मदिरालय की पौड़ी तेरी पीड़ा कौन पढ़ेगा।
शिला खड़ी औजार नहीं मूर्ति कौन गढ़ेगा।
बंद पड़े दरवाजों से फ़रियाद लगाने वाले,
संवेदन विस्थापित है वेदन कौन सुनेगा।
भरा नीर ग्रंथालय में,कहते नयन केआंसू ,
लाचारी में स्वर-व्यंजन चिन्तन कौन लिखेगा।
तक्षशिला नालंदा की ईंट गयीं स्मृतियों से,
आत्म-मुग्धता त्याग,सत-पथ कौन वरेगा।
उदय वीर सिंह ।
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