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कितना कंपित है झूठ का पहाड़ लेकर।
कोशिश पेड़ होने की हाथों में झाड़ लेकर।
उड़ रहा हवाओं से बादलों का रंगमहल
परेशान है फरेब, झूठ की आड़ लेकर।
अमन की तलाश में मशालें निकली हैं,
राजा दहशत में है कोरी दहाड़ लेकर।
मोहब्बत मुसाफिरों की बरगद मांगती है,
करेंगे क्या ऊंचा छायाहीन ताड़ लेकर।
वक्त कह रहा किनारों किश्तियाँ संभालो
डूब जाएंगी बस्तियां नफ़रत कीबाढ़ लेकर
उदय वीर सिंह।