सोमवार, 9 जनवरी 2012

खाक -ए- गजल

ख़ुशी   है  जिंदगी   उधार    की   है  हुजुर ,
रब   कहाँ   होता  , जो      अपनी    होती -

हर   स्वांस   का  हिसाब  रखता  है  कौन ,
टूटने के वक्त सोचते हैं थोड़ी और  मिलती -

फिक्र   है  देश  की  उन्हें   इतनी  मुक़द्दस ,
गोया  भूल  गए  की  किसकी   कर  रहे हैं -

भाव   भ्रष्टाचार   का ,  बढ़    गया   इतना ,
बिकवाली ईमानदारी की मन्सूख  हो गयी-


डूब  जाता है आफ़ताब ,वजूदे मशाल क्या ,
उनके  आँखों  में  समंदर  है ,ऐसा कहते हैं -


लुटने  को    तैयार ,  लुटाने  को  भी  उदय ,
उलझन     है  ,  लूटूं    क्या    लुटाऊ   क्या -


छलकी   एक  बूंद  का  अक्स  ही काफी  है ,
बताने     को      दास्तान   -   ए -   समंदर-


                                        उदय वीर सिंह .   

11 टिप्‍पणियां:

Rakesh Kumar ने कहा…

लुटने को तैयार ,लुटाने को भी उदय ,
उलझन है,लूटूं क्या लुटाऊ क्या -

बहुत गहन उलझन है जी.

जो आप लुटा रहे उसका भी
आपको पता नही.

आपसे लूट का हम तो मस्त हो रहे
हैं उदय जी.

udaya veer singh ने कहा…

प्रिय राकेश शर्मा जी !
नमन ,साधुवाद !
आपकी अतिशय सहजता ,विनम्रता कभी उद्वेलित करती है क्या सारे मानव आप जैसे नहीं हो सकते ? काश हो जाते !

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

छलकी एक बूंद का अक्स ही काफी है ,
बताने को दास्तान - ए - समंदर-


बहुत खूबसूरत ..

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

रब है तो सब है..

रविकर ने कहा…

सुन्दर प्रस्तुति ||

रविकर ने कहा…

दसमेश पिता के वारिश --चर्चा-मंच ७५०

आपने देखा क्या ??

Anju (Anu) Chaudhary ने कहा…

छलकी एक बूंद का अक्स ही काफी है ,
बताने को दास्तान - ए - समंदर-

सही कहा है आपने ....बहुत खूब

सागर ने कहा…

bhaut hi acchi aur khubsurat gazal...........

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

बहुत उम्दा लिखा है आपने!
आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा कल मंगलवार के चर्चा मंच पर भी होगी!
सूचनार्थ!

S.M.HABIB (Sanjay Mishra 'Habib') ने कहा…

छलकी एक बूंद का अक्स ही काफी है ,
बताने को दास्तान - ए - समंदर-

वाह! बहुत खूब...
सादर.

RITU BANSAL ने कहा…

छलकी एक बूंद का अक्स ही काफी है ,
बताने को दास्तान - ए - समंदर-

बहुत अच्छा..!
kalamdaan.blogspot.com