कुछ मर्म छिपे हैं उर मेरे
कुछ पाँवों में बंधन हैं ,
चलने वो नहीं देते -
कुछ मर्म छिपे हैं उर मेरे
कहने वो नहीं देते -
कुछ शब्दों की बाधा है
रचने वो नहीं देते -
खट-राग बसे हैं होंठो पर
बहने वो नहीं देते -
वायु प्रहारों में दीपक है
जलने वो नहीं देते -
फिर भी प्रीत का बंधन है
पग रुकने वो नहीं देते -
3 टिप्पणियां:
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (31-07-2016) को "ख़ुशी से झूमो-गाओ" (चर्चा अंक-2419) पर भी होगी।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
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उम्दा लिखा है सर |
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