गंतव्य मेरे मानस मन में
रुँध पाँवों में जंजीरें थीं
हाथ हमारे कलम हमारी
हर तरफ तनी शमशीरें थीं -
स्तब्ध था मैं प्रारव्ध देख
निज हस्त प्रबल लकीरें थीं -
पुण्य प्रसून मोद की आशा
स्वागत कमान और तीरें थीं -
धूल धूसरित पैबंद बसन मम
वहाँ रत्न जड़ित
तस्वीरें थीं -
भरे राज सिंहासन तन से
अवशेष प्रचुर
सलीबें थीं -
उदय वीर सिंह
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