रविवार, 26 अप्रैल 2020

स्पंदन खोज रहा हूँ ...

संगमरमरी दहलीजों पर संवेदन खोज रहा हूँ
ठेकेदारी माथों पर स्पंदन खोज रहा हूँ-
श्रद्धा थी ,विस्वास भरा था ,आशा होगी पूरी,
जुआघर मदिरालय में मैं चन्दन खोज रहा हूँ -
नक्कारों में तूती की आवाज सुनाई कैसे दे ,
शमशानों में नायक सा अभिनन्दन खोज रहा हूँ -
लोरों के निशान ही दिखते सूखे चेहरों की झाईं
पथराई आँखें लब सिले हुए क्रंदन खोज रहा हूँ -
देकर खून पसीना ,वो भरे तिजोरी आजीवन
आरोग्य-पत्र के याचन पर अनुमोदन खोज रहा हूँ -
ईद दिवाली बैसाखी के दिन आंसू बनकर बह जाते
खाली हाथ खाली दोने ,मैं व्यंजन खोज रहा हूँ -
उदय वीर सिंह

शीश नहीं सिर्फ ताज सौंपा है ...

तुम्हें शीश नहीं, सिर्फ ताज सौंपा है ,
देवालय में जलाने को,चिराग सौंपा है -
न काटे जाएँ युग निर्माण के बली तरुवर,
न जले किसी आग रक्षार्थ तुम्हें बाग़ सौंपा है-
छीन आँख का सुरमा, नेह निवाला थालों से
पर्वत श्रृंग नहीं बनते गिरते शीश के बालों से-
सींचे जाएँ फल-फूल फसलों के नंदन वन,
स्वेद बूंद व रक्त-कणों से पूरित तड़ाग सौंपा है-
उड़ जाते हैं वेदन की आंधियों से ताज अक्सर
बिलट जाते हैं अश्क -धार से साम्राज्य अकसर
भावार्थ रोटियों का ,अर्थ शराब का विवेचित हो ,
लौटे अतीत का सौंदर्य, नयनों का ख्वाब सौंपा है -
उदय वीर सिंह

शनिवार, 25 अप्रैल 2020

हमने संत समझा........


हमने संत समझा........
लुटेरों को हमने संत समझा ,
सिमित को हमने अनंत समझा
सफ़ेद भयानक हथियार को ,
हाथी के खाने का दन्त समझा -
तज गए आसन देव देवालय से ,
पाखंडियों की देख कर सूरत ,
धन कुबेरों को वर-महंथ समझा ,
पाखंडियों को हमने भगवंत समझा -
प्रत्येक दान कर्म त्याग अर्पण,
के पीछे छुपा राजनीतिक " हम "
बना मर्मान्तक पीड़ा का प्रतिरूप
जिसे हमने मुक्ति का संयंत्र समझा -
आंसुओं की नदी में भींगते डूबते ,
उतराते कराहते लोग हासिये पर ,
विकृत हो जाएँगी परिभाषाएं ग्रंथों की ,
राजतन्त्र हो जायेगा जिसे लोकतंत्र समझा -
उदय वीर सिंह




तुम अजात -शत्रु नहीं हो ..


तुम अजात-शत्रु नहीं [ कोरोना ...]
लबों को बंद रखता हूँ ,
पत्ते लगा लिए ....
हम भी इसी देश के बासिन्दे हैं,
कुछ रस्ते बना लिए ...
क्या गिला करूँ ,सरकारों सल्तनत से ,
उन्हें मेरी आवाज चुभती है ,
कोई बाँट सका गम मेरे,
हमने बस्ते बना लिए .....
तुम्हारे दीपों के बचे तेल
मेरी कढ़ाही में टपक गए
उपेक्षा में मिले तेरे काँटों से
हमने गुलदस्ते बना लिए -

उदय वीर सिंह



रविवार, 19 अप्रैल 2020

अग्रे विजय हमारी .....

हम प्यार और सहकार का तूफ़ान लायेंगें
पुनः अतीत का गौरव वही सम्मान लायेंगें -
हर दलदल मरूस्थल को सब्र से पार करना है,
बन्जर हो गयी धरती में फ़िर से फ़ूल आयेंगे -
शान्ति प्रेम अहिंसा का संसार साजा था,
फ़िर वही दुनियां वही धरती आसमान लायेंगें -
उदय वीर सिंह

मंगलवार, 14 अप्रैल 2020

कहीं रोता चिकित्सक है कहीं बीमार रोता है


कोरोना आतंक के कारण जो ह्रदय विदारक घटनाएँ घटित हो रही हैं मर्मान्तक पीड़ा दे रही हैं स्वयं मात्र को तसल्ली स्वरुप अभिव्यक्ति से रोक नहीं पाया ... हमने कोरोना-काल में अपनी आँखों से दग्ध जीवन के कितने रूप देखे
उदय वीर सिंह
कहीं अभिशप्त ममता है,कहीं आधार रोता है
कहीं आँचल सिसकता है,ह्रदय लाचार रोता है -
कहीं पर भूख रोती है ,प्रतीक्षा के दिवस बीते ,
कहीं उद्योग रोता है , कहीं बाजार रोता है -
खेत खलिहान उजड़े हैं बाग़ उद्यान सूखे हैं
ढोर -डंगर कहीं भूखे , कहीं घर-बार रोता है -
हाथ हैं काम से बंचित , बे-घर हुआ जीवन ,
फ़कत रोटी के हैं लाले ,कि कामगार रोता है -
मरा है आँख का पानी ,कहीं उत्सव मनाते हैं,
कहीं सहकार रोता है ,कहीं अधिकार रोता है -
रुकी है स्वांस बेबस की वसूली भी चरम पर है ,
कहीं साहूकार हँसता है ,कहीं कर्जदार रोता है -
कोरोना से क़यामत का कोई रिश्ता पुराना है
कोई कोना नहीं खाली ,सारा संसार रोता है -
मौत का रूप जो होता ,वो आंसू रोकता कैसे ,
चिकित्सक को दिए कांधा कहीं बीमार रोता है -
उदय वीर सिंह


जय होगी जीवन की ......


जय जीवन की होगी ....
बहारें लौट आएँगी ,चमन आबाद होगा जी
जीवन मुस्कराएगा , मधुर संवाद होगा जी -
वेदना का गमन होगा संयम का जतन होगा
ऊर्जा प्रेम की होगी शमन अवसाद होगा जी -
आज है कैद में पंछी ,पिंजर है हिफाजत में
कल मधुमास जब होगा वो आजाद होगा जी-
दिल टुटा बहुत है ,घात से आघात से वीरों
फिर भी ताज के निर्माण का आगाज होगा जी -
उदय वीर सिंह

सोमवार, 13 अप्रैल 2020

इस पार कोरोना बैठा है ..उस पार कोरोना बैठा


आंसू वेदन राहों पर ,संसार ,कोरोना बैठा है
इसपार कोरोना बैठा है उसपार कोरोना बैठा है
मंदिर मस्जिद गुरुद्वारों पर शत्रु -मित्र दीवारों पर
चौपड़ शतरंज कसीनों पर,मदिरालय और मशीनों पर
निर्मल धूमिल द्वारों पर खूंखार कोरोना बैठा है -
भर उड़ान गंतव्यों से घर की ओर मतवाले हैं ,
मनहर गोधूलि की बेला है अब पंछी आने वाले हैं,
हैं बृक्ष बहुत सहमे सहमें हर डाल कोरोना बैठा है -
नेता भी अभिनेता भी हलधर और अध्येता भी ,
उद्योगपति,रंगरेटा भी मालिक मजूर संग बेटा भी
मत खोल मौत की प्राचीरें द्वार कोरोना बैठा है -
उदय वीर सिंह

हिन्द की चादर [ गुरु तेग बहादुर सिंह जी महाराज "

गुरु तेगबहादुर सिंह महाराज के जग-अवतरण दिवस की [गुरु पर्व की लख लख बधाई ]-
[ बेनती उत्सव सादगी व सम्मान से अपने हृदय व घरों में ही मनाएं ]
हिन्द की चादर " उत्सर्ग शीश का होगा वचन भंग का प्रश्न नहीं ****************धर्म पंथ की राह सजेगी नीच कीच का संग नहीं
त्याग करुना व वलिदान के प्रणेता नवम पातशाह श्री गुरु तेगबहादुर जी महाराज का जन्म प्राचीन मतानुसार ' बैसाख पंचमी सम्बत 1678 [5 अप्रैल 1621 ई सन] जिला अमृतसर [पंजाब ] श्री गुरु हरगोबिन्द सिंह साहब जी के घर हुआ था ।
यह वो दुरूह काल था जिसमें अपने धर्म का पालन करने के लिए भी कर [जजिया कर ]चुकाना होता था भारतीय जन-मानस आर्थिक सामाजिक शैक्षिक व अन्य अकथनीय पीड़ा की बेड़ियों में आकंठ जकड़ा हुआ था ।कोई राह शेष नहीं थी।दुश्वारियों की दुर्गन्ध चहुँ ओर बिखरी थी, प्रतिबंधों प्रताड़ना का अभिशप्त काल जिसमें जीवन को अकथ अमानवीय अपमानजनक मूल्य चुकाने पड़ते थे एक पल सुख की स्वांस के लिए ।
भारतीय सामाजिक ,बौद्धिक समूहों की पहल ,समय की मांग पर गुरु तेगबहादुर जी महाराज ने उस पथ को चुना ,उस वचन को दिया, उस दर्शन को अभिप्राणित उस युग को जिवंत किया जो आत्मोत्सर्ग का था ।कहा था -
" पहले मोमिन तू हमको बना ले , हिंदुआं नू फेर तूं कहीं .... "
गुरु महाराज के 116 श्लोक [ वाणी सृजन ] 15 रागों में पूज्य दशम गुरुग्रंथ साहिब जी महाराज में जिवंत हैं जो नित्य जीवन को नित्य जीवनामृत प्रदान कर अभिसिंचित करते हैं । जीवन ऋणी है उनकी दात का उनका जीवन के प्रति उद्दात्त मानवीय दृष्टिकोण ,स्पष्ट दर्शन, त्याग ,करुना अर्पण वलिदान का अकल्पनीय अविश्वसनिय आत्मबल किंचित मात्र भी विचलित दिखाई नहीं देता । समग्र जीवन के हितार्थ स्व का मोह उन्हें छू भी नहीं पाया । तमाम झंझावातों मर्मान्तक पीड़ा असहनीय यातनाओं व विषमताओं में एकेश्वर वाद ,मानवीय मूल्यों भारतीय संस्कृति संस्कारों का परचम अनन्त गगन की उंचाईयों तक फहराया झुकने न दिया आत्मबल के उच्च शिखर को,अक्षय अमर सन्देश दे दिया युग को की कितने भी हाथ आततायियों अधर्मियों के क्रूरतम हो जाएँ ,ममता और त्याग के प्रकाश पुंज को मद्धिम नहीं कर सके ,बुझाना तो दूर की बात है ।
धर्म सत्य न्याय के हितार्थ सर ,आखिर तक आत्मबल प्रत्यांचाओं से संधान पाते रहे ,न रुके किसी दबाव अपमान प्रताड़ना या विवशताओं से अपने समक्ष भाई मत्ती दास जी ,भाई सत्ती ,दास जी व अन्य अद्वितीय पंथ के जांबाजों को निर्मम तरीकों से शहीद होते देख रंच मात्र भी विचलित नहीं हुए .इस्लाम स्वीकार नहीं किये । वो दिन भी आया जब समस्त प्रलोभन यातना शंसय अपमान असफल हो गए ,
24 नवम्बर 1675 को दिल्ली के चांदनी चौक पर आततायी औरंगजेब ने शीश कलम करा दिया । जहा आज का शीशगंज गुरुद्वारा शोभायमान है ,युगों तक भारतीय जन-मानस को भारतीयता,भारतीय संस्कृति के प्रति ,धर्म के प्रति जाग्रत व जय उद्घोष करता रहेगा ।
उदय वीर सिंह

रविवार, 12 अप्रैल 2020

आत्मबल का प्रकाश रखियेगा ....



संयम पास रखियेगा, शराफ़त साथ रखियेगा,

यकीन जीत की रखिए ,हिफ़ाजत खास रखियेगा-
जो बहुत दूर हैं अपनों से दीजिये हौसला उनको ,
रब से सलामती की उनकी अरदास रखियेगा-
गर्दिशी के अंधरों में लोड़ सहकार की होती ,
जीवन-राह मिल जाये आत्म-परकाश रखियेगा
उदय वीर सिंह





शनिवार, 11 अप्रैल 2020

बसुधा तेरी ओट...

खुश रहो कि ये धरती मुस्कराए
तेरे सुख दुःख से सरोकार रखती है
सींचा है अपने आँचल का प्यार देकर
सृजना है बहुत अधिकार रखती है -

हम एक जर्रे हैं इसके दरबार के
उड़ते हैं लहराते हैं और बिखरते हैं
सिसकती है हमारी उदंडताओं पर
फिर भी ममता का उपहार रखती है -

कद हमारा बौना है उसके आकार से
धृष्टताओं से उसको सदमा लगता है
उसके गहरे घाव अपनी सफलता नहीं
तेरे लिए काशी काबा हरिद्वार रखती है -

तूने दिया है विनाश के गोले बम बारूद
विद्रूप अभिशप्त निहारिकाओं का वलय
मतकर अट्टहास बैठ ज्वालामुखी के द्वार
लौटआ जया के आँचल तेरा सत्कार करती है -

उदय वीर सिंह