हम तो कहते रहे अपनी फरियाद को
अर्ज था जिनसे वो मुंह छिपाते रहे-
कर्ज ,था मर्ज था ,मुफलिसी में जिया ,
मौत को हादसा ,वो बताते रहे -
लिख दिया दर्द की दासतां जब कभी ,
देश द्रोही की गाथा बताते रहे -
हाथ में थी कलम ,रख दी पिस्तौल को
देश प्रेमी को , को द्रोही बताते रहे -
माना दुनियां ने ,जिसको खुदा की तरह ,
खून , गुर्दा , जिगर बेच खाते रहे -
शोध इंसानियत पर तो होते रहे ,
इन्सान से मुंह छिपाते रहे -
उदय वीर सिंह
8 टिप्पणियां:
क्या बात है भाई |
एक और जबरदस्त प्रस्तुति |
बधाई उदयवीर जी ||
हाथ में थी कलम ,रख दी पिस्तौल को
देश प्रेमी को , को द्रोही बताते रहे -
वाह!!!!!बहुत खूब उदय जी,..बधाई
हाथ में थी कलम ,रख दी पिस्तौल को
देश प्रेमी को , को द्रोही बताते रहे -
बहुत खूब ...
बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति!
कर्ज ,था मर्ज था ,मुफलिसी में जिया ,
मौत को हादसा ,वो बताते रहे -
लिख दिया दर्द की दासतां जब कभी ,
देश द्रोही की गाथा बताते रहे -
bahut hi gajab ki gajal ....bahut bahut badhai .
शोध इंसानियत पर तो होते रहे ,
इन्सान से मुंह छिपाते रहे -
गजब..
बहुत जबरदस्त प्रस्तुति,भावपूर्ण सुंदर रचना,...
RESENT POST...काव्यान्जलि ...: तब मधुशाला हम जाते है,...
हाथ में थी कलम ,रख दी पिस्तौल को
देश प्रेमी को , को द्रोही बताते रहे..........
बहुत बढ़िया....
एक टिप्पणी भेजें