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रही सल्तनत फ़रेब तो ईमान भी रहा है।
हैवानियत की सरजमीं इंसान भी रहा है।
कम नहीं हुआ रोज तारों का टूट गिरना,
कहकशां का एक पूराआसमान भी रहा है।
मिटाने के हसरती तूफान भी चलते रहे,
बर्बादियों के बीच रोशन मकान भी रहा है।
मुंतजिर यूं ही नहीं पत्थरों के बीच कोई
कहीं दान के प्रकाश में प्रतिदान भी रहा है।
आलोचना के कर-कमल कीच में खिलते रहे
अपमान के उर्वर धरातल मान भी रहा है।
हिन्दू - मुसलमान की दीवारें बहुत ऊंची हईं,
इंसानियत की शान में सतनाम भी रहा है।
उदय वीर सिंह।
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