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सुलझी हुई पहेली उलझाया मत करो।
देखने दो सपने आंखों को रुलाया मतकरो।
पढ़ता रहेगा जमाना पन्ने माजी के श्लोक,
शिलाओं की इबारतों को मिटाया मत करो।
तेरे झूठ से हजारों सच दफ़न हो जाएँगे वीर
बेच कर जमीर झूठी कसमें खाया मत करो।
बहुत रोया है जमाना तुम्हारे झूठो फरेब से
शराफती शिगाफ़ का फायदा उठाया मतकरो।
बोलो की वतन को नाज हो तालिब होने का
चारो तरफ आईना है कुछ छुपाया मत करो।
उदय वीर सिंह।
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