
किस जीवन की बात करूँ
सिर्फ विषधर नहीं विषैला है-
पिया दूध जिस आँचल का
उस आँचल को कहता मैला है -
कलम की स्याही कम न हुई
वो बेचा खून भरने के लिए
बैठा है अपाहिज निचली सीढ़ी
कुछ पाने की आश अकेला है -
दुनिया से पसारा था आँचल
जब बेटे की फ़ीस चुकानी थी
अब जीवन की निष्ठुर संध्या में
कर याचन का बेबस फैला है -
थे कर में चुभे तकुए कितने
पर गति चरखे की कम न हुई
दिया निवाला भूखे रह कर
माँ विस्मृत स्मृतियों में लैला है -
उदय वीर सिंह
5 टिप्पणियां:
आपकी यह उत्कृष्ट प्रस्तुति कल शुक्रवार (07.02.2014) को " सर्दी गयी वसंत आया (चर्चा -1515)" पर लिंक की गयी है,कृपया पधारे.वहाँ आपका स्वागत है,धन्यबाद।
गा गा कहता रे पढन, भेजो पुत परधाम ।
ऐसो भेजणु लाह का, आवै ना कछु काम ।११०३।
भावार्थ : -- बावरा बखान करता फिरे, रे पुत को पराए धाम पढन भेजो है, ऐसो भेजनों का क्या लाभ जो किसी के काम नहीं आवे..... न आपने, न गाम के, न देस के ॥
गा गा कहता रे पढन, भेजो पुत परधाम ।
ऐसो भेजणु लाह का, आवै ना कछु काम ।११०३।
------ ॥ अज्ञात ॥ -----
भावार्थ : -- बावरा बखान करता फिरे, रे पुत को पराए प्रबास पढन भेजो है, ऐसो भेजनों का क्या लाभ जो किसी के काम नहीं आवे..... न आपने, न गाम के, न देस के ॥
अजब तमाशा है दुनिया यह
जमाना ही खराब है।
एक टिप्पणी भेजें