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जरूरत, मसले ,मुद्दे गायब हैं अखबारों से।
धर्म पंथ उन्माद भेद मुफ्त मिले बाजारों से।
शिक्षा ,तर्क, ज्ञान विज्ञान हुए व्यर्थ के गीत,
रोटी कपड़ा मकान सब चीने गए दीवारों से।
शिक्षा स्वास्थ्य सुरक्षा हुए गए दिनों की बातें,
हुआ उपेक्षित जनजीवन मूलभूतअधिकारों से।
भय भूख गरीबी का चिंतन मनन विलोप कहीं,
टोपी माला रंग वसन के अलख जगे दरबारों से।
धर्म ,जाति ,कुनबों ,फिरकों की रक्षा सर्वोपरि,
नित जीवन घिरता जाताअंध पाखंड के तारों से।
उदय वीर सिंह।
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