रास्ते तंग हैं , आग ही आग है,
बेबसी बो रहा आदमी के लिए।
सूर तुलसी के घर - द्वार ही बंद हैं,
जायसी ,मीर की शायरी के लिए।
गंगा यमुना की धारा किधर जा रहीं,
आदमी कुफ़्र है आदमी के लिए।
थे किताबों के आलिम कहाँ खो गए,
फ़र्ज़ गुमनाम हैं, आदमी के लिए।
शहर के शहर वहशियों के हुए,
मुख़्तसर आदमी, आदमी के लिये ।
उदय वीर सिंह।
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