बुधवार, 19 जून 2024

कह रहा वक्त ...


 






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कितना कंपित है झूठ का पहाड़ लेकर।

कोशिश पेड़ होने की हाथों में झाड़ लेकर।

उड़ रहा हवाओं से बादलों का रंगमहल

परेशान  है  फरेब, झूठ की आड़ लेकर।

अमन  की  तलाश  में मशालें निकली हैं,

राजा  दहशत  में  है  कोरी दहाड़ लेकर।

मोहब्बत  मुसाफिरों की बरगद मांगती है,

करेंगे  क्या ऊंचा छायाहीन  ताड़ लेकर।

वक्त कह रहा किनारों किश्तियाँ संभालो

डूब जाएंगी बस्तियां नफ़रत कीबाढ़ लेकर

उदय वीर सिंह।

सोमवार, 17 जून 2024

उलझाया मत करो...








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सुलझी  हुई  पहेली  उलझाया  मत  करो।

देखने दो सपने आंखों को रुलाया मतकरो।

पढ़ता  रहेगा  जमाना  पन्ने माजी के श्लोक,

शिलाओं की इबारतों को मिटाया मत करो।

तेरे झूठ से हजारों सच दफ़न हो जाएँगे वीर

बेच कर  जमीर झूठी कसमें खाया मत करो।

बहुत  रोया  है  जमाना तुम्हारे झूठो फरेब से

शराफती शिगाफ़ का फायदा उठाया मतकरो।

बोलो  की  वतन को नाज हो तालिब होने का

चारो तरफ  आईना है कुछ छुपाया मत करो।

उदय वीर सिंह।

गुरुवार, 13 जून 2024

इश्तिहारों ने...


 







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इश्तिहारों  ने सुर सिकंदर बना  दिया।

छोटी सी बावली थी समंदर बना दिया।

अफवाहों  ने  सच  को  झूठ का सदर,

बारीक सी सुई  को  खंजर बना दिया।

दीन की झोपड़ साजिश की नजर लगी

मालिक माफिया जमीं बंजर बना दिया।

भूख  को  तमाशा  शरीर  को  नुमाइश

जरूरत को मस्जिद- मंदिर  बना दिया।

उदय वीर सिंह।