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कहकशाँ में रह गयी आवाज़ तन्हां आपकी ।
बुलंदियों की दौड़ में परवाज़ तन्हा आपकी।
देखा नहीं उनकी तरफ जो मुंतजिर थे आपके,
मुंतजिर हैं आप,कितनी आंख तन्हा आपकी।
हवा चली तूफान होकर बस्तियां बर्बाद हैं,
आपका भी घर उड़ा हर बात तन्हा आपकी।
घर छोड़कर शामिल हुए भीड़ की आगोश में,
दी भीड़ ने पत्थरों की सौगात तन्हां आपकी।
उदय वीर सिंह ।
1 टिप्पणी:
आपका भी घर उड़ा हर बात तन्हा आपकी।
घर छोड़कर शामिल हुए भीड़ की आगोश में,
दी भीड़ ने पत्थरों की सौगात तन्हां आपकी।/////
बहुत बढ़िया वीर जी | क्या गजल लिखी आपने | मन को छू गयी | सादर
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