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इश्तिहारों ने सुर सिकंदर बना दिया।
छोटी सी बावली थी समंदर बना दिया।
अफवाहों ने सच को झूठ का सदर,
बारीक सी सुई को खंजर बना दिया।
दीन की झोपड़ साजिश की नजर लगी
मालिक माफिया जमीं बंजर बना दिया।
भूख को तमाशा शरीर को नुमाइश
जरूरत को मस्जिद- मंदिर बना दिया।
उदय वीर सिंह।
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