शुक्रवार, 28 जून 2013

वियतनाम

     वियतनाम  को जरा हम अतीत के झरोखों  से स्मृतियों को ताजा करते हैं -  वियतनाम की सहानुभूति में भारतीय गलियों, सडकों पर गूंजता था 
     ' तेरा नाम -मेरा नाम ,वियतनाम- वियतनाम '
     २१ वर्ष की युद्ध विभीषिका के भयावह अनल  की वेगमयी दरिया को डूब कर पार करने की अगर कहीं क्षमता पाई गयी तो निःसंदेह  वे वीर- वीरांगनाएँ वियतनामी हैं | उन्हों ने देश प्रेम में क्या नहीं खोया ,जुल्म रोया,मौत रोई वेदना की अंतरात्मा रोई ,असीम विपदा रोई निरंकुशता का चरम रोया ,अगर नहीं रोया तो निःसंदेह वह  था वियतनामियों का दिल |  नहीं झुका तो वियतनामियों का अजेय  शौर्य भाल ,भले  वह टुकड़ों में विभक्त हो गया |
      रोटी, कपड़ा, मकान,स्वप्न हो गया ,शरीर जर्जर रोग-ग्रस्त,जीवन आभाव ग्रस्त स्वजनों को अपने नेत्रों के सामने कालकवलित  होते देखना , भूख से दुधमुहें शिशुओं को बिलबिलाते ,मरते देखना गवारा था ,अगर गवारा नहीं था तो देश  का गुलाम होते देखना |
   वियतनामी जनमानस ने , सेज की नींद नहीं सोयी ,रोटी नहीं खायी जीवन  की तमाम आवश्यकताओं  का परित्याग स्वीकार किया, परन्तु मात्रीभूमि ,स्वतंत्रता निहितार्थ कभी स्वप्न में भी नैराश्य व पराधीनता को अंगीकार  नहीं किया | शारीरिक ,मानसिक वैचारिक प्रतारणा के वावजूद उनका स्वदेश प्रेम का ध्वज शिखर को छूता रहा | 
लिंग अनुपात घट कर  01 :0.4 हो गया ,फिर भी वियतनामी जीगर मजबूती से दुश्मन का सामना करता रहा | बस्तियां बीरान, जंगल आबाद होने लगे ,गुरिल्ला युद्ध आकर लेता है | 
    २४० किलीमीटर  में फैला यह जंगल शरण स्थली बनता है वियतनामी वीरों -वीरांगनाओं की  जहाँ से देश -प्रेम की अलख जगाते रहे , स्वतंत्रता की मशाल अक्षुण  रही | नितांत संकरी सुरंगों में जीवन पलता रहा ,हथियार बनते रहे ,युद्ध की आवश्यक सामग्रियों का निर्माण चलता रहा ,दंश पाए तो प्रतिदंश देते रहे , घात- प्रतिघात का व्यूह रचते रहे,अंग -प्रत्यंग जख्मों से अतिरंजित होता रहा  रिसते घावों से पीर की जगह प्रेरणा जगती रही ,विषमताओं में भी स्वदेश राग  कायम रहा |*



      आज वियतनाम अपनी जिजीविषा आत्मबल को सफलता का पर्याय बनाता जा रहा है ,खेतों में लहलहाती   फसले,फलों से लदे बृक्ष,उन्नत कृषि संस्थान,उन्नत शिक्षा संस्थान , वैज्ञानिक अनुशंधान केन्द्रों  कल कारखानों का त्वरित गति से विकास , ऊँची -ऊँची अट्टालिकाएं  होटलों ,व्यवसायिक भवनों का निर्माण ,प्राकृतिक संसाधनों का सुव्यवस्थित उपयोग व विकास  पर्यटन ,घरेलु कुटीर उद्योगों का विकास, निश्चित रूप से एक युद्ध से जर्जर, टूट चुके गरीबी अशिक्षा भुखमरी दैन्यता से गुजरे देश को शक्ति व भव्यता प्रदान कर रहा है | युवाओं का उत्साह कार्य के प्रति समर्पण देश हित चिंतन उनके संस्कारों को लक्षित कर रहा है ,जो शक्तिशाली देश बनने  का शुभ संकेत है | 
      यद्यपि कि वियेतनाम की अभी आर्थिक स्थिति बहुत मजबूत नहीं है,वियेतनामी मुद्रा की श्थिति दयनीय है | लगभग बीस हजार दांग की कीमत  एक अमेरिकन डालर के बराबर है , संतोषजनक यह है की उनकी जी. डी. पी. की दर दयनीयता के बावजूद संतोषजनक है  |
         सांस्कृतिक विरासत में महिलाओं की भूमिका विशेष रूप से सराहनीय है ,किसी भी क्षेत्र में वे अग्रणी भूमिका में हैं विशेष रूप से शिक्षा में ,वियतनाम की सडकों पर उनकी संख्या  व सहभागिता उनकी  दासतां बयां  करता है  *
         हमने जब वियेतनाम की भूमि पर कदम रखा सारे मिथक जो हमने पढ़े- सुने थे ,हकीकत से लगने लगे |सलाम करते हैं वियतनाम के नायकों ,जनमानस को  जिसने विषमताओं,विपदाओं  के जंगल में सुगन्धित पुष्प व कचनार बेलों का उपवन सजा दिया है ,शायद अब उसमें विष बेल या काँटों का स्थान नहीं है | 

                                                                                                                            -  उदय वीर सिंह 

मंगलवार, 25 जून 2013

आधार मिलना चाहिए-

आधार मिलना चाहिए-  


मुफलिसी के राग से अब दूर जाना चाहिए 
३२ का मिलता दाम है,अंगूर खाना चाहिए -

इश्तिहारों में गीत सुन्दर नित नए निर्माण के  
व्याज  भारी  हो भले  ,घर कार होना  चाहिए -

रह गए हम आज पीछे राज आखिर खुल गया 
रोटी से क्या है वास्ता,घर  फोन होना चाहिए-

चोर , भ्रष्टाचारियों  से  संसद  जब  आबाद  हो   
नाबालिग बलात्कारी को पुरस्कार मिलना चाहिए -

दामिनी  के  दर्द  में , हमदर्द  होकर  क्या मिला 
आखिर किसी को जालिमों से प्यार होना चाहिए -

राशन  कार्ड, पहचान - पत्र  से देशवासी दूर है 
पाक ,बंगलादेशियों को आधार मिलना चाहिए- 


                                                   - उदय वीर सिंह  


रविवार, 9 जून 2013

याद आया..

रहा   गुमनामियों     में    ताउम्र 
ना भूले भी किसी को याद आया 
मेरी  रुखसती  पर  सबाब आया 
ख़त      का        जबाब     आया -
जब  चला  अंतिम सफ़र मितरां 
दौर-ए- फ़साना बहुत याद आया-

                  --   उदय वीर सिंह 

                   

  

मांगता है रौशनी किसी और से -

शराफत  पसंद  इमारतें  बंद  हैं  मुद्दतों  से 
शायद शरीफ शराफत से बावस्ता नहीं  रहे
***
कर  इजाफा  चाहतों में , कह  रहा  गंतव्य  तेरा
मुमकिन नहीं जो आज है, कल उसी को सर करोगे-

संगमरमरी  बदन  के  पढ़ते  रहे   कसीदे 
शिनाख्त  करता  साया , संगमरमरी नहीं होता -
***
चले घर से फरमायिशों, ख्वाहिशों की इमदाद थी  
कहीं दूर रह गयीं  हसरतें ,ख्वाहिशें गाफिल न हुयीं - .
***
बुलंदियों  का  चाँद  लेकर  क्या  करूँगा  मैं 
वो हर रोज  मांगता है  रौशनी किसी और से -

***
फलसफों की बिसात क्या  है दौर -ए - तलाश
यकिनन आज कायम है कल बदल जायेगा -

                                          उदय वीर सिंह 


गुरुवार, 6 जून 2013

मैं तेरा साया हूँ ...

तू   हमसफ़र  है , मैं  तेरा  साया हूँ 
जब भी आया हूँ साथ आया हूँ -

वक्त ने जब भी छोड़ा है तेरा दामन  
यक़ीनन मैं वक्त छोड़ आया हूँ -

ज़माने की फितरत है ,भूल जाने की 
मैं ज़माने को भूल आया हूँ -

आई मुश्किल रिश्तों ने साथ छोड़ा है,
हाथ पकड़ा है ,मैं निभाया हूँ -

तेरी जाति धर्म फिरका पूछा कभी नहीं 
तू  मेरा सरमाया मैं तेरा साया हूँ 



                                            - उदय वीर सिंह . 

रविवार, 2 जून 2013

कौन्तेय तुम्हें कहना होगा .....





















कौन्तेय तुम्हें कहना होगा ..... 

मुझे जन्म मिले या मोक्ष इतर  

जब तक बसुधा पररहना होगा 
स्थान  दिया   यदि  कोख मुझे 
कौन्तेय   तुम्हें    कहना  होगा-   

ज्ञात   नहीं   अपराध   हमारा 
क्यों  जीवन    अभिशप्त  हुआ 
पल पल  भींगा है त्याज्य तेरा
हृदय    ज्वाल   में   दग्ध हुआ -

आ, त्याग   भव्य  प्रासादों को 
मेरे    झोपड़   में   रहना  होगा -

मैं   कह   सकूँगा ,तूं   मां  मेरी ,
तुम  पुत्र मुझे , एक बार  कहो ,
मैं    भी     तो   तेरा   जाया  हूँ 
अब  भरी  सभा स्वीकार करो -

ममता  - माया    दो   राहों  से 
कोई  एक   तुम्हें चुनना होगा-

तेरे  तो  पुत्र   अनेक, अनोखे   
मेरी   तो   एक    दुलारी   मां 
जो वैधव्य  तुम्हारे साथ नहीं 
तो  क्यों  संचित  लाचारी मां ? 

अपना     पक्ष      स्पष्ट   करो 
मेरा    भी       सुनना     होगा -

मिथ्या प्रलाप अतिशय प्रघोश 
किस   वेदन   को    हर  पाया 
तज ,   स्पंदन  संवेदनशीलता 
घर, किसी  हृदय में  कर पाया-

तूं छाँव  न दे  निज आँचल की 
पर अपमान मेरा  ढकना होगा -
कह अंत करो बिखरा प्रतिवेदन 
किस ज्वाल  मुझे जलना होगा -

मैं   सूत   पुत्र ?   या   राजपुत्र ?
या  देव  -  पुत्र  ?  कहना  होगा -

                               -  उदय वीर सिंह।