नसीहत में हम थे ,
सियासत में तुम थे -
हुयी भूल हमसे ,
मुहब्बत में हम थे -
लिखी दासता जिनको
पढ़ना न चाहा,
दामन में मेरे , कांटे
क्या कम थे-
आँखों में ले ली
जनम की उदासी,
ज़माने ने दे दी ,
जो ज़माने के गम थे -
मेरी ही लिखी शायरी
चल रही थी
दाद , दे न सके,
कि शराफत में हम थे -
वो कहते रहे , हम
भी सुनते रहे ,
सुना न सके कितने
मेरे सितम थे-
हसरत का सावन
बरसता रहा ,
पेंग , झूलों को देकर
खड़े , दूर हम थे-
उदय वीर सिंह
12 टिप्पणियां:
वाह वाह....
बहुत खूबसूरत.......
सहज,सरल और सीधे दिल में उतरती.....
सादर
अनु
बहुत खूब, हम क्या न रहे, हम क्यों न रहे?
हसरत का सावन
बरसता रहा ,
पेंग , झूलों को देकर
खड़े , दूर हम थे-
वाह बहुत सुंदर
@मेरी ही लिखी शायरी चल रही थी
दाद दे न सके कि शराफत में हम थे
- ऐसा भी होता है, शराफ़त का ज़माना कहाँ है!
बहुत सुन्दर प्रस्तुति |
समझ समझ की बात है-
चलो ऐसा ही सही-
हसरत का सावन
बरसता रहा ,
पेंग , झूलों को देकर
खड़े , दूर हम थे-
नसीहत में हम थे ,
सियासत में तुम थे -
हुयी भूल हमसे ,
मुहब्बत में हम थे -
उदयवीर जी का जवाब नहीं बहुत सुंदर !!
हसरत का सावन, हरा ही हरा है।
मुहब्बत का इसमें, समन्दर भरा है।।
हसरत का सावन, हरा ही हरा है।
मुहब्बत का इसमें, समन्दर भरा है।।
मेरी ही लिखी शायरी
चल रही थी
दाद , दे न सके,
कि शराफत में हम थे -
वाह वाह क्या बात है
हसरत का सावन
बरसता रहा ,
पेंग , झूलों को देकर
खड़े , दूर हम थे-
लाजबाब
वाह क्या बात है, अति सुन्दर
(अरुन शर्मा = arunsblog.in)
नसीहत में हम थे ,
सियासत में तुम थे -
हुयी भूल हमसे ,
मुहब्बत में हम थे -
बहुत बहुत सुन्दर :-)
आँखों में ले ली
जनम की उदासी,
ज़माने ने दे दी ,
जो ज़माने के गम थे -
सुंदर ..
बेहतरीन ...
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