रविवार, 19 जनवरी 2020

इश्तिहारों में कुछ और है ,बाजारों में कुछ और ...

इश्तिहारों में कुछ और है , बाजारों में कुछ और,
शाख शज़र वीरान हुए ,माली कहता कुछ और -
माली कहता कुछ और गगन में घर बहुत बनवाये
जाकर बसों आनंद मोद ,जब धरा पसंद न आये -
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ओ.डी.एफ.हो गया है देश ,गंगा में अमृत धार बहे ,
भूखमरी का ऊँचा स्तर,महंगाई का ऊँचा ज्वार रहे -
महंगाई का उंचा ज्वार रहे मिट जाएँ याचन के हाथ
खंड प्रलय की बात हो ना बाजेगी बांसुरी न रहेगा बांस-
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जितनी शिक्षा महँगी होगी,उतनी गुणवत्ता आएगी
सबको शिक्षा ठीक नहीं,सिर्फ धनवानों को मिल पायेगी -
सिर्फ धनवानों को मिल पायेगी ,देश उज्वल होगा ,
सिर झुका रहेगा सम्मुख जनमानस जितना निर्बल होगा -
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जब निर्धन के घर राम रहेंगे, रामराज आ जायेगा
मौन रहा इस लोक में प्यारे परलोक मोक्ष पा जायेगा -
परलोक मोक्ष पा जायेगा ,पीछे स्वजन सुख पाएंगे
मौलिक अधिकार अपव्यय हैं ,जो आये सो जायेंगे -
उदय वीर सिंह

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