शुक्रवार, 29 सितंबर 2017

आत्मा व वैद्य टूर गए बीमार रह गया

कितना वसूलते कर सुखी रगों से
आत्मा वैद्य टूर गए बीमार रह गया
खरीददार  रहे बाजार रह गया

चुकाने वाले  रहे उधार रह गया -
नामलेवा रहा घर परिवार में कोई
पर वसूली का पूरा अधिकार रह गया -
बंद हो गईं मिलें खाली मिल का मैदान
वो दिवालिया हो गईं समाचार रह गया
सिमट गए हाथ बिखर गए सपने
मालिक आबाद मुलाजिम बर्बाद रह गया

उदय वीर सिंह

रविवार, 24 सितंबर 2017

बेटी फरियादी नहीं हो सकती .....

वहसी लुटेरे जिस आँचल को फाड़ा
अपनी माँ से इजाजत अगर मांग लेते
कितने बे-खौफ हो कानून रब से
अपनी बहन बेटियों से ही डर मांग लेते -
नयन  हैं मुक़द्दस मगर नूर वाले नहीं 
नेत्रहीनों से ही नजर मांग लेते -
अंजान हो अपनी मंजिल से कितने
किसी हमसफर से डगर मांग लेते -
जलाने की पाए हो तालिम अपनी
आग सी धूप है एक शजर मांग लेते
लंका में सीता की आमद हुई है
राम भी आने वाले खबर जान लेते -
उदय वीर सिंह


रविवार, 17 सितंबर 2017

परिंदों से खाली बगान रह गए हैं ।

परिंदों से खाली बगान रह गए हैं ।
 टूटे पंख खून के निशान रह गए हैं ।
 बिखरे सपने टूटे अरमान रह गए हैं ।
 बैग मेंकिताबें लिखने के सामान रह गए हैं ।
 भविष्य सँवारने के आलय थे अब
 कत्ल करने के स्थान बन गए हैं ।
तक्षशिला नालंदा में पढ़ने परदेशी आते थे
 हम अपने देश में मेहमान बन गए हैं ।
एक चीख से चीख निकल जाती थी
वो कितना चीखा होगा वक्ते कत्ल
समझा जिनको मंदिर शमशान हो गए हैं-
उदय वीर सिंह

शनिवार, 16 सितंबर 2017

वो हिन्दी बोलते हैं

घर हिन्दी बोलता है!
अक्षांश कार को पार्किंग में खड़ा कर ड्राईङ्ग रूम में सोफ़े पर विराजमान हुआ ।चेहरे के भाव असंयमित मन उद्विग्न था तभी उसकी माँ डिम्पल गौरांग ने कमरे में प्रवेश किया, और सामने आलीशान सोफ़े पर बैठ गई ।
क्या बात है इतने उखड़े उखड़े से लग रहे हो शैरी ? नौकर मंटो को पानी लाने का आदेश देते हुए अक्षांश की माँ ने बेटे अक्षांश से पूछा ?
कुछ नहीं माँ पुछो तो ही अच्छा है सबरीना के होने वाली ससुराल अगर गया भी तो मैं आप और डैड के कहने से ही गया वरना मैं तो उन लोगों के नाम व कर्म से ही अपना पूरा अनुमान जाने से पुर ही लगा लिया था । क्या खूब सोच लिया आप लोगों ने एक आधुनिक हाईली क्वालिफाइड आइकून की शादी के बारे में ... ऑ फ अक्षांश बोल गया
पहले ठंढा पानी पियो .... परेशान न हो
माम मैं दृष्टिरथ गौतम के घर गया उसके छोटे से घर के छोटे से बरामड़े में मुझे बैठाया गया घर में शायद जगह थी एक छोटी सी टेबल पर एक गांधी जी के चश्मे जैसा चश्मा जो एक धार्मिक किताब के ऊपर रखा हुआ था पास में एक बेंच देहाती किश्म की पड़ी मिली । कोने में एक बुजुर्ग एक सफ़ेद सी थैली में एक हाथ डाले मौन हो कुछ करते हुए मिले वो मुझे कोई रेस्पान्स न दे अपने काम में लगे रहे मुझे अच्छा नहीं लगा ।
वो माला जप रहे होंगे माम ने कहा
जो भी हो भीतर घर में से आवाजें रहीं थी दरवाजे पर एक पर्दा बेतरतीब लटक रहा था । बड़ी आसानी से घर की आवाज मैं सुन सकता था
माम आप यकीन करेंगी ?सब के सब हिन्दी /भोजपुरी में बातें कर रहे थे ! हाँ भोजपुरी में हिंदी में
घर के कुछ मेम्बर से मेरी मुलाक़ात हुई मुझे लगा मैं किसी और युग में आ गया हूँ जहा विकास का नामों निशान नहीं है । पता नहीं कैसे दृष्टिरथ उस परिवार से इंजीनियर बना ...मुझे हैरान करता है उसका भी संस्कार कमोबेस वही होगा ।
मैं अपनी बहन सबरीना के लिए ऐसा घर ऐसा घर का लड़का नहीं चुन सकता माँ ।आगे आप लोगों की मर्जी । मुझे न्यूयार्क से शादी मे नहीं आना । एक्सकुज मी माम ।
माइ सन ! डोन्ट वरी ।मैं भी नहीं चाहती ये रिश्ता ,तेरे डैड ने ज़ोर दिया तो तुम्हें भेजा पता नहीं उनको कैसे पसंद आया वो भी एक डाक्टर होकर क्या क्या अनाप शनाप सोच लेते हैं ... खैर जो भी हुआ भूल जाओ सबरीना को भी यह पसंद नहीं है
वी हैव टु सर्च अनदर डोर ...नॉट इन इंडिया अबराड़ आलसो ....
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उदय वीर सिंह .



मंगलवार, 12 सितंबर 2017

किस शिक्षालय पढ़ी है कोयल

किस शिक्षालय पढ़ी है कोयल
जब बोलेतो प्रीत निकलती है 
संग बारूद लिए बैठी दुनियाँ 
जब बोले तो चीख निकलती है 
दरिद्र हुआ जनमानस कितना 
भाई के हक में भाई से भीख निकलती है 
छोटा है पर पूर्ण जगत 
माँ बापू बोले तो आशीष निकलती है 
उदय वीर सिंह




बह रहा है रक्त सम्बन्धों से

बह रहा है रक्त सम्बन्धों से
कह सको तो सपना कह दो -
तय तिथि स्थान पर दी गई मौत
कह सको तो दुर्घटना कह दो -
संस्कृतयों का आचरण प्रलेख बनता है
कह सको तो कवि की रचना कह दो--
तेरे घर की नीलामी में शामिल है वो
कहसको तो उसे अपना कह दो -
लुटेरों को लुटेरा ही कहूँगा मैं
कहसको तो उन्हें महामना कह दो -
किसी साख पर कबूतर नहीं उगते
कह सको तो पेड़ की दुर्भावना कह दो -

उदय वीर सिंह

शनिवार, 9 सितंबर 2017

जो मौन है वो कौन है

जो मौन है वो कौन है
जो बोलता वो कौन है
हैं कुंन्द विचार ग्रंथियां
जो सोचता वो कौन है
घोर तिमिर मध्य में
चिंघाड़ना है दैन्यता
शांत चित्त बोध ले
पथ खोजता वो कौन है
छोड़ कर के युद्ध क्षेत्र
जो कभी गया नहीं
संकल्प करके बीच पथ से
लौटता वो कौन है
विनाश उत्सवों में है
प्रखर प्रलेख बन रहा
हृदय के तंतुओं को
तोड़ता वो कौन है -
करयोग्य हुई संवेदना
चुकाना हुआ हरहाल में
राष्ट्र प्रेम को भी धर्म से
तोलता वो कौन है
उदय वीर सिंह



रविवार, 3 सितंबर 2017

कुछ और नक्कारे चाहिए

अभी भीड़ कम है 
कुछ और नारे चाहिए 
शोर अभी कम है 
कुछ और नक्कारे चाहिए 
चार दीवारोंछट मुकम्मल है 
बांटने को कुछ और दीवारें चाहिए 
शिकार किसका है मत पूछ 
कुछ और हरकारे चाहिए 
ये सब जानते हैं तलवारों ने 
जुल्म किया है 
कुछ और तलवारें चाहिए -
सूखी हुई झील कितनी सुनी है
 हम ईसे आंसुओंसे भरेंगे 
कुछ और शिकारे चाहिए -
विरसती नहीं लगता है शहर 
कुछ और मीनारें चाहिए -
उदय वीर सिंह  


शुक्रवार, 1 सितंबर 2017

समय के पाँव ने ...

समय के राग ने..
समय की छांव ने हँसाया भी बहुत है
समय की धूप ने जलाया भी बहुत है
समय के पाँव ने चलाया भी बहुत है
समय के घाव ने रुलाया भी बहुत है
समय की आँख ने दिखाया भी बहुत है
समय ने राज भी छुपाया बहुत है -
समय के राग ने गवाया भी बहुत है
समय के साज ने नचाया भी बहुत है
उदय वीर सिंह