वह बृद्धा पेन्सन के
पाई थी बैंक से पाँच सौ के तीन नोट
गई थी पंसारी की दुकान
लेने नमक आटा आदि
समान रख पोटली में
बढ़ाया दाम में
एक पाँच सौ का नोट
उछल गया दुकानदार देख
मानो किसी विषधर को देख लिया
छिन लिया हाथों से
समान की पोटली
दूर हट माई
ये नोट लेकर क्यों आई ?
जा काही और
कहीं और ये लेकर अछूत शापित नोट !
मैं ही मिला हूँ था तुझे ठगने को .,...।
उदास, हतास ,
लिए आँखों में नीर ... खाली पोटली का कपड़ा ।
किसी ने कहा ये रंगीन कागज अब
बैंक में कर दो जमा
ये अछूत हो गए हैं .....
थक हार जमा कर दिये माई ने
अछूत हुए नोटों को बैंक में
अब ,
दो दिन सुबह शाम की बाद हाजिरी के
भी मयस्सर नहीं है मुद्रा
पेन्सन के हुये धन काले हैं
नमक ,रोटी
के लाले हैं ..... ।
उदय वीर सिंह
पाई थी बैंक से पाँच सौ के तीन नोट
गई थी पंसारी की दुकान
लेने नमक आटा आदि
समान रख पोटली में
बढ़ाया दाम में
एक पाँच सौ का नोट
उछल गया दुकानदार देख
मानो किसी विषधर को देख लिया
छिन लिया हाथों से
समान की पोटली
दूर हट माई
ये नोट लेकर क्यों आई ?
जा काही और
कहीं और ये लेकर अछूत शापित नोट !
मैं ही मिला हूँ था तुझे ठगने को .,...।
उदास, हतास ,
लिए आँखों में नीर ... खाली पोटली का कपड़ा ।
किसी ने कहा ये रंगीन कागज अब
बैंक में कर दो जमा
ये अछूत हो गए हैं .....
थक हार जमा कर दिये माई ने
अछूत हुए नोटों को बैंक में
अब ,
दो दिन सुबह शाम की बाद हाजिरी के
भी मयस्सर नहीं है मुद्रा
पेन्सन के हुये धन काले हैं
नमक ,रोटी
के लाले हैं ..... ।
उदय वीर सिंह
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