शुक्रवार, 22 जून 2012

कामन आदमी


हरदम व्यथा  की आग में
जलाया      गया       मुझे ,
रास्ते    का     पत्थर    हूँ ,
बताया       गया       मुझे - 


पीने     का  साफ   पानी 
मयस्सर      नहीं    हुआ ,
बहती नदी   शराब   की,
डुबाया        गया     मुझे-


धरती  से   आशमां  तक,
ख्वाबों   की  क्या  कमी,
मैं         देखता         रहा ,   
दिखाया     गया      मुझे-


पेशे      से    आदमी    हूँ ,  
मालूम   उन्हें    भी   था,
सबब   मुफलिसी     का ,
बताया       गया      मुझे-


ढूढता       रहा       सबब  ,  
क्यूँ      लाचार    आदमी,
शराफत   का   साझीदार , 
बताया       गया      मुझे-


इल्जाम     है   उदय   कि,  
बोलने      लगे    हो   तुम 
मैं       बोलता     नहीं   हूँ,   
बताया        गया      मुझे -


   
                उदय वीर सिंह 


    
        



     


    
        

12 टिप्‍पणियां:

रविकर ने कहा…

उत्कृष्ट प्रस्तुति सर जी ||

धीरेन्द्र सिंह भदौरिया ने कहा…

इल्जाम है उदय कि,बोलने लगे हम हैं,
मैं बोलता नहीं हूँ बताया गया मुझे -

बहुत सुंदर सम्प्रेषण,,,,,,

MY RECENT POST:...काव्यान्जलि ...: यह स्वर्ण पंछी था कभी...

अरुन अनन्त ने कहा…

वाह क्या बात है उम्दा प्रस्तुति

ANULATA RAJ NAIR ने कहा…

खूबसूरत गज़ल..............

अर्थपूर्ण शेर.................................

सादर

Rajesh Kumari ने कहा…

वाह बहुत शानदार ग़ज़ल

Anju (Anu) Chaudhary ने कहा…

हरदम व्यथा की आग में जलाया गया मुझे ,
रास्ते का पत्थर हूँ ,बताया गया मुझे -


पीने का साफ पानी मयस्सर नहीं हुआ ,
बहती नदी शराब की, डुबाया गया मुझे-

waah bahut khub ...har dil kii aawaz ko shabdo mein likh diya

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

बेहतरीन, दमदार रचना..

संध्या शर्मा ने कहा…

कामन आदमी की व्यथा को शब्दों में पिरो दिया है आपने... बेहतरीन प्रस्तुति...

ब्लॉ.ललित शर्मा ने कहा…

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उम्दा लेखन, बेहतरीन अभिव्यक्ति


हिडिम्बा टेकरी
चलिए मेरे साथ



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♥ पहली बारिश में गंजो के लिए खुशखबरी" ♥


♥सप्ताहांत की शुभकामनाएं♥

ब्लॉ.ललित शर्मा
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Dr. Hardeep Kaur Sandhu ने कहा…

ਆਮ ਆਦਮੀ ਨੂੰ ਬਹੁਤ ਹੀ ਵਧੀਆ ਤਰੀਕੇ ਨਾਲ਼ ਪੇਸ਼ ਕੀਤਾ ਹੈ ਤੁਸਾਂ ਨੇ!
ਬਹੁਤ ਬਹੁਤ ਵਧਾਈ!

ਹਰਦੀਪ

Surendra shukla" Bhramar"5 ने कहा…

हरदम व्यथा की आग में जलाया गया मुझे ,
रास्ते का पत्थर हूँ ,बताया गया मुझे -


पीने का साफ पानी मयस्सर नहीं हुआ ,
बहती नदी शराब की, डुबाया गया मुझे-
उदयवीर जी उत्कृष्ट रचना ...हाँ ऐसा भी कर दिया जाता है हमारे जीवन को ...
भ्रमर ५

Dr.R.Ramkumar ने कहा…

इल्जाम है उदय कि, बोलने लगे हम हैं,
मैं बोलता नहीं हूँ बताया गया मुझे -

अच्छा ख्याल