मंगलवार, 27 दिसंबर 2016

आदर्शों को कुचल रहे... शपथ आदर्श की लेते हैं

वो नारों पर जीते हैं
हम नारों को जीते हैं
उनके हाथों में हाला
हम आँसू को पीते हैं -
सत्ता इनका गंतव्य
सेवा का आडंबर है
आदर्शों को कुचल रहे
शपथ आदर्श की लेते हैं
याद नहीं कल के वादे
जो मंचो से कहते हैं
पूरी होगी अपनी आशा
हम आश लगाए रहते हैं -
उनकी महफिल चाँद सितारे
चूर नशे में हँसते हैं
हम बेबस चौबारे गलियाँ
ले भूख यतिमी रोते हैं -

उदय वीर सिंह


प्राचीर भेद की गिरने दो -

उत्थान पतन तो सबका है ,
आंखो को रोशन रहने दो
प्रेम दया करुणा की वीथी
वीर मानवता को बसने दो -
शांति स्नेह भर सागर छलके
रस- धार धरा से बहने दो -
मिटे धुंध विनास की बदली
प्राचीर भेद की गिरने दो -
उदय वीर सिंह

रविवार, 25 दिसंबर 2016

क्रिसमस की बधाइयाँ

[ क्रिसमस की ढेरों बधाइयाँ ,शुभकामनायें ! ]
उत्थान पतन तो सबका है ,
आंखो को रोशन रहने दो
प्रेम दया करुणा की वीथी
वीर मानवता को बसने दो -
शांति स्नेह भर सागर छलके
रस- धार धरा से बहने दो -
मिटे धुंध विनास की बदली
प्राचीर भेद की गिरने दो -


उदय वीर सिंह

शनिवार, 24 दिसंबर 2016

सोणी गुरु ,गुरु- पुत्रों की राह

सोणी गुरु ,गुरु- पुत्रों की राह 
ऐसी मरनी जो मरे ,बहुरि न मरना होए - 
 बाल अवस्था जिसमें सोचने समझने की ,निर्णय लेने की अल्प सीमा ,राजनीतिक , सामाजिक, आर्थिक सोपानों के आरंभिक निर्माण का चरण ,समान्यतः अविकसित व थोड़ा ही होता है । दूसरी तरफ परिस्थितियाँ अत्यंत प्रतिकूल परिवार दूर- दूर बिखरा हुआ, माँ ,पिता ,भाई का छूटा संग  जो फिर कभी मिलन का प्रारब्ध न बन सका । उजाला भी मिला तो पूस की असीमित कठोर शर्दी में होती वर्षा की तड़ित से जो अट्टहास कर क्षणिक प्रकाश दे पहचान कम, संत्रास अधिक दे जाती । समाज अतिशय  भयभीत मत -बिभाजित बलहीन चाहकर भी सहायता देने में असमर्थ था  मात्र उसके पास था तो वेदन भरा मौन । अप्रत्यासित  भय कुंठा और निराशा । 
आतंक अत्याचार सहने को अभिशप्त ...... अपनों के विस्वासघातों ने अत्याचारियों को बल दिया । 
  गुरु गोबिन्द सिंह के दो पुत्र साहबजादे जोरावर सिंह उम्र मात्र 9 वर्ष  और सहबजादे फतेह सिंह उम्र मात्र 6 वर्ष साथ में दादी माता गुजर कौर जी ,सूबा लाहौर के नवाब वजीर खान की कैद में जो गंगू पंडित [ गुरु घर का रसोइया था ] पद प्रतिष्ठा की लालच में गिरफ्तार कराया । 
दोनों गुरुपुत्रों का अपराध था -
 गुरु गोबिन्द सिंह का पुत्र होना तथा
धर्म से सिक्ख  । ये अक्षम्य अपराध की श्रेणी थी ।
  हथकड़ी व  बेड़ियों में कस  सेना की अभिरक्षा मे दोनों मासूम अदालत में सुनवाई हेतु चार किलोमीटर दूर ठंढे बुर्ज से जहां वो कैद कर दादी माँ के साथ रक्खे गए थे । वहाँ से  वो कई दिनों से पैदल ही लगभग घसीटते  हुए से लाये जा रहे थे ।कोई रहम नहीं , बेरहमी की पराकाष्ठा ,अदालत में आज फैसले का दिन -
मुंसिफ़ - तो तुम लोग सल्तनत के नियम और क़ानूनों से इत्तेफाक नहीं रखते ?
जोरावर सिंह और फतेह सिंह समवेत स्वरों में बोल उठे - बिलकुल  नहीं ? 
मुंसिफ़ - इस्लाम स्वीकार नहीं करना , क्या तुम दोनों का आखिरी फैसला है ?
शावक  द्वय - यकीनन हमारा आखिरी फैसला है । 
मुंसिफ़ -एक बार और सोचने का मौका देता हूँ,इस्लाम कबूल कर लो जिंदगी तुम्हारी होगी ।बख्स देंगे जिंदगी । 
तुरंत बेखौफ बुलंद आवाज में फतेह सिंह ने प्रश्न किया -
  तुम्हारा इस्लाम कबूल करने के बाद क्या फिर हम कभी मरेंगे नहीं ?
मुंसिफ़ खामोश ! कोई उत्तर न दे सका  अदालत में खामोशी थी । उपस्थित तमासबीन और सरकारी मुलाज़िम हैरान थे ... देर तक खामोशी छाई रही । 
   फिर साहबजादे फतेह सिंह की तेजश्वी स्वाभिमानी आवाज मुखर हुई । 
जब तुम्हारा इस्लाम मौत से ऊपर नहीं है , तुम्हारे इस्लाम में भी रहकर मरना ही है तो, मुझे अपने धर्म में ही रहकर मरना स्वीकार है, इस्लाम में नहीं । 
ऐसी मरनी जो मरे, फिर बहुरि न मरना होए । 
वाहे गुरु जी खालसा ! वाहे गुरु जी की फतेह ! के अप्रतिम जैकारे छोड़ कर वे अडिग निडर व आत्मबल से भरपूर थे ,समूची मानवता ही नहीं  धर्म, संस्कार, संकल्प, वचन को सास्वत जाज्वल्यमान कर दिया । भरी अदालत विस्मित थी । 
तमाम अंतर्विरोधों से भरा फैसला - दोनों सिंह शावकों को जिंदा ही दीवार में चुनवाने का हुक्म आया । हुक्म की तामीर हुई । मासूम सिंह अपने  वचन से डिगे नहीं  दीवार में जिंदा चुन दिए गए । 
ठंडी बुर्ज पर गुरु  माता गुजर कौर  ने अपने प्राण त्याग दिये । 
इसी पुस माह में एक सप्ताह के भीतर साहबजादे अजीत सिंह 17 वर्ष ,साहबजादे  जुझार सिंह उम्र  14 वर्ष चमकौर साहिब की जंग में गुरु -पिता की निजामत मे रक्षार्थ  देश, धर्म  संस्कृति वीर गति को प्राप्त हो गए । गर्व है हम उनके वारिस हैं । कोटि-2  नमन ,अश्रु पूरित विनम्र श्रद्धांजलि । 

उदय वीर सिंह 
 
 



  

गुरुवार, 22 दिसंबर 2016

जय बोल उदय दलाली की

जय बोल उदय दलाली की-
****
***
दाल गले दांव चले जब
जा छाँव उदय दलाली की-
दिल टुटा या दंश लगा 
गह पांव उदय दलाली की -
तीर कमान या तोप खरीदो 
खुली है हाट दलाली की -
मिर्च मसला कपड़ा कागज 
सब भेंट चढ़े दलाली की
जड़ जमीन का ऊँचा सौदा
जिस्म भी राह दलाली की
लभ- गुरु का सीजन चमका
बीमार भी नाव दलाली की -
अभिनेता -नेता क्या कहने 
सब रंगे हाथ दलाली की -
शिक्षा दीक्षा आंदोलन बिकता 
घर मोल - भाव दलाली की -
भूखा पेट मल्हार क्या गाये
अन्न चढ़ा भेंट दलाली की -
मंत्री , संतरी अफसर बाबू 
प्रिय पूजे चरण दलाली की -
मन उदास मन मैला कर
जा गठ्ठर बांध दलाली की
शादी का बधन चाहे तलाक 
बनती सरकार दलाली की -
उदय वीर सिंह


रविवार, 18 दिसंबर 2016

टुकड़ों में जीवन कितना ....

टुकड़ों में जीवन कितना
सिया भी करो -
प्याला भरा प्रीत का
पिया भी करो -
काँटों के दर्द से मायूस होते क्यों
खुशियों की आश में
जिया भी करो -
पत्थर न होते तो घर भी न होते वीर
शीशे रोशनी के जानिब
चुना भी करो -

उदय वीर सिंह

सोमवार, 12 दिसंबर 2016

साक्ष्य समय का मौन रहा -

अशेष, अवशेष का वाचन किया भी जाए तो कैसे और किससे ? आवरण मे ढके ईर्ष्या और आघात, स्वस्थ पृष्ठभूमि का निर्माण करने के कारक मानने का कोई कारण नहीं दिखता -
साक्ष्य समय का मौन रहा -
***
क्यों लिखते हो गीतों को
सद गाने वाला कौन रहा
जिसने देखी खून की होली
साक्ष्य समय का मौन रहा -
टूटा नभ अचला कंपित
दिग दिगंत निरपेक्ष रहे
जिसने खेली खून की होली
हर दंड न्याय से मुक्त रहा -
तर्कों और वक्तव्यों का आदर्श
अप्रतिम रत्न सा गढे गए
विप्लव विदोह द्रोह का मंडन
उर न्याय प्रतीक्षित दग्ध रहा -
कंठस्थ हुए विकृत शब्द युग्म
संवेदन सम्प्रेषण कितना सूना
भाषा का गरल सम्मोहन वांछित
नायक प्रबोध का कौन रहा -
दहकी ज्वाला अन्याय कृतघ्न की
अतिचारी की चेरी शक्ति है
शील शुचिता का वाचक रोता
मदांध प्रलापी निर्विघ्न रहा -

अंगार बने पथ प्रेम नगर के
पीयूष प्रवाह अवरुद्ध हुआ
सत्य सरित का अवसान हुआ
सदाचार का नीरज लोप रहा -

उदय वीर सिंह




रविवार, 11 दिसंबर 2016

रुठती है संचेतना तो

रुठती है संचेतना तो,
विकार देती है..
जागती है संवेदना तो
संस्कार देती है ..
राहों में खायी ठोकर ,
विचार देती है ..
विनम्रता सफलता को
आधार देती है ...
सत्य-निष्ठां शौर्यता,अन्याय को
प्रतिकार देती है ...
हृदय की विशालता मनुष्यता को 
आकार देती है 
स्नेह की सबलता घृणा को भी 
प्यार देती है... |


-- उदय वीर सिंह .

मंगलवार, 6 दिसंबर 2016

वीर मरुस्थल को सुंदर उद्यान बनाने की सोचो

वीर मरुस्थल को सुंदर उद्यान बनाने की सोचो
रुई से पुतले आग नहीं परिधान बनाने की सोचो
हर तन में रहता है एक नीरव संवेदनशील हृदय
शिक्षालय में भगवान नहीं इंसान बनाने की सोचो -
बरसेंगे आतंक के बादल नीर नहीं ज्वाला होगी
नाद विध्वंश का ऊर्जित होगा गेह नहीं कारा होगी
अंतस में आशा और विश्वास सृजित होता जाए
निज राष्ट्र संस्कृतियों को महान बनाने की सोचो -
उदय वीर सिंह

रविवार, 4 दिसंबर 2016

खरीदने और बेचने का अंतर जितना ज्यादा होगा मुनाफा होगा

काँटों की सेज पर गुल बिखर ही जाएँ तो वो दागदार होंगे 
जिसने किस्मत में मांगा ही हो बेईमानी कैसे ईमानदार होंगे -
 खरीदने और बेचने का अंतर जितना ज्यादा होगा मुनाफा होगा 
और सिर्फ मुनाफा ही हो जिसका मकसद कैसे वफादार होंगे -
 काजू की रोटियाँ खाने वाले को कणक के खेत रसुखदार नहीं लगते 
वीर सोचो कालाहांडी -वनवासी गलियों के कैसे समाचार होंगे -

उदय वीर सिंह 



शनिवार, 3 दिसंबर 2016

राष्ट्र प्रेम की दीप शिखा पर .....

शब्द अंतस के उचर रहे 
प्रतिभागी राष्ट्र प्रेम के कहाँ गए 
शीश अर्पण की वेला आई 
यश गाने वाले  कहाँ गए -
सूनी राहें दूर- दूर तक 
मंदिर राष्ट्र का सूना है 
राष्ट्र प्रेम की दीप शिखा पर  
सौं खाने वाले कहाँ गए -
चोले- नारों में राष्ट्र प्रेम 
जाति -धर्म में सिमट गया 
रुग्ण राष्ट्र प्रतीक्षा में है 
राष्ट्र रखवारे कहाँ गए -

उदय वीर सिंह 


 




शुक्रवार, 2 दिसंबर 2016

तुम क्या जानों आग ,कभी जले हुए नहीं हो -

दौर बीता सदियाँ बीतीं  तुम वहीं पड़े हो
तुम जग नहीं सकते,सबब सोये हुए  नहीं हो -
जली हुई देह ही, बया करती है जलन को
तुम क्या जानों आग ,कभी जले हुए नहीं हो -
जिंदा है देह, आत्मा मरी हुई निर्लज्ज
तुम जी नहीं सकते  मरे हुए नहीं हो -
शहादतों  पर बजा तालियाँ वतनपरस्त होते हो
क्या जानों कुर्बानी सिर हथेली धरे नहीं हो -
छद्म में जीना तेरी इल्मों  फितरत है वीर 
तुम फ़रजंदों के बीच पले -बढ़े हुए नहीं हो -

उदय वीर सिंह