बुधवार, 30 मई 2012

उड़ने को ..


उड़ने     को      आसमां     है 
घर   बनाने  को  जमीं होती -

अश्कों     का   सिलसिला  है 
जब  आँखों  में , नमीं   होती-

आते   हैं  , ख़यालात    बहुत ,
जब  किसी  की,  कमीं  होती-

बनती    है     गल ,   फ़साना ,
जब मोहब्बत से बेरुखी होती -

हर्फ़ - ए -  वरक   मुफीद   है ,
जो   किताबों  में  नहीं   होती -

कहने        को      दासतां    है ,
जो   यादों    में,   बसी    होती-

हिजाबों      में    घर     बनाते,
अदाएं   जो    मखमली   होतीं-

                                 --- उदय वीर सिंह 

                         

  

रविवार, 27 मई 2012

प्रतिदान

न देखी  गयी
जवान बेटे की वेदना ,
हाथ जोड़े ,अश्रु  भरे नेत्र ,
दारुण पुकार !
हे ! कलयुग के भगवान  !
मेरा गुर्दा ,
मेरे बेटे को लगा दो ...../
आलम्ब है ,
अपने मासूम शावकों का ,
भार्या ,माँ बाप का 
आधार स्तम्भ है ,
गिरने से बचा लो ...../
जांचोपरांत ,
पाया गया -
प्रत्यारोपण  संभव  नहीं
गुर्दा  मात्र  एक  है.........
विस्मित  नेत्र ,पूछते हैं प्रश्न-
क्यों ? कैसे  ? 
क्या  ईश्वर  ने मुझे एक ही गुर्दा दिया था ?
नहीं ...चिकित्सक बोला -
खो  चुके  हैं ,     .... 
कही स्मृति दोष तो नहीं आप को  ?....
हाँ  दोष है ,स्मृति का नहीं 
विपन्न ,व असहाय  होने का.......
छिनैती को आपकी भाषा में 
शायद खोना  कहते हैं /
अदालत में मुंसिफ 
लाम  पर सैनिक 
दोपहर में सूरज ,
खो जाता है ,
फिर हार्निया  के आपरेशन  में 
गुर्दा खो जाये 
तो आश्चर्य नहीं.....
बधाई है डाक्टर, 
आप की स्मृति
शेष है ,
शायद ,मनुष्यता की 
राख  ही
अवशेष 
है  ......


                                      उदय वीर सिंह 
                                       27 - 05 - 2012







शुक्रवार, 25 मई 2012

गुरु अर्जन देव जी

गुरु  अर्जन देव जी [ 5th गुरु ] 
              
                 {  प्रथम शहीद गुरु }
      यूँ तो समूची सिक्खी ही शहादत व आत्म निरीक्षण का दतावेज है ,उसके  अंगों  पर जब हम दृष्टिपात करते हैं , रहस्य, रोमांच  और  अविस्वसनिय  क्षितिज के दर्शन होते हैं  / सिक्खी   के  विषद  स्वरुप  की व्याख्या की सामर्थ्य  तो  मुझमें नहीं है ,परश्रद्धांजलि  स्वरुप पांचवें गुरु अर्जन देव जी की शहीदी दिवस की  पूर्व संध्या पर हृदय  से  अपने  श्रध्दा  सुमन अर्पित  कर रहा हूँ ,इस विनम्र  अरदास के साथ की , सच्चे पातशाह ! मुझे इतनी सामर्थ्य देना की अपने हर जन्म में, आप जी दे बनाये रस्ते पर ,चल तेरी शान में ,अपने को कुर्बान कर सकूँ  /

     पांचवीं पातशाही  को आप जी ने सुशोभित किया / 15 अप्रैल 1563  को श्री गोविंदवाल  साहब में ,माता भानी जी, की कोख़ से गुरु रामदास जी के तीसरे पुत्र के रूप में पृथ्वी पर पदार्पण / माता गंगा जी केसाथ चार लावे ले दुनियावी जीवन के सरोकारों को सफलीभूत किया /  एक पुत्र  गुरु हरगोबिन्द साहिब जी के रूप में पुत्र-रत्न  की प्राप्ति  /  25 वर्ष की आयु  में गुरुगद्दी पर विराजमान हुए  /

     आदि -ग्रंथ  साहिब जी का संकलन आप जी द्वारा हुआ /  2218 श्लोकों में,30 मधुर  रागों  के  श्रीमुख  द्वारा वाणी  दिग -दिगंत में पूज्य हुई / वाणी जीवन  का आधार बनी / जिसमें गुरुओं ,पीर ,फकीरों ,भक्तों जो विभिन्न धर्मों जातियों ,सम्प्रदायों से थे ,सामान रूप से आदर और प्रतिष्ठा प्राप्त    है  /
        आपजी  ने हरमंदिर साहिब [तख्त ] अमृतसर ,का निर्माण किया / विशिष्टता यह कि एक मुसलमान ,हजरत  मियां मीर ,के हाथों अकाल -तखत  " हरमंदिर साहिब जी " की नींव गुरु जीने रखवायी / जो  आज स्वर्ण मंदिर के नाम से जाना जाता है / इसमें बिना भेद हर किसी व्यक्ति का मंगल स्वागत है /जाति  लिंग ,रंग ,धर्म  का कोई स्थान नहीं है / मनुष्यता ,समानता , सद्ज्ञान  का सर्वोच्च आदर है / गुरु व सिक्खी  के दरवाजे मानव -मात्र  के लिए सदैव खुले हुए हैं /

        आदि-ग्रन्थ साहिब जी का श्री हरमंदिर साहिब में औपचारिक  स्थापना की / सिक्ख धर्म को अपनी ,लिपि अपनी भाषा , और सम्यक लिखित दर्शन प्रदान किया , जिसके लिए क़यामत तक सिक्खी ऋणी  है /

     आपने मनुष्यता को सारगर्भित रूप ,दिया  अनेक नगर ,सरोवर , कुष्ठ- आश्रम ,सेवा-आश्रम  बनाये / लाहौर में पड़े अकाल में आपजी ने बेमिसाल सेवा भाव प्रदान किया /  आपजी दे  " मनसा, वाचा ,कर्मणा ",के अनन्य भाव से प्रभावित हो ,जन -सैलाब ,सिक्खी धारण करने लगा / समकालीन शासकों ,धर्माचार्यों  को सीधी समृद्ध ,सहिष्णु  वाणी ,रास  नहीं आई  /  जहाँगीर पुत्र अकबर को ,नक्सबंदी समुदाय ,व कुछ कट्टर असहिष्णु हिन्दू भी ,आपजी दे खिलाफ , गोलबंदी कर, कान  भरे / क्योकि सिक्खी ,अपने मनुष्यता ,के धर्म को बखूबी निभा रही थी  / धार्मिक पतन को बांध बन कर रोक रही थी  / शहजादा  खुसरो पुत्र जहाँगीर भी ,आप जी दी शिक्षा ,वाणी  का प्रशंसक  था /  जो जहाँगीर व उसके जमात के लोगों को पसंद नहीं था /

      आप जी दी बढती लोकप्रियता ,सिक्खी की सुगंध  वतावरन में कस्तूरी की तरह फ़ैल रही थी ,जो मुस्लिम शासकों व अन्य को सहन नहीं था /  अब मौके की तलाश थी ,सिक्खी  विरोधियों ने अपने धर्मों  का शत्रु और शहजादा  खुसरो {जो अब जहाँगीर के खिलाफ बागी बन गया था } का आश्रयदाता बना कर आपजी  दे खिलाफ भड़काया  / आपजी नू शत्रु घोषित कर दिया गया  /

       बादशाह  का फरमान आया - की इस्लाम  या मौत दोनों में से कोई एक कबुल  करना होगा / आपजी ने इस्लाम काबुल करने से स्पष्ट मना  कर दिया /

     तमाम प्रलोभन ,भय ,दिए गए ,अंततः   असीम यातना ,दुःख [ लाल गर्म तवे पर बिठाया गया ,सिर ऊपर से अत्यंत गर्म रेत डाला गया ,हाथ -पैर बांध नदी में डाला गया ] / पर धन्य -2परमात्मा के स्वरुप आप अडोल रहे / कोई शैतानी ताकत आपजी नू ,मुसलमान  नहीं बना सकी / अंत में 30 मई 1606 को  लाहौर में अकथ संत्रास दे शहीद कर दिया गया  , सिख्खी नहीं छोड़ी ...

        गुरु महाराज ने यह बात स्पष्ट कर दी - सिक्खी शहादत दा  मार्ग है -

                      "जो तो प्रेम खेलन का चाओ ,सिर धर तली, गली मेरे आओ  ,
                       इह     मार्ग    पैर   धरिजे ,  सिस    दिजै   कांह    न    कीजै -"

       गुरु अर्जन देव जी महाराज ,सिक्ख धर्म के पहले  शहीद है ,उनके बाद आज तक यह परंपरा हमारे रगों  में खून बनकर प्रवाहित है / और प्रवाहित रहे यही मेरी, सच्चे पातशाह के प्रति, सिक्खी के प्रति  , सच्ची श्रद्धांजलि होगी , सच्चा वारिस कहलाने का हक़ प्राप्त होगा -

                  हुनर  देना शहादत  का ,रोशन  रहे  चमन मेरा ,
                  कट जाये झुकने से पहले , झुके तो तेरी राह  में.....

                            " बोले सो हो निहाल ,सत  श्री अकाल" 
     
                                                                                                     उदय  वीर सिंह 
                                                                                                        24-05-2012


मंगलवार, 22 मई 2012

द्वि - कोशीय ,

प्रीत  न बांधों  रीत में ,बिन बांधे  बंध   जाय,
पावक -पुंज, सनेह सम ,ज्यों बारे जल जाय -


प्रश्न -  पयोधि   से  दूर है ,प्रीत   संग  है  मीत ,
शंसय  की   बंशी  परी , तिरीसठ  हो  छत्तीस-


शहनाई   न   जानती ,  बाजे   मोल  - बेमोल,
हृदय में बजते राग को,क्या जाने डफ व ढोल-


पलक को लागा हाथ कब ,आंसू को कब पांव,
गति  निरंतर  साथ  है , बादल  को कब छाँव-


टूटे  श्वांस  न  जीव   है , टूटे   स्वर  नहीं  गीत,
अधर सजे  जब गीत हों ,मुक्त  हार और  जीत-


तरुअर   छोड़े   छाँव   को , सागर   छोड़े  नीर,
विरहन  छोड़े   गाँव   को , हृदय   न छोड़े  पीर-


पथिक  पड़ोस   न  पूछता , पूछे  अग्रिम ठौर ,
रात  बितायी चल पड़ा ,लगन  हृदय  की और-


पांव , पथिक ,पथ ,पालना ,जो  पाए  विश्राम,
अवसर  चूक  अधोगति ,  नींद  परायी   धाम-


आँखों   में  सपना  बसे , काजल  से  धुंधलाय,
कारे  केश घटा  बन  छाये , सावन सुना जाय-


                                                         उदय वीर सिंह .
                                                          22- 05 - 2012
  




   
       











रविवार, 20 मई 2012

लहलहाती फसल अफीम की ....


खिलकर   कीचड़   में हमने आसन बनते
 ऐश्वर्य         का   ,    कमल        देखा    है -

अनुत्तरित   है  रोटी  का प्रश्न ,  लहलहाती 
हुयी ,  अफीम     की     फसल     देखा   है -

कर्मयोगी  की  नंगी ,नुमायिस बनी लाश
 कुत्तों     को     रेशमी     कफ़न     देखा   है  -


खुद्दारी  व   ईमानदारी   के  पैरोकारों  की 
मौत  पर ,  हंसती   हुयी   नसल   देखा  है  -

किसने  कहा  की शाम होती  है  सवेरा भी 
दर्द   की   आँखों  में,  सदा  अँधेरा  देखा  है -

तासीर देख इन्सान की इंसानियत गवारा
 नहीं, इन्सान बेघर,बुत को महल देखा  है -


न मिलने का हलफ लेते हैं, खून और खंजर 
उदय    सरेआम   उनका   वसल     देखा  है-


मांगता रहा  सिजदे  में ,फकत दो वक्त  की 
रोटी ,क्या मिला दामन  में ,फजल  देखा है- 


                                                     उदय वीर सिंह  



बुधवार, 16 मई 2012

माना कि धरातल ..


माना कि धरातल ..


माना   कि  धरातल  ये  समतल नहीं है  ,
सागर  भी  है , सिर्फ   मरुस्थल   नहीं है,
समानांतर   रेखाएं  , माना  न   मिलतीं ,
दिशा    और   दूरी   में   विचलन  नहीं है 

कहीं   शाम   ढलती    कहीं   पर  सवेरा ,
प्रभाकर     कहीं  ,  चाँद    डाले   है   डेरा
कहीं   नींद   में  पुष्प,  कहीं   मुस्कराए ,
कहीं   नीड़  में  खग , कहीं  नभ को घेरा


रेत  में   भी  बही   है , गंगा   कि   धारा,
तपस्या  भगीरथ   की   निष्फल नहीं है-


शीत   मेघों   के  घर, दामिनी  भी   बसे ,
पाषाणों   के  अंतस,  है शीतल सी  धारा-
पादप   कंटीले  ,  केवल   कांटे   न   देते ,
मीठे    फलों  , पात  ,   फूलों   को   वारा -


आँखों   में , सागर  में,  सावन में   पानी ,
अर्थ  पानी  का  केवल,गंगा-जल नहीं है-  

कर्णप्रिय सुर मधुर. मृत बांसों से स्वर ले,
वाद्य -यंत्रों  ने . स्वर  की  भाषा  लिखी है -
विष   भी  है , औषधि  का  संचार  साधन
मरने वालों ने, अमरता की गाथा लिखी है-


माना    की    जीवन   मुकम्मल  नहीं  है  
फिर   भी   निराशा   का   स्थल   नहीं  है-


                                          उदय वीर सिंह  
                                            16-05-2012





सोमवार, 14 मई 2012

वो आया था

वो आता है  ,
बेल बजाता है ,
मुझे देख हकलाता है 
बाबूजी ! मैडम ...
तरन को देख सिर  झुकाता है 
कुछ दे दीजिये 
हाथ फैलाता है ,
पत्नी पूछती  है 
फिर भाग आये आनाथालय से ?
जी नहीं ,
बाप उठा लाया ,
लगा दिया  हलवाई की  दुकान पर 
अंगुलियाँ गल गयीं 
काम से हटा दिया ,
अब  क्या  करूँ ? 
बड़ी  बहन  थी  सन्नो
कल  बाप  ने  बेच  दिया
खूब  रोई  वो ,  मैं  भी  ....
बोली  थी  मैडम  को  बताना .../
बाप  ने  मारा ,
मना किया  ..
कल  नयी  माँ  आएगी ..
किससे  नाता  जोडूं ?
भाग्य  से  ,बाप  से  ...या  मौत  से
माँ  की  याद आती  है
आता  हूँ  ,
आप  में  माँ , पाता  हूँ
शायद  आप  नाराज  हैं ,
मैं  माँ  को  भी , भूल  जाना  चाहता  हूँ
कल  दूर  बहुत  दूर
माँ  के  पास
जाना  चाहता  हूँ  ....
खाली हाथ ही था ,
कुछ दे पाते कि
टूर गया......
हम दोनों देखते रहे ....
नहीं  आएगा ,
जो  आता  रहा  .......


                          उदय वीर सिंह
                            14-05-2012






 


    

शुक्रवार, 11 मई 2012

दिनकर

हो  अरुणोदय ,सुप्रभात  यश -गान 
 सतत         तुम्हारा          दिनकर -

खिले पुष्प गुच्छ ,तरुनाई  कोपल मांगे 
खग -बृंद  सहज आनंद, मधुरतम मांगे
ताम्र वर्ण, नव , नभ - प्रभा  आलोकित ,
क्षितिज   सरल,   सहज   आँगन   मांगे -


तुषार   जड़ित  , हर    कुसुम    पात,
किसलय में धमक तुम्हारा दिनकर-


शुभ्र , रश्मियों   के  डेरे , फैलाये  बांह ,
साधक   , सिद्ध, शैव आराधन    मांगे-
मिटे    कलुष , पाप , उद्वीप्त   हृदय  हो ,
सर्व- जन सुखाय,समृद्धि का वर मांगे -


उर्जा-  नवल , नव  - शक्ति   -  पुंज ,
निधि  उपहार -तुम्हारा    दिनकर-

जले  तम , उर  का , विकसित   हो ,
चेतना ,यश ,अर्जन ,सुखद  जीवन -
वैर ,  नैराश्य  ,  प्रतिकार,    हीनता
हो  विलुप्त , निष्पाप   बने  अंतर्मन -


प्रतीक्षारत   कोष  ,   किरण   देखे,
हृदय से आभार,तुम्हारा   दिनकर-


जल, थल, व्योम , दिग  - दिगंत ,
सुर, नर  , असुर , यक्ष   , गन्धर्व  -
चराचर,मूर्त,अमूर्त ,पुरा - नूतन ,
संचार बिन अपूर्ण ,जीवन  वैभव -


निर्विघ्न   गमन ,  निर्वात   ,वात,
सृजन- सृष्टि काहस्ताक्षर दिनकर-


अर्पित,अर्घ, पयोधि  विनीत ,नित 
मंगल   गान    तुम्हारा     दिनकर -

                                                  उदय वीर सिंह  

बुधवार, 9 मई 2012

बाबा- बाजार

बाबा या व्यापार  ,
आस्था का हथियार ,
धर्म के ठेकेदार !
प्रेम की बौछार ,धन-धान्य,अमृत
कृपा वर्षा रहे हैं ..
कोलाहल है, बाजार में नित
नए बाबा आ रहे हैं ..
आधिपत्य था,जिनका सदियों से
घबरा रहे हैं ...
धर्म ग्रंथों के अनुसार
बाबा नहीं आ रहे हैं .....
अकूत दौलत आती  रही है ,
दसवंध के रथ चढ़ ,
कृपा मिलती रही , अर्थ के बल /
जनता लुटती रही
धर्म-सेवक ,धर्म- स्थान
कुबेर बनते रहे ....
कोई प्रतिवाद नहीं,
व्यवस्थानुसार था  /
परिवेश बदला है ,
कृपा खरीदी- बेचीं जा रही हैआज भी /
पीठ- पीठाधीश्वर
बदल गए हैं ....
निवेस  जारी  है ,
प्रतिवाद सिर्फ इसलिए कि-
बैंक बदल गए हैं ,
सरोकार वही ,
बाबा बदल गए हैं ....  /


                    उदय वीर सिंह .
                    09-05-2012

सोमवार, 7 मई 2012

संवाद करो

मौन   तोड़ो  ,अधर  खोलो  ,संवाद    करो ,
खंडित   हो  पग - बंध , तीब्र आघात  करो -


ध्येय ,  धर्म, संकल्प, चरित्र   सुचिता ,
आत्मबल अनुराग अस्मिता आलोक -
प्रतिभा ,प्रयोग   ,प्रयत्न  पराक्रम प्रज्ञा 
हृदय,    हुलाष  ,   हठ    हित   आमोद- 
वरण शुभ का करो ,सृजन आत्मसात करो -


शक्ति  ,  संचित  ,  संचरित ,   शमनार्थ 
विद्वेष , विकलता  , व्यसन    दमनार्थ ,
उतिष्ठ,  उत्तान,  उमंग -  उर , उर्जावान 
उरस्य व्यग्रता,विजय,वरण निहितार्थ ,
स्वर  संधान , मृदु- तान भरो, आलाप  करो-


निशा   निमित्त, निखिल  नभ नम्रता ,
आवरण    आसन्न ,  आभा   अंचिता-
पुष्ट -   प्रतिकार ,    प्रमाद  ,  प्रवंचना ,
सत्य,  स्वीकार  ,सदैव सत - संघिता-
जय   बोलो , प्रवीर ,  प्रखर   संघात    करो-


शत्रु- दमनार्थ ,रक्षार्थ गौरव,प्रतिघात  करो -


                                             उदय वीर सिंह 
                                              07-05-2012



शनिवार, 5 मई 2012

उम्मीद

जब   रोशनी   नहीं    थी  , रोशन  उम्मीद  थी ,
आज   भी   उम्मीद है , कल   भी   उम्मीद थी -

कुलबुलाते   रहे   सोते,  कोहसारों  के  दरम्या ,
दरिया   की   शक्ल  लेंगें , उनकी  उम्मीद  थी -

याराना  आँधियों  से  , फनाही  का  खौफ  क्यूँ  
जख्मों ,जाफ  में भी  कायम ,शाने  उम्मीद थी ,


तरन्नुम  के साथ मरसिया गाफिल नहीं कभी   ,
हंसने  की , शहरे- गम  में , कायम उम्मीद थी-

क़त्ल होने का डर हमेसा,कायम दिले-कातिल ,
दिले -  सरफ़रोश  हसरत, शहीदी   उम्मीद थी -

तंजीमे रकीबपन   कभी,  करती  नहीं उल्फत ,
इन्सान को इन्सान से ,इंसानियत  उम्मीद थी -

कहीं  जाना   न   छोड़  तन्हां ,संगदिल  राह  में 
एक हमसफ़र कोअपने,हमसफ़र से उम्मीद थी -

                                                        उदय  वीर सिंह .
                                                           05 - 5 -  2012
                                            


    

गुरुवार, 3 मई 2012

बा -अदब

जब  रोशनी   दिखी, तो  आफ़ताब  कह  लिया ,
न हो सका जो अपना,उसको ख्वाब कह लिया-
*
सुरमा   लगाऊं  आँख   में  कोशिश   मेरी  हुयी ,
लग   गया   कपोल   में , तो   दाग  कह   लिया-
*
मंजर   था   मेरे  सामने ,  गुनाह     जब   हुआ ,
मुकर   गए    गवाह  , तो    बेदाग   कह   दिया-
रफ्ता  -    रफ्ता    जिंदगी ,  सवाल   हो   गयी ,
काँटों   को  ही   हमने  गुल, गुलाब   कह  लिया-
*
इंसानियत   भी   खो  गयी , इन्सान  की  तरह,
पत्थरों   के   बुत   को ,  लाजवाब   कह   लिया-
*
तफसील  से ,  गुरबत  मेरी  तकसीम  हो  गयी ,
जो रकीब  भी  मिला  कभी ,आदाब   कह लिया-
 *
पर्दा  हया   को   न   मिला  , बे - पर्दा  जब   हुए,
ओढ़  अंधेरों   का   दामन  , नकाब   कह   लिया-
*
                                                        उदय वीर सिंह
                                                        03-05-2012. 



मंगलवार, 1 मई 2012

निवाला गरीब का

                                    मई दिवस  की याद  में..
    


मुशीबत   बन   गया है, निवाला  गरीब का,
हसरत   बन    गया   है ,उजाला  गरीब  का-

खैरात  में    मिला   कभी  ,पाया  हिजाब से  
दर्द   बन    गया   है  ,  दुशाला    गरीब    का  -

कमाल है कि किश्ती , भंवर से  निकाल ली  
किनारे  आ   डूबता  है , सफीना  गरीब   का -

वो    ठोकरों   से   पूछा  , अपने   गुनाह  को  ,
अब   नमूना   बन   गया है, फूटे  नसीब  का  -

कुर्बान   कर  दी जन्नत , उम्रो , जमाल  भी  
बदबूदार   हो   गया  है  ,पसीना   गरीब  का  -

माहताब  ढूंढ़  लेता , मयखाना वो  महफिलें  
अब तक नढूंढ़ पाया ,आशियाना  गरीब  का  -

                                          उदय  वीर  सिंह  .