बयान [स्टेटमेंट ]
{एक लघु कथा }
उसे अंदर ले चलो ,स्टेटमेंट लेना होगा | महिला जज ने अर्दली प्रेम सिंह को निर्देश दिया |
चलो जी अंदर | अर्दली ने बाला को इशारे से कहा |
अब अंदर सोफे पर जज साहिबा विराजमान थीं ,सामने पीड़िता | आरम्भ होता है बयान [स्टेटमेंट ]का सिलसिला |
आप भी तो एक औरत हो मैडम जी ! आप कैसे मेरा स्टेमेंट [स्टेटमेंट ] लोगे ? गांव से आई दुष्कर्म की शिकार बाला- {लालपरी} ने सिर के आँचल को सम्हालते हुए महिला जज से नीर बहती आँखों, जज साहिबा के प्रश्न से पहले अपना शंसय भरा प्रश्न किया था |
मैं समझी नहीं ? दस्तावेजों के मुताबिक तुम्हारा नाम लालपरी है न ? जज साहिबा ने चश्में को उतारते हुए तिरछे देखते पूछा |
जी ! मैडम मेरा नाम लालपरी बापू का नाम भरत साह ,साकिम -खारगुन, तहसील - बेणी थाना - मौना ,जिला-महबूब नगर | एक साँस में बोल गयी |
हाँ सो तो ठीक है ,ये सब दस्तावेजों में है | तूने कहा मैं भी औरत हूँ इस लिए स्टेटमेंट नहीं ले सकती जज साहिबा ने पुनः दोहराया |
जी.. जी .. मैडम ! मुझे नहीं मालूम आप भी ..| हताश डरी लालपरी ने कहा |
लालपरी ! डरो नहीं अपना बयान कलमवद्ध कराओ .स्टेटमेंट दो , हम तुम्हारे साथ हैं जज साहिबा ने
रहस्यमयी स्थिति को कुछ समझते हुए कहा |
मैडम बयान भी ले लो स्टेमेंट भी ले लो | पर अब मैं स्टेमेंट देने लायक नहीं हूँ सबने लिया स्टेमेंट किसी ने नहीं छोड़ा जानवर बन गए एक मजबूर इंसान के साथ, जांच के नाम पर, मुझे निआउ [इंसाफ ] देने के नाम पर |
मुझे अब जहर दे दो ,फांसी दे दो ,अब मत लो स्टेमेंट | अब नहीं जीना चाहती | तुम नहीं समझ सकते की मेरे माँ -बापू पर क्या बीतती होगी ,मुझ पर क्या बीतती है |
बापू रोता है कहता है- अब कौन थामेगा मेरी लालपरी का हाथ | ये लगा कलंक कहाँ मिटेगा अब ...बिलबिला उठी थी मेज पर सिर रख कर लालपरी |
जज साहिबा ने सम्हालते हुए एक गिलास पानी अपने हाथों दे सच बताने का आग्रह किया |
मैडम जी ! मेरे बापू ने माँ की दवाई के लिए गांव के ही हरी चंद से ब्याज पर पैसे लिए जो अभी चुकता नहीं हो सका है | आठ हजार चुकता करने के बाद भी उसका चार हजार ,चार साल में सोलह हजार हो गया
| रोज पैसों के लिए धमकाता था | एक दिन माँ - बापू खेत में थे ,शैतान ने मुझे अकेला देख मेरे साथ बुरा काम किया और कहीं कहने पर मुझे व मेरे माँ- बापू को जान से मार देने की धमकी दे गया |
माँ के घर आने पर मैंने माँ से सारी आप बीती बताई | माँ सन्न रह गयी | माँ ने बापू को मेरी दास्तान बताई | मुझे ले माँ- बापू सरपंच के पास गए |
जाँच और स्टेमेंट [बयान ]जरुरी है, कह उसने अकेले एक कमरे में लेजा स्टेमेंट लिया | थाने पर वह हम लोगों को साथ ले गया,वहां मुंशी , दिवान से सरपंच ने कुछ बात किया और चला आया | थाने में मुंशी, दिवान व दरोगा ने स्टेमेंट लिया, तमाम शर्मनाक सवाल- जबाब करते रहे, इसे जाँच व कार्यवाही समझ हम चुप-चाप इसे सहते रहे ,की न्याय मिलेगा ,दोषी को सजा मिलेगी |
हद तब हो गयी अस्पताल गए वहां भी कम्पाउण्डर व डाक्टर ने स्टेमेंट लिया | कैसे - कैसे जाँच किया बताना मुश्किल ।
हम क्या करें कहाँ जाये | जो काम उस सूदखोर ने किया वही स्टेमेंट के नाम पर सभी ने किया ... | मैडम अब मेरी शरीर और आत्मा साथ नहीं देते .. .फफक कर रो पड़ी थी बाला लालपरी |
बाहर मौसम में नमीं थी बादल घिरे हुए थे कब बरस जायेगें कहा नहीं जा सकता |,
जज साहिबा के पेशानी पर बल थे |
प्रेम सिंह ! . .. मैडम ने अर्दली प्रेमसिंह को आवाज दी |
जी हुजूर ! प्रेम सिंह अंदर दाखिल हुआ
बाहर बैठे इनके माता-पिता को अंदर बुलाओ |
जी अच्छा | प्रेम सिंह बाहर चला गया |
अंदर मुंसफ गंभीर मुद्रा में और फरियादी हाथ जोड़े एक दूसरे को आशा भरी निगाह से देख रहे थे सभी चुप थे | मौन बोल रहा था | शायद अब आगे बयान या ...की आवश्यकता नहीं थी |
बाहर निकल लालपरी माँ से लिपट रो पड़ी थी |
माँ जन्मते ही तूने मुझे संखिया [जहर ] दे दिया होता ,ये दिन न देखने पड़ते,तू कहती हैं न कि गरीब मजलूम की बेटी का कोई सगा नहीं .....|
अब कौन किसको क्या देगा शायद तारीखें बताएंगी ,दो दिन बाद अखबारों में खबर थी बेटी संग माँ -बाप गंग-नहर में डूब मरे, अभी तक कारण पता नहीं चल सका है |
- उदय वीर सिंह
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