रविवार, 17 सितंबर 2017

परिंदों से खाली बगान रह गए हैं ।

परिंदों से खाली बगान रह गए हैं ।
 टूटे पंख खून के निशान रह गए हैं ।
 बिखरे सपने टूटे अरमान रह गए हैं ।
 बैग मेंकिताबें लिखने के सामान रह गए हैं ।
 भविष्य सँवारने के आलय थे अब
 कत्ल करने के स्थान बन गए हैं ।
तक्षशिला नालंदा में पढ़ने परदेशी आते थे
 हम अपने देश में मेहमान बन गए हैं ।
एक चीख से चीख निकल जाती थी
वो कितना चीखा होगा वक्ते कत्ल
समझा जिनको मंदिर शमशान हो गए हैं-
उदय वीर सिंह

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