18 - अभिनेता
' अयंनिजपरोवेतिगणना लघुचेतसाम,उदारचरीतानाम तू वसुधैव कुटुंबकम ' अर्थात यह हमारा है यह तुम्हारा है का विचार क्षुद्र मानसिकता के व्यक्ति करते हैं ,उदार चरित्र के लिए पूरी धरती ही एक कुटुंब [परिवार ] की तरह है ।
जहां नारियों की पूजा होती है देवता वहीं निवास करते हैं, जीवन की विशालता हमारी सनातन संस्कृति है इसका उपादान हमारी व्यवस्था है साध्य मोक्ष, साधक ,सनातनी है । विकार त्याज्य, अनुकूलन शीतलता, प्रतिकूलन ज्वाल है, जिसका समन अपरिहार्य है । आज्ञानिषेध सर्वथा अक्षम्य अपराध , प्रदत्त व्यवस्था सम्पूर्ण और संतोष जनक सर्वथा स्वीकार्यता ही अनुमन्य है । ये हमारे सूत्र वाक्य
जीवन के सार्थक सोपान हैं जिन्हें वरण किए बिना मनुष्य मात्र अधूरा है ।
जीवनशाला मधुरता की मंजूषा हो ,मद्य का सर्वथा निषेध करती हो , संस्कारों की धात्री सुविचारों की सेविका कर्म की संरक्षिका विभेद रहित सर्वजन भाव को सरलता से निषेचित करे पल्लवित पुष्पित करे । पूज्यनीय परम आदरणीय होगी । ग्राह्य होगी ।
जीवन का गौरव उच्चतम सोपान नहीं निम्नतम सोपान ही हो जहा से आलोक आकार पाता है । प्रतिकार निराशा को जन्म देता है निराशा विप्लव और अंत को निरूपित करता है । सदेव स्नेह संकलित हो स्निग्धता विमोचित हो ,मुक्ति सदाचार का प्रवाह सुरसरि की तरह अमिय तत्व को संचारित करे । यही भारतीयता का भाष्य और दर्शन है नित्य पढ़ा जाए जीवन प्रतिदर्श बनेगा ।
श्रीमान उद्धारक का प्रवचन कट के बाद विराम पाता है । निर्देशक इस संवाद और दृश्यांकन से संतुष्ट हो इस फिल्म का अंतिम चरण समाप्त कर दृश्यांकन समाप्ती की घोषणा करता है ।
चल चित्र कर्मी विराम के बाद किसी दूसरी विधा के चित्रण के लिए अपने को नियोजित कर रहे थे । निर्देशक अपनी चल चित्र मंडली को किसी दूसरी पटकथा के दृश्यांकन हेतु तैयार करता है । शायद यही उसकी नियति है ।
अब कथार्थ ' मुक्ति संदेश " चल चित्र घरों में प्रदर्शित की जा रही है मुख्य अभिनेता श्री गंगाधर जी हैं । कथार्थ जनता को बहुत प्रभावित कर रही है । भीड़ उमड़ रही है देखने को क्या है इस कथार्थ में ।कौतूहल का विषय बन गया है । धर्म अर्थ मोक्ष सब कुछ निहित है
पट-कथा के नायक श्रीमान उद्धारक [ वास्तविक नाम गंगाधर ] जनसामान्य व सनातनी किरदारों को जन सामान्य के स्वाभाविक आवरण में जी जन सामान्य के हृदय में आदर्श,व आधार स्तम्भ बन गए थे । जनता जनार्दन उन्हें अपना भगवान समझने लगी थी । तथाकथित मूढ़ मति जनता के उद्धारक ,विचारक और वेदना निवारक से हो गए थे । इनके अभिनीत कथार्थ [फिल्म ] जनमानस टूट कर देखती विक्षिप्तता की सीमा तक ।
श्रीमान आपने ईस कथार्थ में जीवन डाल दिया है । आपका अप्रतिम अभिनय देखने को मिला इस सफलता को कैसे लेंगे । कथार्थ पत्रकार ने अभिनेता गंगाधर जी से प्रश्न किया ।
भई ज्ञान का मैंने प्रयोग किया है परिणाम सामने है । गंगाधर जी अपने साक्षात्कार में पत्रकार महोदय को बड़े गर्व से बताया ।
आपने कथार्थ को उसके मूल में जिया है । कैसे कर सके ? मसलन कथार्थ का मुख्य पात्र सनातनी है फिर आधुनिक प्रतिदर्श बंनता है जिसका सीधा अर्थ अपनी संस्कृति का खुला प्रतिरोध हुआ , क्या दोनों धाराएँ एक साथ चल सकती हैं ? पत्रकार जी ने पूछा ।
मेरा अभिनय बहुत सराहा गया इसके लिए शुक्रिया । गंगाधर जी बोले
श्रीमान मेरा प्रश्न यह नहीं है ।मैं जीवन दर्शन की बात कह रहा हूँ । पत्रकार जी ने स्पष्ट किया
समाज धर्म के बारे में की आपका मत है पत्रकार जी ने पूछा
जो समाज में ,जिस समाज में रहता है उसकी बात करता है वो जाने मुझे इससे क्या लेना देना । मुझे धन से मतलब है, मिल रहा है गंगाधर जी ने साफ शब्दों में कहा ।
भाषा और साहित्य से आपका सरोकार पत्रकार ने पूछा
ये क्या बाला है जी ! आप को मालूम है की कितना कीमती समय निकाल कर हम इन कार्यों के लिए आते हैं ,हमको एक एक मिनट का दाम मिलता है और आप्प हैं की फालतू चीजें पुछे जा रहे हैं .... खीझ कर गंगाधर जी ने कहा ।
महोदय ये प्रश्न हमारे देश समाज विकास से सरोकार रखते हैं , क्षमा चाहते हैं आपको बुरा लगा ।
समाज ,धर्म ,साहित्य ,भाषा के साक्षात्कार सहयोग के लिए आपका बहुत बहुत धन्यवाद महोदय । पत्रकार ने आभार व्यक्त किया और साक्षात्कार का सजीव प्रसारण बंद हुआ ।
कुछ दिन बीते शाम का समय गंगाधर जी पुलिश की हिरासहत में हैं आयकर , अवैध सस्त्र, महिला उत्पीड़न अश्लीलता के आरोप लगे हैं विभिन्न धाराएँ लगाई गईं है ।
पत्रकार उनका पक्ष जानना चाहते हैं
ये क्या हुआ आपके साथ गंगाधर जी ? पत्रकार ने पूछा
कुछ नहीं हम निर्दोश हैं
आप् का समय तो बहुत कीमती है दाम से बंधा हुआ । फिर इस समय का क्या होगा ?
हमने कहा न सब निर्देशक जानता है हम उसके मातहत हैं
आप् का महान ज्ञान जागृति संस्कार आदर्श का क्या होगा ..... पत्रकार ने पुनः पूछा
निर्माता निर्देशक के हाथ .... मायूष दबी आवाज आई ।
जी श्रीमान ! जनता सब जान रही है । आपको भी और आपके किरदार को भी । पत्रकार ने शुक्रिया कहा
पुरानी कहावत चरितार्थ हो रही थी - ' मूर्ति लादे पीठ गधा करे गुमान ' कितना सत्य है ।
उदय वीर सिंह
' अयंनिजपरोवेतिगणना लघुचेतसाम,उदारचरीतानाम तू वसुधैव कुटुंबकम ' अर्थात यह हमारा है यह तुम्हारा है का विचार क्षुद्र मानसिकता के व्यक्ति करते हैं ,उदार चरित्र के लिए पूरी धरती ही एक कुटुंब [परिवार ] की तरह है ।
जहां नारियों की पूजा होती है देवता वहीं निवास करते हैं, जीवन की विशालता हमारी सनातन संस्कृति है इसका उपादान हमारी व्यवस्था है साध्य मोक्ष, साधक ,सनातनी है । विकार त्याज्य, अनुकूलन शीतलता, प्रतिकूलन ज्वाल है, जिसका समन अपरिहार्य है । आज्ञानिषेध सर्वथा अक्षम्य अपराध , प्रदत्त व्यवस्था सम्पूर्ण और संतोष जनक सर्वथा स्वीकार्यता ही अनुमन्य है । ये हमारे सूत्र वाक्य
जीवन के सार्थक सोपान हैं जिन्हें वरण किए बिना मनुष्य मात्र अधूरा है ।
जीवनशाला मधुरता की मंजूषा हो ,मद्य का सर्वथा निषेध करती हो , संस्कारों की धात्री सुविचारों की सेविका कर्म की संरक्षिका विभेद रहित सर्वजन भाव को सरलता से निषेचित करे पल्लवित पुष्पित करे । पूज्यनीय परम आदरणीय होगी । ग्राह्य होगी ।
जीवन का गौरव उच्चतम सोपान नहीं निम्नतम सोपान ही हो जहा से आलोक आकार पाता है । प्रतिकार निराशा को जन्म देता है निराशा विप्लव और अंत को निरूपित करता है । सदेव स्नेह संकलित हो स्निग्धता विमोचित हो ,मुक्ति सदाचार का प्रवाह सुरसरि की तरह अमिय तत्व को संचारित करे । यही भारतीयता का भाष्य और दर्शन है नित्य पढ़ा जाए जीवन प्रतिदर्श बनेगा ।
श्रीमान उद्धारक का प्रवचन कट के बाद विराम पाता है । निर्देशक इस संवाद और दृश्यांकन से संतुष्ट हो इस फिल्म का अंतिम चरण समाप्त कर दृश्यांकन समाप्ती की घोषणा करता है ।
चल चित्र कर्मी विराम के बाद किसी दूसरी विधा के चित्रण के लिए अपने को नियोजित कर रहे थे । निर्देशक अपनी चल चित्र मंडली को किसी दूसरी पटकथा के दृश्यांकन हेतु तैयार करता है । शायद यही उसकी नियति है ।
अब कथार्थ ' मुक्ति संदेश " चल चित्र घरों में प्रदर्शित की जा रही है मुख्य अभिनेता श्री गंगाधर जी हैं । कथार्थ जनता को बहुत प्रभावित कर रही है । भीड़ उमड़ रही है देखने को क्या है इस कथार्थ में ।कौतूहल का विषय बन गया है । धर्म अर्थ मोक्ष सब कुछ निहित है
पट-कथा के नायक श्रीमान उद्धारक [ वास्तविक नाम गंगाधर ] जनसामान्य व सनातनी किरदारों को जन सामान्य के स्वाभाविक आवरण में जी जन सामान्य के हृदय में आदर्श,व आधार स्तम्भ बन गए थे । जनता जनार्दन उन्हें अपना भगवान समझने लगी थी । तथाकथित मूढ़ मति जनता के उद्धारक ,विचारक और वेदना निवारक से हो गए थे । इनके अभिनीत कथार्थ [फिल्म ] जनमानस टूट कर देखती विक्षिप्तता की सीमा तक ।
श्रीमान आपने ईस कथार्थ में जीवन डाल दिया है । आपका अप्रतिम अभिनय देखने को मिला इस सफलता को कैसे लेंगे । कथार्थ पत्रकार ने अभिनेता गंगाधर जी से प्रश्न किया ।
भई ज्ञान का मैंने प्रयोग किया है परिणाम सामने है । गंगाधर जी अपने साक्षात्कार में पत्रकार महोदय को बड़े गर्व से बताया ।
आपने कथार्थ को उसके मूल में जिया है । कैसे कर सके ? मसलन कथार्थ का मुख्य पात्र सनातनी है फिर आधुनिक प्रतिदर्श बंनता है जिसका सीधा अर्थ अपनी संस्कृति का खुला प्रतिरोध हुआ , क्या दोनों धाराएँ एक साथ चल सकती हैं ? पत्रकार जी ने पूछा ।
मेरा अभिनय बहुत सराहा गया इसके लिए शुक्रिया । गंगाधर जी बोले
श्रीमान मेरा प्रश्न यह नहीं है ।मैं जीवन दर्शन की बात कह रहा हूँ । पत्रकार जी ने स्पष्ट किया
मैं ज्ञान विज्ञान सामान्य ज्ञान का विद्यार्थी नहीं हूँ मैं समाज को दिशा देने वाली फिल्म करता हूँ गंगाधर जी ने बताया ।
देखिये कथार्थ की बात मुझे समझ नहीं आती निर्देशक ने जो कहा मैंने कह दिया ।दर्शन देवी के हो देवता के हो या जीवन के हों दर्शन जिसे करना हो वो करे हमें क्युओन घसीटते हैं । जाकर आप भी दर्शन करिए और बताइये समाज धर्म के बारे में की आपका मत है पत्रकार जी ने पूछा
जो समाज में ,जिस समाज में रहता है उसकी बात करता है वो जाने मुझे इससे क्या लेना देना । मुझे धन से मतलब है, मिल रहा है गंगाधर जी ने साफ शब्दों में कहा ।
भाषा और साहित्य से आपका सरोकार पत्रकार ने पूछा
ये क्या बाला है जी ! आप को मालूम है की कितना कीमती समय निकाल कर हम इन कार्यों के लिए आते हैं ,हमको एक एक मिनट का दाम मिलता है और आप्प हैं की फालतू चीजें पुछे जा रहे हैं .... खीझ कर गंगाधर जी ने कहा ।
महोदय ये प्रश्न हमारे देश समाज विकास से सरोकार रखते हैं , क्षमा चाहते हैं आपको बुरा लगा ।
समाज ,धर्म ,साहित्य ,भाषा के साक्षात्कार सहयोग के लिए आपका बहुत बहुत धन्यवाद महोदय । पत्रकार ने आभार व्यक्त किया और साक्षात्कार का सजीव प्रसारण बंद हुआ ।
कुछ दिन बीते शाम का समय गंगाधर जी पुलिश की हिरासहत में हैं आयकर , अवैध सस्त्र, महिला उत्पीड़न अश्लीलता के आरोप लगे हैं विभिन्न धाराएँ लगाई गईं है ।
पत्रकार उनका पक्ष जानना चाहते हैं
ये क्या हुआ आपके साथ गंगाधर जी ? पत्रकार ने पूछा
कुछ नहीं हम निर्दोश हैं
आप् का समय तो बहुत कीमती है दाम से बंधा हुआ । फिर इस समय का क्या होगा ?
हमने कहा न सब निर्देशक जानता है हम उसके मातहत हैं
आप् का महान ज्ञान जागृति संस्कार आदर्श का क्या होगा ..... पत्रकार ने पुनः पूछा
निर्माता निर्देशक के हाथ .... मायूष दबी आवाज आई ।
जी श्रीमान ! जनता सब जान रही है । आपको भी और आपके किरदार को भी । पत्रकार ने शुक्रिया कहा
पुरानी कहावत चरितार्थ हो रही थी - ' मूर्ति लादे पीठ गधा करे गुमान ' कितना सत्य है ।
उदय वीर सिंह
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