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जो ख़्वाब में नहीं थे इश्तिहारों से आ गए
हमदर्दी के जले ज़ख्म बाजारों से आ गए।
मेरी कमनसीबी को कल सुना रहे थे अपने
आज देखा सुर्खियों में अखबारों से आ गए।
ख़ारों ने जमा रखी हैं जड़ें बसंत के गांव
पतझड़ के अफसाने बहारों से आ गए ।
कितना सूनापन है मेलों में , सबब क्या है
सरगोशियां हैं कि दिन उधारों के आ गए।
अर्थ का गुमनाम हो जाना विस्मित नहीं करता
तालियों के कीर्तिमान शब्दालंकारों से आ गए।
उदय वीर सिंह।
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