रविवार, 3 दिसंबर 2017

वादों में निवाला भेज दिया

सूरज को काला कह दिया
हर घर को उजाला कह दिया
असमर्थ हुए पीड़ा गहरी
जंजीरों को माला कह दिया -
छत नहीं है कोई छांव नहीं
खुला गगन का वारिस तन
पत्तों की जिन्हें आगोश मिली
उसको ही शाला कह दिया -
अभी जिसने देखी रेल नहीं
उसे बुलेट ट्रेन पर चढ़ना है
स्वच्छ नीर का सपना है
अंगूरी मधुशाला भेज दिया -
बिलख रहे हैं भूख से बच्चे
असहाय दोज़ख में जीवन है
विकसित देश भी पिछे छूटे
वादों में निवाला भेज दिया -
क्या अर्जित हो क्या निवेश
जीवन स्थिर सब आय गई
रोजी रोटी का अकाल पड़ा
धंधों में ताला जड़ दिया -
शिक्षा उद्योग व्यवसाय हुई
शिक्षित के खाली हाथ पड़े
आकंठ कर्ज के दलदल में जन
प्रबंध निराला कह दिया -

उदय वीर सिंह



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