मंगलवार, 30 जनवरी 2018

मैं करता जीवन की बात

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मैं करता जीवन की बात मानवीय संवेदनाओं की पैरोकारी कठिन नहीं तो सरल भी नहीं ,यह किसी दर्पण में नहीं मानवीय हृदय के अन्तः प्रकोष्ठों की विषय वस्तु है . बाँच सको तो बाँचो .।
 मैं करता जीवन की बात--------
माना मृत्यु अवश्यंभावी
क्यों त्यागूँ जीवन की बात
तुमको कानन रीत मुबारक 
मैं करता जीवन की बात -
हमको रोटी दाल के सपने .....
तुम करते कंचन की बात
तुम पत्थर का हृदय लिए
मैं करता जीवन की बात -
प्रीत पवन की सरहद खींची
जिह्वा पर प्रतिबंध लगा
तुमने प्रस्तर ककड़ साजे
मैं करता मधुवन की बात -
खाईं उर में बनी रहे
कितना अभिशप्त चिंतन तेरा
तुमको प्यारे भेद विषमता
मैं करता समतल की बात -
राग द्वेष का मरुधर फैले
बिखरे कंटक नागफनी
नेह वल्लरी परिमल मं
मैं करता उपवन की बात -
रिश्तों का रसायन भूल गए
वलय ज्वाल की अनुरक्ति
तुमको भाते लू लहर अंगारे
मैं करता हूँ घन की बात -
वैर सृजन से क्यों करते हो
करते क्यों विघटन की बात
तुमको प्यारा घोर तमस
मैं करता नूर नयन की बात -
खंड खंड संबंध हो जाए
तुमको प्यारा हित अपना
अमर रहे डोर मन मानस
मैं करता बंधन की बात -
उदय वीर सिंह

एक सरोकारी शैक्षिक संस्था ' पहल '

' पहल ' एक सरोकारी क्षैक्षिक संस्था जीवन के विषद आयामों को परिषकृत व विकसित करने की मुहिम में एक ईमानदार उच्चतम पहल करती हुई ...... मेरी लखनउ अल्पकालिक यात्रा में पहल कर्मयोगियों के साथ कुछ स्मरणीय पल । उनके सेवा व प्रयासों को सफलताओं के पर लगें मेरी कामना .... ।
 उदय वीर सिंह

बुधवार, 24 जनवरी 2018

हृदय में आज सून्यता क्यों है

था मधुर गीत का कलरव अखंड
हृदय में आज सून्यता क्यों है
था नेह सलिल का सागर अनंत
हृदय में घोर दैन्यता क्यों है

था सदद्भाव मान का क्षितिज सुनहरा
मानस में बसी वन्यता क्यों है -
थी रक्षार्थ मूल्यों को अर्पित स्वांसे
जीवन में संस्कार हीनता क्यों है -

विप्लव तमस में पथ प्रकाश
असमर्थ पगों को गंतव्य मिला
था प्रेम का वाचक मानव मन
खंडित आश विषमता क्यों है -

था लाड़ दुलार का समर्थ भाव
सज्जित उपवन किसलय प्रसून
मानवता के उच्च शिखर में
आज असीम  निम्नता क्यों है 

उदय वीर सिंह 




शनिवार, 20 जनवरी 2018

सिर्फ यादों की पूंजी .....

थाली में चाँद को माँ ने उतारा है
हारी हुई जींद को विजेता पुकारा है
आँखों में आए निराशा के हंजू जब
ममता की गोंद दे नेह से दुलारा है
रब भी देता माफी किए गुनाहों की
हारे जुआरी को भी माँ का सहारा है
देखा जमाने ने तिरछी निगाहों से
करुणा का भाव ले नेह से निहारा है -
जर्द हुए पातों को डालियों ने छोड़ा जी
जीवन सारा देके निज फुनगे संवारा है
जर जमीन जोरू दौर छोड़ देते हाथ जी
मिट कर भी कोख को रास्ता दिखाया है -

उदय वीर सिंह

रविवार, 14 जनवरी 2018

गंदगी को गुलाब कहने वाले -

शिकार तो तुम भी होगे
हकीकत को ख्वाब कहने वाले
रख पाओगे अपने पास
गंदगी को गुलाब कहने वाले -
झोपड़ी ही नहीं बिलट जाते हैं
किले और किलेदार भी सुनामी में
ईश्वर और धर्म को अपनी
जागीर समझने वाले -
तारीखें गवाह हैं जब भी
भूली इंसानियत इंसान ने
एक चिराग को रोया है
खुद को आफताब समझने वाले -
नक्कारों में दब जाती है
माना तूती की आवाज
मगर आवाज कभी मरती नहीं
जिंदा रहते हैं इंकलाब करने वाले
उदय वीर सिंह