वेला है आरती की , पुजारी आ रहे हैं
महलों को अपने छोड़ कर,भिखारी आ रहे हैं ......
इशारों में कैद हो गयी ,तकदीर आदमी की
जानवर से भी बद्दतर है तासीर आदमी की ,
खुदा सी बन गयी है ,लकीर आदमी की ,
बन गयी है जिंदगी जंजीर आदमी की -
आदमी से लगते मदारी आ रहे हैं -
जंगल सा बन गया है,गुलशन कमाल का ,
अधिपत्य छा गया है ,काँटों के जाल का ,
छल - छद्म , षड़यंत्र में जनता निरीह सी,
बैठे लगाये घात , जिन्हें रक्षा का भार था ,
ख्वाबों के लेकर पिंजरे , शिकारी आ रहे हैं --
बोरों में भर के वादे ,पिछली बार दे गए थे ,
खाली नहीं हुए हैं ,फिर लारी में भर के लाये -
माफ़ी मुस्कान संयम ,अमोघ अस्त्र उनके,
आँखों में इतना पानी , सागर को शर्म आये -
फ़सल पकी है वोट की, कारोबारी आ रहे हैं -
गरीबों के घर में जाना , अहसान हो गया ,
आदमी को कहना आदमी,नया काम हो गया -
हक़ उनका भी है जिसने माँगा नहीं कभी ,
वतनपरस्त होकर भी गुमनाम हो गया -
सियासत के साज लेकर राग-दरबारी आ रहे हैं -
याचना की भावना रग - रग में समा गयी ,
स्वावलंबन की भावना को प्रश्रय नहीं मिला -
कर्म और मूल्य का निर्धारण ही पाप है ,
श्रद्धा और आस्था को निरंतर जब बल मिला-
आना था सुदामा को ,घर मुरारी आ रहे हैं -
उदय वीर सिंह
29 / 12/2011
महलों को अपने छोड़ कर,भिखारी आ रहे हैं ......
इशारों में कैद हो गयी ,तकदीर आदमी की
जानवर से भी बद्दतर है तासीर आदमी की ,
खुदा सी बन गयी है ,लकीर आदमी की ,
बन गयी है जिंदगी जंजीर आदमी की -
आदमी से लगते मदारी आ रहे हैं -
जंगल सा बन गया है,गुलशन कमाल का ,
अधिपत्य छा गया है ,काँटों के जाल का ,
छल - छद्म , षड़यंत्र में जनता निरीह सी,
बैठे लगाये घात , जिन्हें रक्षा का भार था ,
ख्वाबों के लेकर पिंजरे , शिकारी आ रहे हैं --
बोरों में भर के वादे ,पिछली बार दे गए थे ,
खाली नहीं हुए हैं ,फिर लारी में भर के लाये -
माफ़ी मुस्कान संयम ,अमोघ अस्त्र उनके,
आँखों में इतना पानी , सागर को शर्म आये -
फ़सल पकी है वोट की, कारोबारी आ रहे हैं -
गरीबों के घर में जाना , अहसान हो गया ,
आदमी को कहना आदमी,नया काम हो गया -
हक़ उनका भी है जिसने माँगा नहीं कभी ,
वतनपरस्त होकर भी गुमनाम हो गया -
सियासत के साज लेकर राग-दरबारी आ रहे हैं -
याचना की भावना रग - रग में समा गयी ,
स्वावलंबन की भावना को प्रश्रय नहीं मिला -
कर्म और मूल्य का निर्धारण ही पाप है ,
श्रद्धा और आस्था को निरंतर जब बल मिला-
आना था सुदामा को ,घर मुरारी आ रहे हैं -
उदय वीर सिंह
29 / 12/2011