचार का नीरज लोप रहा -

उदय वीर सिंह




रविवार, 11 दिसंबर 2016

रुठती है संचेतना तो

रुठती है संचेतना तो,
विकार देती है..
जागती है संवेदना तो
संस्कार देती है ..
राहों में खायी ठोकर ,
विचार देती है ..
विनम्रता सफलता को
आधार देती है ...
सत्य-निष्ठां शौर्यता,अन्याय को
प्रतिकार देती है ...
हृदय की विशालता मनुष्यता को 
आकार देती है 
स्नेह की सबलता घृणा को भी 
प्यार देती है... |


-- उदय वीर सिंह .

मंगलवार, 6 दिसंबर 2016

वीर मरुस्थल को सुंदर उद्यान बनाने की सोचो

वीर मरुस्थल को सुंदर उद्यान बनाने की सोचो
रुई से पुतले आग नहीं परिधान बनाने की सोचो
हर तन में रहता है एक नीरव संवेदनशील हृदय
शिक्षालय में भगवान नहीं इंसान बनाने की सोचो -
बरसेंगे आतंक के बादल नीर नहीं ज्वाला होगी
नाद विध्वंश का ऊर्जित होगा गेह नहीं कारा होगी
अंतस में आशा और विश्वास सृजित होता जाए
निज राष्ट्र संस्कृतियों को महान बनाने की सोचो -
उदय वीर सिंह

रविवार, 4 दिसंबर 2016

खरीदने और बेचने का अंतर जितना ज्यादा होगा मुनाफा होगा

काँटों की सेज पर गुल बिखर ही जाएँ तो वो दागदार होंगे 
जिसने किस्मत में मांगा ही हो बेईमानी कैसे ईमानदार होंगे -
 खरीदने और बेचने का अंतर जितना ज्यादा होगा मुनाफा होगा 
और सिर्फ मुनाफा ही हो जिसका मकसद कैसे वफादार होंगे -
 काजू की रोटियाँ खाने वाले को कणक के खेत रसुखदार नहीं लगते 
वीर सोचो कालाहांडी -वनवासी गलियों के कैसे समाचार होंगे -

उदय वीर सिंह 



शनिवार, 3 दिसंबर 2016

राष्ट्र प्रेम की दीप शिखा पर .....

शब्द अंतस के उचर रहे 
प्रतिभागी राष्ट्र प्रेम के कहाँ गए 
शीश अर्पण की वेला आई 
यश गाने वाले  कहाँ गए -
सूनी राहें दूर- दूर तक 
मंदिर राष्ट्र का सूना है 
राष्ट्र प्रेम की दीप शिखा पर  
सौं खाने वाले कहाँ गए -
चोले- नारों में राष्ट्र प्रेम 
जाति -धर्म में सिमट गया 
रुग्ण राष्ट्र प्रतीक्षा में है 
राष्ट्र रखवारे कहाँ गए -

उदय वीर सिंह 


 




शुक्रवार, 2 दिसंबर 2016

तुम क्या जानों आग ,कभी जले हुए नहीं हो -

दौर बीता सदियाँ बीतीं  तुम वहीं पड़े हो
तुम जग नहीं सकते,सबब सोये हुए  नहीं हो -
जली हुई देह ही, बया करती है जलन को
तुम क्या जानों आग ,कभी जले हुए नहीं हो -
जिंदा है देह, आत्मा मरी हुई निर्लज्ज
तुम जी नहीं सकते  मरे हुए नहीं हो -
शहादतों  पर बजा तालियाँ वतनपरस्त होते हो
क्या जानों कुर्बानी सिर हथेली धरे नहीं हो -
छद्म में जीना तेरी इल्मों  फितरत है वीर 
तुम फ़रजंदों के बीच पले -बढ़े हुए नहीं हो -

उदय वीर सिंह




मंगलवार, 29 नवंबर 2016

सरकारें तों मजे मौज में

सरकारें तों मजे मौज में
जनता को रोना होता है 
उनके मुंह में मद मोदक 
इनको भूखे सोना होता है -

प्रारव्ध में आँसू क्यों मिलते 
पैरों में विवाई जनता को 
दुर्दिन का छाजन इनके सिर 
आँचल ही अपना होता है -


उदय वीर सिंह 

शनिवार, 26 नवंबर 2016

संविधान the life-line

' संविधान दिवस ' की बधाई ,शुभकामनाएं - नमन रचनाकारों को अप्रतिम शिल्पकारों को ..... । 
संविधान ! है तो-
संप्रभुता है ,अखंडता है 
संपन्नता है सम्मान है 
समानता, शिक्षा, सुरक्षा है 
आशा है, विस्वास है 
अवसर, आलोचना, अभिव्यक्ति की 
स्वतन्त्रता पराकाष्ठा है 
आदर्शों की । 
मेरुदंड है जीवन की 
जीवन रेखा है 
भारतीय जनमानस की 
नमन !शत -शत नमन ! 
अक्षुण रहे युगों तक .... 

उदय वीर सिंह  




शुक्रवार, 25 नवंबर 2016

सिर्फ पैसा चल रहा है ...

कल ऐसा न हो जैसा कल रहा है .... 
थम गई है रफ्तार ए जिंदगी
सिर्फ अब पैसा चल रहा है -
किसी का सूरज निकल रहा
किसी का सूरज ढल रहा है -
कोई पेन्सन कोई दिहाड़ी तो
कोई लूट की रकम बदल रहा है -
कोई देश की चिंता में विकल
कोई छाती पर मूंग दल रहा है -
सरगोशियाँ हैं बदल जाएगी सूरत
अपने पैरों पर देश संभल रहा है -
दम निकल जाए कि कुएं के पास
कल ऐसा न हो जैसा कल रहा है -
उदय वीर सिंह

गुरुवार, 24 नवंबर 2016

अछूत .... नोट

वह बृद्धा पेन्सन के
पाई थी बैंक से पाँच सौ के तीन नोट
गई थी पंसारी की दुकान
लेने नमक आटा आदि
समान रख पोटली में
बढ़ाया दाम में
एक पाँच सौ का नोट
उछल गया दुकानदार देख
मानो किसी विषधर को देख लिया
छिन लिया हाथों से
समान की पोटली
 दूर हट माई
ये नोट लेकर क्यों आई ?
जा काही और
कहीं और  ये लेकर अछूत शापित नोट  !
मैं ही मिला हूँ था तुझे ठगने को .,...।
उदास, हतास ,
लिए आँखों में नीर ... खाली पोटली का कपड़ा ।
किसी ने कहा ये रंगीन कागज अब
बैंक में कर दो जमा
ये अछूत हो गए हैं .....
थक हार जमा कर दिये माई ने
अछूत हुए नोटों को  बैंक में
अब ,
दो दिन सुबह शाम की बाद हाजिरी के
भी मयस्सर नहीं है मुद्रा
पेन्सन के हुये धन काले हैं
नमक ,रोटी
के लाले हैं ..... ।

 उदय वीर सिंह





बुधवार, 23 नवंबर 2016

सफर आशिक़ी के ......

सवालों की रातें हैं ,जवाबों के दिन हैं
सफर आशिक़ी के कितने कठिन है -
कहता है चाँद भी ये आसमा हमारा है
सितारों के गाँव भी तुम्हारे  नहीं हैं -
आंसुओं की सेज पर फूल लगते कांटे हैं
निगाहें जमाने की कितनी मलिन हैं -
गलियाँ चौबारे घर हँसती हैं वादियाँ
हुआ बावला है कोई आया दुर्दिन है -


रविवार, 20 नवंबर 2016

हमने किए सवाल तो

हमने किए सवाल तो
सिरफिरे हो गए -
मैं अब भी कोयला हूँ 
वो हीरे हो गए -
जिसने किए हलाल वो 
तेरे हो गए -
किश्ती मेरी छिन कर 
वो तीरे हो गए -
हम उनकी महफिलों के ढ़ोल 
मंजीरे हो गए -

उदय वीर सिंह 

कांधे कुत्ता ....बेबस बच्चा पाँव ....

लानत दूँ दाद दूँ या मुबारकबाद !
दौर ए सर्जिकल स्ट्राइक कांधे पर कुत्ता चढ़े 
बच्चा बेबस पाँव ..... ।
उदय वीर सिंह

शुक्रवार, 18 नवंबर 2016

राष्ट्र वादी खून

    डॉ चाक चौबन्द सिंह अपने नर्सिंग होम " सेवा सदन ,आनंद नगर " में बैठे देश में हो रही खून की कमीं पर चिंतातुर मुद्रा में खिड़की से बाहर देखते जा रहे थे । बीमारों की संख्या निरंतर बढ़ती जा रही है ,पैंसठ फीसद लोग खून की कमीं के शिकार हैं रक्त- दान करने वालों की संख्या बहुत कम है । कोई सकारात्मक ठोस पहल होनी चाहिए ,वरना देश की सेहत को ठीक रखाना मुश्किल हो जाएगा । शाम का समय वे अपनी व्यस्ततम दिनचर्या से थोड़ा समय आराम के लिए  निकाल  एकांत प चाय की प्रतीक्षा में थे पर मानवीय संवेदना थी की समस्याओं को विचारों के साथ सँजोये हुये थी । तभी श्री चंपतराम हीराचंद मलकानी अपनी ऊँची आवाज में बड़बड़ाते डॉ चाक चौबन्द सिंह के कमरे में बेधड़क प्रवेश कर गए । और अपने गुस्से का इजहार करने लगे । 
   डॉ साहब ! मैं तुम्हें छोडुगा नहीं  ,कोर्ट तक घसीटुंगा तुमने डाक्टरी पेशे का मज़ाक उड़ाया है । तुम्हें कौन डाक्टर बनाया है ? मैं मुकदमा करुगा ,नुकसान की भरपाई के लिए हरजाना वसूल करूंगा ,क्या समझे ? तुमने मुझे ऐरा-गेरा समझ लिया है ,मैंने तुम्हें ऊँची फीस दी है और तूने मेरे बच्चे के जीवन के साथ खिलवाड़ किया है मेरे परिवार मेरी उन्नति मेरे विकास पर कुठारा घात  किया है  मैं लूट गया जी ,हे राम !श्री चंपतराम हीराचंद मलकानी को क्रोध से उतर कर अब गमगीन रुआंसे हो निढाल से हो गए थे  । 
डॉ साहब ने उन्हे सामने बैठने का इशारा किया । 
श्री मलकानी जी अपनी नाम आंखे पोछते हुये सामने बैठ गए ।
क्या हुआ है आपके बच्चे के साथ मलकानी जी ! मुझे  विस्तार से बताइये । डॉ चौबन्द सिंह ने प्यार जताते 
पूछा । 
थोड़ी देर बाद संयत हो  सम्हल कर बोले । 
डॉ साहब मेरा बेटा अब अनाप सनाप बोल रहा है । मैं क्या करूँ आपके इलाज के बाद जब से घर गया है उसकी आदत व्यवहार खान- पान  रहन सहन सब बदल गया है ।अब लगता ही नहीं की मेरे घर- परिवार का सदस्य है 
   कैसा व्यवहार कर रहा है कैसी तबदीली हो गई है ?और अगर बदलाव आया है तो अच्छी बात है । 
अरे डाक्टर खाक अच्छी बात है ? असहज हो फिर ऊँची आवाज में मलकानी जी उखड़ पड़े । 
      हमारा परिवार लक्ष्मी चरणो का दास है हम दिन- रात उसकी महिमा का गान करते हैं ।रूखा -सूखा नमक -रोटी खा कर सात्विक जीवन  जी लेते हैं ।  जेवर, जमीन ,जायदाद व्याज पर रकम देकर जरूरत मंदों कीजहां तक हो सके  पुरजोर मदद करते हैं । यही हमारा कर्म  धर्म है । 
     और हमारा बेटा जय हिन्द !  जय हिन्द ! जय भारत माता ! जय भारत माता बोल रहा है ।न जाने  ये कौन देवता कौन देवी है ! न जाने उसे क्या हो गया है । मलाई रबड़ी घी के बगैर खाता नहीं ,हम इतना व्यंजन तीज त्योहारों में भी नहीं खाते और मुआ ये ...... सब आपकी इलाज का असर है । बचाओ मुझे ! वरना डॉ साहब मैं कानूनी  कार्यवाही के लिए मजबूर हो जाऊंगा .... कुछ करो ... मलकानी  जी बोले ।
     हॅलो डॉ महिमा ! जरा मेरे पास श्री  रुपचन्द चपतराम  मलकानी की फाइल लेकर आइये ।  डॉ चाक चौबन्द सिंह ने इंटरकाम पर बोला । 
 थोड़ी देर में डॉ  महिमा  श्री चंपतराम  जी के पुत्र की फाइल के साथ डॉ चौबन्द के पास हाजिर हुईं । 
केश  हिस्ट्री को पढ़ने के बाद डॉ चाक चौबंद बड़ी गंभीर मुद्रा में बोले । 
 भाई चंपतराम जी आप के पुत्र की जान बचाने के लिए जो खून उपलव्ध था उसको चढ़ाया गया  महत्वपूर्ण था  उसकी जान बचना, इस लिए ये गलती हो गई है । गंभीर बात ये है की वह खून एक राष्ट्र भक्त का था । अगर आप कहें तो उसका खून निचोड़ लिया जाय और किसी अन्य का जिसे आप कहे खून चढ़ा दिया जाय । डॉ चौबन्द सिंह बोले । 
       क्या किसी और का खून नहीं मिला आपको,  वही मिला ? डॉ फौरन हमारा खून चढ़ाओ वह हमारा बेटा है ,उसे हमारी आदतों में ढलना होगा .... आगे हम कुछ नहीं सुनना चाहते ।  वरना कानूनी कार्यवाही करूंगा ही करूंगा ...... श्री चंपतराम हीराचंद मलकानी का अटल निर्णय था । 

उदय वीर सिंह 


     

मंगलवार, 15 नवंबर 2016

बाल दिवस [चार सहबजादे]

बाल दिवस उन चार साहबजादों [ अमर वलिदानी बाबा अजित सिंह ,बाबा जुझार सिंह बाबा जोरावर सिंह बाबा फतेह सिंह  पुत्र गण गुरूपिता दसवे पतशाह गुरु गोबिन्द सिंह जी महाराज ] को समर्पित ।  दो साहबजादे चमकौर की जंग में वीरगति पाये , दो साहबजादे लाहौर मे दीवार में चुने गए,वीरगति को प्राप्त हुये । जब तक स्वांस  रही संस्कृति -संस्कार अक्षुण रहे । कोटिशः नमन अद्वितीय बालंकों को । 
      बाल दिवस अर्थतः संस्कृति- संस्कार के वाहकों,वारिसों का दिवस जिनमें संचित है देश ,समाज का सुनहरा भविष्य आवश्यकता है उन्हें भेद- भाव मुक्त ,पीत, न्याय युक्त, पारदर्शी स्नेहिल प्रेम से सराबोर वातवरण देने की ,उनके अप्रतिम अद्वितीय अतीत को नवल परिवेश परिदृश्य में मंडित करने की । ईमानदारी से उनके गौरवमयी शौर्य  व आदर्श गाथा को आद्यतन नवल कोपलों में अंतरित करने की । यही सच्ची श्रद्धांजलि होगी उन अमर प्रतापी वीर शहीद बालकों को । 
उदय वीर सिंह । 

सोमवार, 14 नवंबर 2016

नानक नाम चढ़दी कला.....

आदि गुरु ! गुरु नानक देव जी महाराज के पावन प्रकाशोत्सव पर समस्त देश -विदेश वासियों को लख -लख बधाई ! ढेर सारा प्यार ... । 
गुरु पावन पग की राह चला 
ईश्वर का नेह मिला जग को - 
अंधेर विकार अनीति भरी थी 
रब ज्ञान प्रकाश मिला जग को -
मजहब जाति उंच नीच तज 
विश्वास का संग मिला जग  को -
मिटी धुन्ध जग चानड़ होया 
गुरु नानक रूप मिला जग को -

उदय वीर सिंह 

रविवार, 13 नवंबर 2016

यतिमी की पैरहन न देना

डाल दो आग की दरिया मे
यतीमी की पैरहन देना -
अगर यही है जमाने के लोग
तो जिंदगी हमें रब देना -
जो मिटता है गम रो लेने से
वीर आँसू हमें कम देना -
खुले आशमा से क्या शिकायत
सोने को जमीन नम देना -


उदय वीर सिंह

शनिवार, 12 नवंबर 2016

तैयार फसल ओले पड़ गए -

काले धन की फसल का किसान
कितना आवाक ! कितना हैरान !
तैयार फसल ओले पड़े  -
***
द्रोह की मिट्टी, विष बेल का बिरवा
रक्त से सिंचन, हथियारों का हल 
विध्वंस का नियोजन फीके पड़े -

उदय वीर सिंह


शुक्रवार, 11 नवंबर 2016

काला मन -काला धन

काले मन का कितना काला धन-
ढ़ो रहे सिर पर सूरज उजाले का
सजा स्वेत पुष्पों का धवल उपवन
हो अनाथ करता नाथ से विनती
मेरी छाया भी कर दो कंचन -
महा श्वेत वसन उच्च व्याख्यान
च्युत न्याय नैतिक आदर्श चिंतन
सौम्य शांत श्रद्धा विश्वास के आवरण
ओढ़  छल करता समाज से कलुष मन -

उदय वीर सिंह 



गुरुवार, 10 नवंबर 2016

काला धन निकले


काला धन निकले -
चलाओ खंजर जर्राही में
खून निकले चाहे जिगर निकले -
राष्ट्र के निर्माण में वीर
हर शख्स नजर बदले -
सफलताओं संग विफलताए भी मिलती हैं
निराश हताश क्यों होना
संगमरमरी दरो दीवारों से ,
श्रद्धा आस्था ,कांतिवन, शांतिवन
सेवक ,वजीर मसीहा मीरों ,पीरों से
रेशमी ही नहीं खादी, गेरुए ,पैरहनों से
बेखौफ निकले
निकले तो हर हाल में
काला -धन निकले -
उदय वीर सिंह


मंगलवार, 8 नवंबर 2016

जागो मशालों अब ....

जागो मशालों अब सहर होनी चाहिए 
कहाँ आफताब है ,खबर होनी चाहिए -
कब तक सहारों पर बसर होगी जिंदगी 
मंजिल की राहों पर नजर होनी चाहिए -
दूध वाली रोटी और खून वाली रोटी में
कौन सी हमारी है, कदर होनी चाहिए -
दुर्गंध आती वीर  ठहरी हुई झीलों से 
रुके हुए पानी में ,लहर होनी चाहिए -

उदय वीर सिंह 

सोमवार, 7 नवंबर 2016

छोड़ आए हैं संस्कृति संस्कारों को .....

घरों में आज भी  देखो ताले लगाने होते हैं 
नजरबट्टू मुंडेरों पर  शैतान बिठाने होते हैं -
दर पे जरूरतमंद कोई, इंसान न आए 
खबरदार कुत्तों से फरमान लिखाने होते हैं -
मसर्रत देने वाले भी कैद तालों में होते हैं 
देव, देवालय दोनों पर पहरे लगाने होते हैं -
कहीं हम छोड़ आए हैं संस्कृति संस्कारों को 
पहले राष्ट्र होता था अब धर्म बताने होते हैं -

उदय वीर सिंह 





रविवार, 6 नवंबर 2016

जिंदगी सुख दुख का आँगन ....



ये जिंदगी शीशा नहीं कि
टूटकर कर बनती नहीं -
ये जिंदगी पत्थर नहीं कि
दुब ऊपर उगती नहीं -
जिंदगी एक दिल नहीं कि 
बंद हो खुलती नहीं -
जिंदगी किसलय नहीं कि
एक बार खिल, खिलती नहीं -
जिंदगी सुख दुख का आँगन
अग्नि की सरिता नहीं -
जिंदगी का फलसफा है
छोड़कर मिलती नहीं -
उदय वीर सिंह