दीये जलते हैं उजालों के लिए
बुझते हैं उजाला देकर
दीये जलते हैं प्रतीक्षा पथ में
बुझते हैं निवाला देकर -
दीये जलते हैं शाला व समाधि पर भी
बुझते हैं साधक को शिवाला देकर -
दीये जलते हैं उत्सव और वेदन दोनों
बुझते हैं तूफान से मुक़ाबला लेकर
हम जलते हैं देख उंची पगड़ी
नुझते हैं विष का प्याला देकर -
उदय वीर सिंह
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