सोमवार, 26 फ़रवरी 2024

इंसान बस्तियों से आएंगे...




 



इंसान बस्तियों से आएंगे...✍️

रोटियां खेतों से मिलेंगी शमशान से नहीं।

सोना जमीं से निकलेगाआसमान से नहीं।

दर्द का रंग सबका एक ही होता है प्यारे

हल दिल से निकलेगा तीर कमान से नहीं।

मिट्टी थोड़ी खाद पानी व अपनापन चाहे

फूल चमन से आएंगे किसी म्यान से नहीं।

ना-पसंद है सरहद ख़ुशबू और फूलों को

चमन माली से साद मांगे सुल्तान से नहीं।

ख्वाहिशें बे-सरहद हुईं जमीं सिमटती गई,

इंसान बस्तियों से आएंगे शमशान से नहीं।

उदय वीर सिंह।

मंगलवार, 20 फ़रवरी 2024

रुई की फसल ....


 








रुई की फसल ....✍️

बाजार  खुला  है व्यापार  कर लो।

जो  कृपा  चाहिए  दरबार  कर लो।

सच दफ़न करने का हुनर मालूम है,

मगर झूठ पर थोड़ा ऐतबार कर लो।

जमीन बिकाऊ है खरीद लो बेच लो,

रुई की फसल,सेब की पैदावार कर लो।

खून व पसीना बहाने की जरूरत क्या,

अगर  पूंजी  नहीं  है उधार  कर  लो।

सुना  सच  की  गायकी  में आनंद नहीं,

आनंद में होगे झूठ को नमस्कार कर लो।

उदय वीर सिंह।

विश्व पुस्तक मेले में मेरी पुस्तकें..


 🙏🏼नमस्कार मित्रों 

   कुछ व्यस्तता व अस्वस्थता के के कारण विश्व पुस्तक मेले में चाहत के वावजूद भी सम्मिलित न हो सका मेरे लिए दुःखद रहा। मूर्धन्य विद्वतजनों व मित्रों के सानिध्य से वंचित रह गया। फिर भी मेरी कुछ पुस्तकें मेले में उपस्थित रहीं प्रकाशकों का हृदय से साधुवाद।

    मेरा प्रतिनिधित्व मेरी सुपुत्री उन्नयन कौर ने मेले में किया,बेटे को शुभाशीष व साहसिक कृत्य के लिए उन्हें बधाई। आप सभी मित्रों लेखकों कवियों पाठकों को मेरा प्रणाम  व आत्मीय बधाई। आशा करते हैं अगले मेले में मुलाकात होगी।


उदय वीर सिंह।

सोमवार, 19 फ़रवरी 2024

शब की गुफाओं में ...









 
......✍️

वक्त भी ख़ुदा होना चाहता था गुजर गया।

पत्थर होना चाहता  था मगर  बिखर गया।

उगा सूरज  बदगुमां  था कि वो डूबेगा नहीं,

शब की कहीं अंधेरी गुफाओं में उतर गया।

हंसता  रहा  मासूम  बस्तियों को बर्बाद कर,

बेअन्दाज़ तूफान  भी किश्तों में उजड़ गया।

उदय वीर सिंह।

बुधवार, 7 फ़रवरी 2024

परिंदों के हाथ आरियां देकर.....


 






परिंदों के हाथ आरियां...✍️

दरख़्त सदमें में नहीं परिंदों के
हाथ आरियां देखकर।
वह  ग़मज़दा  है बहेलिए की
खेली पारियां देखर।
उन्हें कल कोई साख न मिलेगी
गुजारने को रातें,
दहशतज़दा है उनकी कल की
दुश्वारियां देखकर।
देकर आबो दाना इक महबूब सा
हमदर्द हो जाना
वृक्ष खौफ़जदा है झोले में जाल
शिकंजा छुरियां देखकर।
उदय वीर सिंह।