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अपनी लिखो मुकद्दर,
लिखता रहा है कोई।
मालिक हो अपने घर के
रहता रहा है कोई।
बेजुबां नहीं हो तुम,
बेजुबां से हो गए हो,
खोलो भी अब जुबां को
कहता रहा है कोई ।
हालात से है वाकिफ़
दर्दे सफ़र तुम्हारा,
अपनी कहो जुबानी ,
कहता रहा है कोई।
ये बे-अमन की आग
बोई है किसने वाइज,
जलना था इसमें किसको,
जलता रहा है कोई।
उदय वीर सिंह।
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