मंगलवार, 27 अगस्त 2013

तमाशबीन होकर रह गया हूँ ...

बंधे हैं हाथ वरना तुम्हें हक़ न देते बर्बादी का
तमाशबीन होकर रह गया हूँ -

मजबूर हूँ की इनसान हूँ ये मेरी खता
कमजोर होकर रह गया हूँ -

जानवर और इन्सान में फर्क कितना है ,
ये सोच कर रह गया हूँ -

वैसे शमशीर के दाग बयां करते हैं डंगरों के हस्र,
देख कर रह गया हूँ -

याद रख  देश प्रेम की प्यास खून भी पीती है,
ये कल्पना नहीं हकीकत कह रहा हूँ -

फट जायेंगे कान के पर्दे दहाड़ों दे नापाक 
भारत जिंदाबाद  कह रहा हूँ -

                                         -उदय वीर सिंह।

सोमवार, 26 अगस्त 2013

बदला तो क्या बदला मेरे देश !..







बदला   तो   क्या   बदला ,  मेरे  देश 
न सवाली  बदला   न  सवाल  बदला -
खड़ा है आज भी चौराहे पर लिए बोझ
लाश  बदली न विक्रम बैताल बदला-

हुकूमत    बदली  , निज़ाम    बदला
तख़्त  बदला ,सारा  इंतजाम  बदला
लालकिले की  प्राचीर   से जज्बाती
सरेआम   हुकुमती   फरमान  बदला-

बदला तो और भी बहुत कुछ मितरां 
खबर   आई   की   हिंदुस्तान बदला  -

न खेत  बदला  न  खलिहान  बदला
न धरती  बदली न आसमान बदला -
उम्मीदों पर जी    रहा  था कल  जो 
आज  भी  मजदूर न किसान बदला -

बदला तो और भी  बहुत  कुछ मितरां 
खबर   आई   की  हिंदुस्तान   बदला  -

नंगा तन ,हाथ फैलाये भूख सडकों पर
सूनी  निगाहें  बेचने  को  तन , ईमान
पेड़ों की छाँव में बितता लाचार जीवन
क्या फर्क उन्हें जानवर कहें या इनसान -

रोज खोदते रहे कुंवां  बुझाते रहे प्यास 
उनकी न शाम बदली न बिहान बदला -

बदला  तो और भी बहुत  कुछ मितरां 
खबर आई  की  हिंदुस्तान बदला  -

हम   आजाद   हैं तख्तियां  सीने  पर
हाथों में तिरंगा लगा की इन्सान बदला
मुद्दतों से खड़ी अभिशप्त  दीवारें टूटेंगी
आश जागी, देश का  संविधान  बदला -

 रहे मुगालते में अब  किस्मत बदलेगी
बदला पर नुमायिन्दों का बयान बदला

बदला  तो और भी बहुत  कुछ  मितरां 
खबर  आई   की   हिंदुस्तान   बदला  -

आज  भी  मुकद्दर लिखता है दलाल
किसान के गले फांसी, आढ़तिया के हार
न हुयी पैदावार तो  भूखा सो    लेता है
हुई  तो भी अभिशप्त ,नहीं हैं खरीददार-

लोग भूखे मरते रहे सड़ गया अन्न 
मुनाफ़ाखोर बदले न उनका मुकाम बदला -

बदला  तो  और   भी   बहुत  कुछ
खबर आई   की   हिंदुस्तान   बदला  -

बेच कर पत्ते मिटाती थी भूख बच्चों की
मासूम जगाता है  उठ अब मत सो मां -
माँ तो  हो गयी अभिशप्त जीवन से मुक्त
पूछता सवाल,बताओ क्यों रूठी है   मां -

अभिशप्त जीवन का दंश झेलता हिंदुस्तान
बदल गयी दुकान  पर न सामान बदला -

बदला  तो  और   भी   बहुत  कुछ
खबर आई   की   हिंदुस्तान   बदला  -


                                               -  उदय वीर सिंह 

शुक्रवार, 23 अगस्त 2013

जगाओ न वीथियों

जागो , जगाओ  न   सोने  दो  वीथियों 
मुद्दतों  के  बाद घर  नींद  मेरे आई  है-

सपने  सुहाने   दो  हमको   भी   देखने     

आँखे  उनीदीं   नींद  कितनी  परायी है-

बीते संवत्सर दिन निर्णय की आश में 
प्रतीक्षा की पाती आज पता ढूंढ़ आई है -

भ्रम  का  महल टूट  जाना ही अच्छा है ,

मरुधर ने प्यास कब किसकी बुझाई है -

जाओ  मुझे   छोड़   रहबर  न    चाहिए ,

स्मृतियों की सेज मेरे पास लौट आई है -

                         
   -  उदय  वीर सिंह 

बुधवार, 21 अगस्त 2013

राखी नजर खोलती है -

राखी नजर खोलती है -
*****
आसमां   डोलता  है   जमीं   डोलती  है  
मेरे   वीर   की   जब   जुबां  बोलती  है   -

नेह   संकल्प   का   आईना  मुस्कराए  
एक  प्यारी  बहन  की  ख़ुशी बोलती है  -

कच्चे  धागों  ने बाँधे हैं फौलाद  को भी
जब  अनमोल  बंधन  बहन  बांधती है -  

वचन  है , वसन है , शमशीर   समिधा 
मान  सम्मान खातिर  चली है जली है-

जाति ,मजहब फिरकों से बहुत दूर धागे
भाई - बहना की राखी नजर खोलती है -

                                    - उदय  वीर सिंह.  




मंगलवार, 20 अगस्त 2013

ऱोज जख्मी होते हैं हाथ...

जब भाँड़ों की जमात गा लेती है महफिलों में 
बिरुदावली जयचंदों की ,
करमवीर भूखा पेट खामोश रात,में रो लेता है -
**
बनाता है शीशमहल ऱोज जख्मी होते हैं हाथ
रात में जख्मों को सहला हल्दी लगाता है  
तहबन पर रोटी के ख्वाबों में सो लेता है -
***
कर्ज से मुक्त होने को शहर आया था 
घर बीमार जोरू ,जवान बेटी छोड़ आया था 
अपनी लाचारियों पर आँखे भिगो लेता है -
***
खुशियों का झोला दे आता हर माह लाला को 
मजबूरियों का गट्ठर ले आता है   
खाकर मुट्ठी भर चबेना पानी पी लेता है -
***
भाई का हफ्ता, लाला के ब्याज पर मेहरबान है ख़ुदा 
रुक नहीं सकता कभी ,
पांच रूपया फुटपाथ का हवलदार ले लेता है -
***
                                                  -  उदय  वीर सिंह 



रविवार, 18 अगस्त 2013

देश ! कुछ बोल...

ओ मेरे
बीमार, कृशकाय
विकृतियों की
बेड़ियों में जकड़े
देश !
कुछ बोल
आँखें खोल,
नहीं  है 
मौन तेरी नियति ,
जड़ता तेरी स्वीकृति नहीं।
तुमने कोई सपथ नहीं खायी
गांडीव न उठाने की
कोई भीष्म प्रतिज्ञा  नहीं की
चुप रहने की.।
न ही है कोई लक्षमन रेखा  की  बाध्यता ।
संक्रमण को दूर,
आघात का  प्रतिकार  कर,
जनित कर प्रतिरोधक क्षमता 
आत्म बल 
जाग्रत कर कुण्डलिनी को.……. 
संजीवनी हिमालय से नहीं ,मैदान से 
निकाल
सरिता की धार 
तोड़ पत्थरों की दिवार। 
छीन अमृत कलश 
दैत्यों से ,
आवश्यक है 
तेरा अमर होना ,
तू रुग्ण नहीं ,
आरोग्य ,
रौद्र बन   । 

                                   उदय वीर सिंह 

   




गुरुवार, 15 अगस्त 2013

जिंदाबाद रहेगा ......

स्वतंत्रता दिवस के पावन पर्व पर देश के शहीदों को समर्पित एक प्यारा सा  गीत , श्रद्धा- सुमन अर्पित करते हुए , मेरे प्यारे देश वासियों ! आओ गुनगुनाते हैं -
*****
हम रहें , न रहें , ये  आबाद  रहेगा 
मेरा देश ,मेरा भारत जिंदाबाद रहेगा .

जर्रा - जर्रा   हिंदुस्तानी  है 

हमख्याल  वतनपरस्ती है 
सरफरोशी  की  तमन्ना है 
यह आग हृदय में बसती है -

हम कहें न कहें ,निर्विवाद रहेगा ...

ये  चमन   है बुलबुलों  का 

वन्देमातरम     की  बोली 
फौलाद    की    है     छाती 
डरती    है    इससे    गोली -

इसका दूध नेह आँचल सदा याद रहेगा -


सुनी  न    होंगी  एक  पल 

कुर्बानियों       की      राहें 
भाई   की  हमकदम   अब 
अपनी बहनें शहीदी  चाहें -

हर जनम में मिले ये जज्जबात  रहेगा - 


न  हिन्दू , न  मुसल्मां  हैं

हम    देश    के   कबीर  हैं 
हम  संत  हैं ,  सिपाही  हैं 
कही फूल , तो शमशीर है -

जिन्दाबाद  है वतन  जिंदाबाद  रहेगा -

                                               --    उदय वीर सिंह 


सोमवार, 12 अगस्त 2013

प्राची में डूबा अंशुमान ,....



प्राची में डूबा अंशुमान ,
हमने कह दिया  तो कह दिया --
गंगा पाक में बहती है
हमने कह दिया तो कह दिया -

नेजे पर बैठे वजीर को प्यादे ने टोका
हुजुर !
बोला वजीर-
हम तख़्त पर बैठे हैं
हमने कह दिया तो कह दिया -

हम न होते  तो ये देश न होता
गिर गया  होता आसमान कबका
हमने कह दिया तो कह दिया -

महान था जयचंद, गोरी को अपना घर दिया
भारत- रत्न मिलना चाहिए
हमने कह दिया तो कह दिया -

जमूरे ने कहा उस्ताद !
अक्ल की जरुरत है -
सत्य वचन !
जा ले आ  खरीद 
उस्ताद ! बाजार में नहीं मिलती
नामुराद !
हमने कह दिया तो कह दिया -

हुजूर !
किसान आत्महत्या  कर  हैं  झूठ  ! हजार झूठ !
किसान तंगहाली से नहीं शौक से मर रहे हैं 
किसने कहा कर्ज लेने को 
उधार की आदत  है उनको  ।
हमने कह दिया तो कह दिया -   

बाढ़ का आलम पेड़ तक डूबने वाले हैं 
हवाई सर्वेक्षण का नजारा
खूबसूरत 
फसल अच्छी है, 
हमने कह दिया तो कह दिया -

 
                                      -उदय वीर सिंह




शुक्रवार, 9 अगस्त 2013

धो डालो...


 ईद  की बहुत- बहुत मुबारकबाद  मित्रों -
                    ****
दिल से दिल को जोड़ कि दर्द जाये 
हसरते दिल आज ईद आई है -

बख्सा है बेपनाह मोहब्बत उपरवाले ने 
सौगाते हयात आज ईद आई है-

यूँ कायम रहे रौनके बहार चमन में 
ले अमन का पैगाम ईद आई है -

धो डालो गिले शिकवे लगे दाग ,
ले सावनी फुहार ईद आई है -
                             
                        -   उदय वीर सिंह 

                    

गुरुवार, 8 अगस्त 2013

सुना है बदले जाने लगे हैं अब 
यार अपना जिगर बदल लेते -

नफ़रत इतनी आँखों में है मुद्दतों से 

 यार अपनी नज़र  बदल लेते-

बावस्ता मैं रब से,बेशक  तू मैकदे से 

यार अपना घर बदल लेते -

उज्र है इतना इन्सानियती फ़िजाओं से 

यार अपना शहर बदल लेते -

तुमको  चुभते हैं मोहबतों के अल्फ़ाज 
यार अपनी सोहबत बदल लेते -


                       उदय वीर सिंह 



                                   

रविवार, 4 अगस्त 2013

लीरा -लीरा

हो पतझर भी लीरा -लीरा
मुस्कान अधरों पर लाओ तो -


लहराएगी बेल मरू में 

सरित प्रवाह को लाओ तो -

गाएगी कोकील मधुर गीत
ऋतू बसंत की लाओ तो-


ह्रदय- कलश में विष क्यों भरना
हिय प्रेम-सुधा सरसाओ तो- 


महकेगा आँगन गली कुञ्ज
पादप प्रसून लगाओ तो -


अतृप्त- धरा मानस भीगेगा
सावन स्नेह बरसाओ तो -


रस-रस कोपल-प्रीत बढ़ेगी
संकल्पित बीज लगाओ तो -



                                     उदय वीर सिंह