शनिवार, 30 जुलाई 2016

कुछ मर्म छिपे हैं उर मेरे

कुछ पाँवों में बंधन हैं ,
चलने वो नहीं देते -
कुछ मर्म छिपे हैं उर मेरे
कहने वो नहीं देते -
कुछ शब्दों की बाधा है
रचने वो नहीं देते -
खट-राग बसे हैं होंठो पर
बहने वो नहीं देते -
वायु प्रहारों में दीपक है
जलने वो नहीं देते -
फिर भी प्रीत का बंधन है
पग रुकने वो नहीं देते -
उदय वीर सिंह

शुक्रवार, 29 जुलाई 2016

चिट्टे चमकते चोले ओढ़ आए हैं

माई तेरे गाँव में कुछ लोग आए हैं
हाथों में नगाड़े और ढ़ोल लाये हैं -
जिह्वा पर मिश्री और आँखों में सनेह है
चिट्टे चमकते चोले ओढ़ आए हैं -

कहते फरिश्ते रब के मुक्ति के द्वार हैं
मोक्ष मिल सकेगा पथ अनमोल लाये हैं-
थैले में जाल है कांटे और कांटे कटार हैं
सिने पर लगाए गुल गुलाब लाये हैं -

भूखा जनमानस थिरके जुमलों की राग पर
सुनी निगाहें दिल तोड़ आए हैं -
वादों में स्वर्ग की उसारते हैं सीढ़ियाँ
सोने की गागर में विष घोल लाये हैं -


उदय वीर सिंह

बुधवार, 27 जुलाई 2016

बड़ा स्वाद होता है -

ख्वाबों की रोटियों में बड़ा स्वाद होता है 
हकीकत की रोटियों में बहुत घात होता है -
खून और पसीने विच ढलती है जिंदगी 
ख्वाबों में जीवन कितना आजाद होता है -
जख्मों की वादियाँ आंसुओं का ढेर है 
ख्वाबों की छांव में दिल आबाद होता है -
वीर सूही जिंदड़ी हकीकत के गाँव हो 
जब टूटते हैं ख्वाब दिल नासाज होता है -

उदय वीर सिंह 



बुधवार, 20 जुलाई 2016

महसूस कीजिये -

दर्द कितना कहेगा दर्द को महसूस कीजिये 
कुछ फर्ज हैं हमारे ,फर्ज महसूस कीजिये -
अहसान हैं कुछ हम पर आए खयाल जो 
चुकाना भी है हमको कर्ज महसूस कीजिये -
सिर्फ तूफान ही नहीं हैं गुब्बार की वजह 
हवाएँ भी हैं मुखालिफ गर्द महसूस कीजिये -
पहचान भी है मुश्किल अपने पराए की 
अपना दिल भी नहीं हमदर्द महसूस कीजिये -

उदय वीर सिंह 

मजहबी आवाम मौन है -



खौफ है, खामोशी है
मुर्दों के शहर में ये जिंदा कौन है -
चुप हैं सियासतदान और हुक्मरान भी
मजहबी आवाम मौन है -
वीर मर गई है इंसानियत शायद 
इस लाश का मासूम के सिवा कौन है -
उदय वीर सिंह

मंगलवार, 19 जुलाई 2016

हम परीन्दों के माफिक क्यों न हुए

हम अकेले नहीं भीड़ में साथ हैं 
 लबों प सवाले सवालात हैं -
शीशों को पत्थरो की निजामत मिली
आज देखो शहर के क्या हालात हैं -
आँखों की नमीं आग सी क्यों लगे
कैसे बिखरे हुए दिल के जज़्बात हैं -
हम परीन्दों के माफिक क्यों न हुए
हमसे अच्छे तो उनके खयालात हैं - 

उदय वी सिंह 

 


रविवार, 17 जुलाई 2016

कटे हुये केशों में.. तेल चमेली लगा रहे -

नीचे घास कंटीली है
ऊपर मलमल बिछा रहे
जिस पर रोती मानवता
गौरव उसको बता रहे -
रसखानों का सून्य विवेचन
दृष्टिपटल से मिटा रहे
अवश्यंभावी परिमार्जन था
जन-मानस से छिपा रहे -
रोगों का भंडार हुआ तन
शरीर शैष्ठव बता रहे
निष्फल समस्त प्रयोजन है
तर्कों से उचा बता रहे -
अर्थ समाज भौगोलिक नैतिक
ईंट नींव की खिसक रही
लेकर के पूर्वाग्रह अंतस
महल ताश का बना रहे -
चमत्कारों के आलंबन में
ये देश सतत शत टूटा है
हठ रूढ़ि प्रलाप प्रवंचन में
काले अतीत को सजा रहे -
भूख कुपोषण दीन दैन्यता
अशिक्षा अन्याय नर्क में देश
कटे हुये केशों में ज्ञानी
तेल चमेली लगा रहे -

उदय वीर सिंह


बुधवार, 13 जुलाई 2016

ये बात कम नहीं है -

तेरे इंसान होने की बात कम नहीं है
दौर बदल देने का जज़्बात कम नहीं है -
शहर में हैं अनजान से तमासायी लोग
पूछ लेना हालात, ये बात कम नहीं है -
गुजर जाते हैं लाशों पर रख कर पाँव ,
बात की कफन की, ये बात कम नहीं है-
वो आईने से पुछते हैं हुनर सँवरने का ,
तेरी आवाम से मुलाक़ात, कम नहीं है -
देकर खैरात,किसी को खुदा मिलता होगा
न हों मांगने वाले हाथ,ये बात कम नहीं है -
उदय वीर सिंह

मंगलवार, 12 जुलाई 2016

विष-बेल लगाने वालों

विषबेल लगाने वालों 
बूटी संजीवन बोना सीख -
कायर की मौत पर रोता है 
इंसान की मौत पर रोना सीख -
जब दाग लगे हैं दामन में
शुभ कर्मों से धोना सीख -
पाने की हवस में फिरता मारा 
कर्तव्य नेह में खोना सीख -
हर धर्म शांति के पथ देते हैं 
जान वतन पर देना सीख -

उदय वीर सिंह

सोमवार, 11 जुलाई 2016

जब संकट में होते हैं ....

जब संकट में होते हैं राष्ट्र बड़ा हो जाता है 
जब मौज में होते हैं धर्म बड़ा हो जाता है -
जब मौज में होते हैं संहिताएँ बड़ी हो जाती हैं 
जब संकट में होते हैं कर्म बड़ा हो जाता है -
जब संकट में होते हैं एकता बड़ी हो जाती है 
जब मौज में होते हैं वर्ण बड़ा हो जाता है -
न्याय अनुशीलन की व्याख्या बदल गई 
कवच याचन के अर्थों में कर्ण बड़ा हो जाता है -
जब विकृतियों को शरण मिली तब तब भारत टूटा है 
पलटो पीछे पन्नों को ले इतिहास खड़ा हो जाता है -

उदय वीर सिंह

रविवार, 10 जुलाई 2016

नेह पनपेगा हृदय ....

नेह पनपेगा हृदय
चिर- मंगल होगा -
विरह वीथियों का रोह
असफल होगा -
वेदना उष्मित पथ होगी
शीश आँचल होगा -
पीर निर्मित होगी
यत्न निष्फल होगा -
नयनों की सौम्यता में
स्नेह अंजन होगा -
उल्लास उत्सव होगा
प्रेम प्रांजल होगा -

उदय वीर सिंह



गुरुवार, 7 जुलाई 2016

अशेष विस्मृत हो गए....

मित्रों !एक पत्र के संपादक जी ने एक काव्य सृजन हेतु आग्रह किया विषय था स्मृति । मैंने कहा - कुछ स्मृतियों में है अशेष विस्मृत हो गए, छाप सको तो छाप !
आप का क्या विमर्श है यह आप पर छोड़ता हूँ ।
***
हमें याद है अपना धर्म
मर्म विस्मृत हो गए 
हमें याद है अपनी जाति गोत्र
प्रयोजन विस्मृत हो गए -
हमें याद है अपना नाम
नियोजन विस्मृत हो गए
हमें याद है अपने माँ -पिता
कर्म- निर्वहन विस्मृत हो गए -
हमे याद हैं अपने गुरु व ग्रंथ
सद्द्वचन विस्मृत हो गए
हमें याद है कल की तारीख
अतीत विस्मृत हो गए -
हमें याद है स्वर्ण पंछी की कहानी
वलिदान विस्मृत हो गए -
धुंधली स्मृतियों में है देश
संकल्प विस्मृत हो गए -
देश को छोड़ सब पहले है वीर
अशेष विस्मृत हो गए -
उदय वीर सिंह

ईद बनती है -

अमनपसंदों ,हकपसंदों नेकबंदों को ईद बनती है
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हमें महब्बत है इंसान से
हिन्दू या मुसलमान से नहीं- 
अमन की बयार भाईचारगी से
आतंक जुल्मो फरमान से नहीं -
हर लबों पर हो खुशी, गाए दिल
जींद फर्ज में बसर हो अहसान से नहीं -
वीर न मिले मसर्रतों की सौगात
जो बख्सना नेमतें कम ईमान से नहीं -
दिल वालों को ईद बनती है -
उदय वीर सिंह

बुधवार, 6 जुलाई 2016

आशाहीनता ही मृत्यु है -

सहरा में फिर भी, शजर
कम नहीं हैं -
इनायत भरी कुछ, नजर
कम नहीं हैं -
जो रुसवा हुये कुछ,मुंतजिर
कम नहीं हैं -
गर मंजिल है दिल में, डगर
कम नहीं हैं-
विच तूफनों की बस्ती सफर
कम नहीं हैं
नेक रस्तों के जानिब हमसफर
कम नहीं हैं -
उदय वीर सिंह

सोमवार, 4 जुलाई 2016

झूठे शान श्यापों पर ....

खेतों में बंदूकें उगतीं
बम विद्यालय बना रहे
विषबेल पनपती श्रद्धालय
धर्मालय नफरत बढ़ा रहे
आँखों के चश्में बदल रहे 
स्वप्न रंगीले दिखा रहे
मेरा पथ है रब का पथ
वीर अशेष झूठा बता रहे
बर्तमान की दशा दिशायेँ
क्या हो इसका अर्थ नहीं
झूठे शान श्यापों पर
मानव से मानव लड़ा रहे -
न्याय प्रेम सम्मान कहीं
सब दलगत होते दिखते हैं
वेदन में दुखिया चिल्लाता
निर्दय कर ग्रीवा दबा रहे
जिसकी लाठी उसकी भैंस
हकपसंद शमशान गया
संविधान से ऊपर होकर
सूरज को दीवा दिखा रहे -
उदय वीर सिंह