रविवार, 16 दिसंबर 2018

बे-रोजगार


जन्म लेना उसके बस में नहीं
एक बेरोजगार कई बार मरता है -
चिता तो जलाती है मात्र शरीर
वह पूरे जीवन काल जलता है-
आगे सपनों का बुना संसार
पीछे दायित्वों का अम्बार
सहानुभूतियों का दिव्यांग दर्शन
दरकते विस्वास का घना गुब्बार
अंतहीन सवालों का क्रम निरंतर चलता है -
आशंकाओ दुविधाओं विफलताओं का
एकल प्रवक्ता दैन्यता कुंठा अवसादों का
भुगतना होता है दंड अपराध विहीनता का
अपराधबोध जीवन की मृगमरीचिका का -
उगता है हर सुबह हर शाम ढलता है -
उदय वीर सिंह


3 टिप्‍पणियां:

kuldeep thakur ने कहा…

जय मां हाटेशवरी...
अनेक रचनाएं पढ़ी...
पर आप की रचना पसंद आयी...
हम चाहते हैं इसे अधिक से अधिक लोग पढ़ें...
इस लिये आप की रचना...
दिनांक 18/12/2018
को
पांच लिंकों का आनंद
पर लिंक की गयी है...
इस प्रस्तुति में आप भी सादर आमंत्रित है।

Kailash Sharma ने कहा…

बहुत मार्मिक और सटीक अभिव्यक्ति..

Meena sharma ने कहा…

सही कहा है !!!