अमरता की पौड़ियाँ बनाने का प्रयत्न
आख़िर मौत से, हारना चाहता है कौन
विवशता के नीड़ ,रहना चाहता है कौन
विफलता का स्वाद,चखना चाहता है कौन -
विकलता की स्वांस, मरुस्थल की प्यास ,
शूलों की शैया ,सोना चाहता है कौन -
यत्न अंगारों से हन - हथौड़े का सृजन ,
हथेली पर आग , रखना चाहता है कौन -
विषमता की आग ,वैमनस्यता की राह ,
टूटी हुयी नाव से गुजरना चाहता है कौन ,
शंशय और पीड़ा का आकारहीन क्षितिज ,
उत्सव के आँगन,बसाना चाहता है कौन -
वेदना की बिछी विसात ,सतत शह -मात
विस्थापन की दुन्दुभी बजाना चाहता कौन ,
अभिशप्त सौंदर्य को ,दर्पण तो सहेजता है ,
श्रृंगार बाँहों का बनाना चाहता है कौन -
उदय वीर सिंह
अपेक्षाओं के साथ , आशीष भी मिलती है,
वरना -
ईश्वर को भी शीश, झुकाना चाहता है कौन ?
उदय वीर सिंह
18 टिप्पणियां:
विषमता की आग ,वैमनस्यता की राह ,
टूटी हुयी नाव से गुजरना चाहता है कौन ,
बहुत गहन रचना...
सादर.
अत्यन्त प्रभावी रचना..
वेदना की बिछी विसात ,सतत सह -मात
विस्थापन की दुन्दुभी बजाना चाहता कौन ,
अभिशप्त सौंदर्य को ,दर्पण तो सहेजता है ,
श्रृंगार बाँहों का बनाना चाहता है कौन -
....बहुत सुंदर और सशक्त अभिव्यक्ति...
सही बात है |
शुभकामनाएं |
सुविधाभोगी हो गए हैं हम। किसी समस्या पर सत खपाना चाहता है कौन।
सुविधाभोगी हो गए हैं हम। किसी समस्या पर सत खपाना चाहता है कौन।
हमेशा की तरह उम्दा रचना ... आभार
सत्य वचन!
विषमता की आग ,वैमनस्यता की राह ,
टूटी हुयी नाव से गुजरना चाहता है कौन ,
शंशय और पीड़ा का आकारहीन क्षितिज ,
उत्सव के आँगन,बसाना चाहता है कौन ।
जिंदगी के ताने-बाने में उलझे लोग,
कौन जी पाता है ढंग से यहां ?
बहुत सुन्दर वाह!
आपकी यह ख़ूबसूरत प्रविष्टि कल दिनांक 30-04-2012 को सोमवारीय चर्चामंच-865 पर लिंक की जा रही है। सादर सूचनार्थ
अपेक्षाओं के साथ , आशीष भी मिलती है,
वरना -
ईश्वर को भी शीश, झुकाना चाहता है कौन ?
सच्ची बात. सुंदर भाव.
ईश्वर को भी शीश, झुकाना चाहता है कौन
सच तो यही है भाई जी !
अभिशप्त सौंदर्य को ,दर्पण तो सहेजता है ,
श्रृंगार बाँहों का बनाना चाहता है कौन !
ईश्वर को भी शीश आशीष मिलने के लोभ में नवाया जाता है !
सच ही है !
वेदना की बिछी विसात ,सतत सह -मात
विस्थापन की दुन्दुभी बजाना चाहता कौन ,
अभिशप्त सौंदर्य को ,दर्पण तो सहेजता है ,
श्रृंगार बाँहों का बनाना चाहता है कौन -
बहुत गहन रचना...सच्ची बात. सुंदर भाव.
सादर.
अच्छा लिखा है आपने ..
अन्तह्करण के दार्शनिक प्रश्न, बढ़िया प्रस्तुति.
बहुत सुंदर शब्दों में विषमता को इंगित किया है ... सुंदर रचना
बहुत सुन्दर, लाजवाब
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