कौन कहता है कंगाली है खाली है बदहाली है
दरबार भरे हैं वादों से
आँखों की ज्योति नहीं बदली चश्में सारे बदल रहे
चौबारे.विस्वास से खाली है,,बाजार भरे उन्मादों से
बढ़ती समस्याएँ हनुमान की पुंछ सदिस
अखबार भरे ,संवादों से
हासिल है मिश्री मक्खन उनको
मजलूम मरे.किसान.मरे अवससदों दों से ...
उदय वीर सिंह
दरबार भरे हैं वादों से
आँखों की ज्योति नहीं बदली चश्में सारे बदल रहे
चौबारे.विस्वास से खाली है,,बाजार भरे उन्मादों से
बढ़ती समस्याएँ हनुमान की पुंछ सदिस
अखबार भरे ,संवादों से
हासिल है मिश्री मक्खन उनको
मजलूम मरे.किसान.मरे अवससदों दों से ...
उदय वीर सिंह
1 टिप्पणी:
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (18-06-2017) को गला-काट प्रतियोगिता, प्रतियोगी बस एक | चर्चा अंक-2646 पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
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