रविवार, 21 मई 2017

कुछ संवेदना

मित्रों ! मंगल प्रभात ! आजकल मैं आँखों में मोतियाबिंद व रेटिना में हुए आघात की वजह से सेहत संबंधी समस्याओं से रूबरू हूँ । सो पठन -पाठन न के बराबर है ।
कल घर में कुछ सुभचिंतक व सगे संबन्धियों की उपस्थिती थी, कई लोगों की सहानुभूतु व सुंदर सुझाव मिले अच्छा लगा उनका साधुवाद किया । डाक्टरों ने कुछ कमियाँ कुछ नुख्से बताए उनके अनुसार चिकित्सा चल रही है । लाभ भी है ।
सबके चले जाने के बाद मेरी अर्धांगिनी ने हाथ में चाय का प्याला देते हुए कहा -एक जुरुरी गल है जी !
दसो जी ! कि जुरुरी गल बीमार नालों करनी ए ? मैंने कहा-
बड़ी दीदी [ जेठानी ] जी कह रहीं थी के- त्वानु संवेदना दी लोड हैगी कट [कम] हो गई है । जो सेहत वास्ते बहुत जुरुरी है । लेंणी पाऊँगी ।
मुझे भी पत्नी की बात सुनकर चिंता हो गई । उसकी तरफ देख खामोश सोचता रहा ।
तूसी चिंता न करो जी ! हूण चलते हैं बाजार तों कुझ संवेदना खरीद लइए । कोल पैसे कट हैंगे, थोड़ा ही सही ले लेवांगे, होर बाद विच लावागे । पत्नी ने कहा ।
ठीक आखिया जी । मने हाँ में हाँ मिलाई ।चलो थोड़ा टूरना भी हो जावेगा ,थोड़ी संवेदना भी खरीद लेंगे । मैंने कहा ।
और मित्रों हम दोनों ऐसे तैसे बाजार गए और थोड़ी पैसों के मुताबिक संवेदना अपने स्वास्थ्य की लिए ले कर घर आए हैं । सेवन कर रहे हैं । आपके अवलोकन समीक्षा के लिए संवेदना प्रस्तुत भी कर रहे हैं । विषय संवेदना का है तो आभार तो बनाता है जी ।
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कुछ संवेदना मैं बाजार से खरीद लाया हूँ
माडल नंगी थी चित्र रंगों से ढक आया हूँ -
बच्चे के इलाज में किडनी वसूल ली वीर
आराम के लिए नींद की गोली दे आया हूँ
शहर में कुछ बदरंग बस्तियाँ रहें क्यों
शहर से बहुत दूर उन्हें कहीं छोड़ आया हूँ -
माँ बाप से प्यार इतना है कि निः शब्द हूँ
मूर्तियाँ घर में उन्हें अनाथालय छोड़ आया हूँ -
पड़ोसी मेरे धर्म का नहीं कितना बड़ा अनर्थ
दीवार कर ऊंची बहुत रिश्ते तोड़ आया हूँ -
मशालों ने गुमराह कर दिया परछाईयों को
हुत दूर कहीं अँधेरों में उन्हें छोड़ आया हूँ -
उदय वीर सिंह

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