शुक्रवार, 27 दिसंबर 2013

- कभी उदासोगे नहीं -

मिला है प्रेम का सागर तुमको  
कभी प्यासोगे नहीं -

मधुराधर में समाये गीत मृदुल  
कभी उदासोगे नहीं -

तेरे पांव के निचे पुष्प बिछे हैं 
लडख़ड़ाओगे नहीं-

ये बात अलग है प्रीत मेरे, जाकर 
फिर आओगे नहीं -

पूछेगा हृदय जब अंतस की बातें   
क्या बताओगे नहीं-

भावों के बादल शब्दों से घिरेंगे 
जब अर्थों को पाओगे नहीं - 

                                  -  उदय वीर सिंह 





मंगलवार, 24 दिसंबर 2013

क्या जमाना दे रहा है -



चाहता है  आदमी  क्या  जमाना दे रहा है -
इंसान   को  दगा  तो , इंसान  दे  रहा   है -

कोशिश तमाम  उम्र  की  परवान  न  हुई  
इंसानियत के सेज पर शैतान  सो  रहा है -

महफिलें  दर  महफिलें  रौनक  तमाम है 
बेईमान  हंस   रहा  है , ईमान  रो   रहा है -

हर शख्श परेशां है यक़ीनन  फूल के लिए 
शिद्दत से  अपने  बाग़  में  बबूल बो रहा है-

बुजदिली  की  आग  कुछ  तेज  हो  गयी है 
जलाकर अपना घर कितना खुश हो रहा है 

                                      -  उदय वीर सिंह 




शनिवार, 21 दिसंबर 2013

अपनी बेटी मिटाते हो कैसे-

खंजर  उठा  अपने  हाथों  में  अम्मा 
बेटी    पर   अपनी   चलाते  हो  कैसे -

निमंत्रण   पर  तेरे  चले  आये  अम्मा
बे -आबरू करके दर से उठाते हो कैसे -

तू  भी  बेटी  किसी  की  बेदर्द  अम्मा 
कोख में अपनी  बेटी मिटाते  हो कैसे-

दर्द नेजे से  कम तेरी नज़रों से ज्यादा 
मैला आँचल समझ फेंक आते हो कैसे-

रुखसती  में बहुत  याद आयेगे अम्मा 
अर्थी ,डोली  के  बदले  सजाते हो कैसे -

जख्म  देता जमाना कदम दर कदम 
सृष्टि की  सहचरी  को भुलाते हो कैसे -

                                   -   उदय वीर सिंह

गुरुवार, 19 दिसंबर 2013

- इबादत नहीं आती -

टुटा हादसों में कम आदमी से ज्यादा  
आदमी बात समझ में क्यों नहींआती -

टुटा पत्थरों से कम  नफ़रत से ज्यादा 
दिल , बात  समझ  में क्यों नहीं आती-

खामोशियों से सूखता, प्रवाह भाषा का 
रेगिस्तान   से  गंगा , कभी नहीं आती-

दर्द  का  डर, गम हो  बिछड़  जाने का, 
उस दिल में शहादत की रौ नहीं आती -

तन आया मंदिर में मन माया की छाँव 
झुका  लेने  से सिर इबादत नहीं आती-  

                               -  उदय वीर सिंह 

रविवार, 15 दिसंबर 2013

इबादत की बात करता है-

नीचे  पैरों  के  जमीं  नहीं  वो 
असमां   की   बात   करता है 
न  वास्ता रस्मों -रिवाज  का 
रहनुमा   की   बात  करता है -

अपनी    जेब   में    रखता  है   

चाँद   सूरज   सितारे तोड़कर 
जो  देखा   नहीं  अपना चेहरा 
हिन्दुस्तां  की  बात  करता है - 

न   जाना  मिजाज शोलों  का 

जलाने    की   बात  करता  है 
रखता  है   फासले    हाथों   में 
वो  मुकद्दर की  बात करता है -

मजहब   क्या   है   इंसान  का 

नहीं  मालूम , बांटता  है  दिल  
पहचान  नहीं  एक  हर्फ़ से भी 
वो किताबों  की बात करता है -

उजली  कमीज छोड़ा नहीं घर 

पीता रहासिगार सियासत का  
जो गवाह है शहीदों के खिलाफ
शहादत   की   बात   करता  है -

घोंटता है गला, इंसानियत का 

वो  शराफत की बात करता है-    
न झुका सिर,माँ-बाप के अदब 
वो  इबादत  की बात करता है-

                         -  उदय वीर सिंह 


गुरुवार, 12 दिसंबर 2013

जो देना तो प्यार मुझे .....

क्या   मांगू   दाते   तुमसे 
जो  देना  तो   प्यार  मुझे ,
जर्रे   को    पहचान  दिया 
जिसका   है  आभार  तुझे -

मेरी  रातें  दिन  मेरे   सब 
बख्सी    दात   तुम्हारी  हैं 
कर    पाँउ     तेरा    वंदन  
देना इतना अधिकार मुझे- 

खाक    तेरे   दर   की  होउं  
मेरा   भाग्य   उदय   होगा 
जब  नाव भंवर में मेरी हो
देना    तूं     पतवार   मुझे -  

छोड़   चले   कर   मेरा  मेरे  
तेरी   मुझे   पनाह    मिली 
तूं   दयाल  बख्संद  पियारा
देना    तूं    अंकवार   मुझे -

क्या    मांगू    दाते   तुमसे ,
जो   देना   तो   प्यार  मुझे -

                 -   उदय वीर सिंह 



रविवार, 8 दिसंबर 2013

बड़ा यह देश है -

कहीं कुछ जल  गया ,कुछ जल  रहा
कुछ  जलना  कहीं  अभी  भी  शेष है -

कहीं   घर, संस्थान     उद्यान   गौरव
कही  जला चिर मान  भग्नावशेष  है-

जला  हृदय  कहीं  ,सम- भाव  वैभव
जली  कहीं  पुण्य  संस्कृति अशेष  है -

हिल रही बुनियाद भूमि  दलदली हुयी
प्रबुद्ध उद्दघोष नवनिर्माण का सन्देश है -

जल  रहा  मानस , आग  जलती  रहे
चिता द्रोहियों की जलनी अभी  शेष है -

अवांछित रीत का संज्ञान ले ले शौर्यता
किसी व्यक्ति पंथ से कहीं बड़ा ये देश है -

                                   -  उदय वीर सिंह



                      

मंगलवार, 3 दिसंबर 2013

उत्सर्ग- यथेष्ट



प्रतिकूल  प्रवाह  का  गामी  ही 
गिरि , हिमशिखर  को पाता है- 
जीवन   का    उत्सर्ग      यथेष्ट 
पुनः     जीवन    पनपाता     है -

जो   टूट   गया   वह   भंगुर   है 
नीर - क्षीर   न  भंगुर  होता  है-
सागर में,  कलश में, काया   में
वांछित    स्वरुप   धर   लेता है-   

मूल्यों का उत्सर्ग अतिरंजन है 
अतिवेदन तो विष -पथ देता है- 
जीवन की शाम कोई शाम नहीं
मिट नवल - प्रभात,यश देता है -

कर  यत्न  विषमता  सरल  बने
पद - चिन्ह प्रताप बन  जाता है-
वो  अपराध  हमेशा  किया करो
जो मानव  को  प्यार दे जाता है -



                                        - उदय वीर सिंह