बुधवार, 7 फ़रवरी 2024

परिंदों के हाथ आरियां देकर.....


 






परिंदों के हाथ आरियां...✍️

दरख़्त सदमें में नहीं परिंदों के
हाथ आरियां देखकर।
वह  ग़मज़दा  है बहेलिए की
खेली पारियां देखर।
उन्हें कल कोई साख न मिलेगी
गुजारने को रातें,
दहशतज़दा है उनकी कल की
दुश्वारियां देखकर।
देकर आबो दाना इक महबूब सा
हमदर्द हो जाना
वृक्ष खौफ़जदा है झोले में जाल
शिकंजा छुरियां देखकर।
उदय वीर सिंह।

कोई टिप्पणी नहीं: