सोमवार, 9 जून 2014

दस ... तक [THE FEAR]



दस ... तक [THE FEAR]

.....  दस्तक सुन कर यशोदा देवी ने यह सोच कर की शायद बेटा कुंदन दवा लेकर आया है ,दरवाजा खोलने को आगे बढ़ी | दरवाजे पर लगातार दस्तक हो रही थी |
  अरे ! बाबा खोल रही हूँ ,यशोदा देवी ने ऊँची आवाज में कहा |
 दरवाजा खोला तो पाया की सामने पुलिस के तीन चार जवान बड़ी मुस्तैदी से हथियार सम्हाले आक्रामक मुद्रा में खड़े हैं | बाहर धुंधली सी स्ट्रीट लाईट जल रही हैं कुछ लोग दूर से अपने घरों से, आई पुलिस को देख रहे हैं  |         क्या बात है साहब जी ! आप लोग मेरे घर इतनी रात गए | क्या गुनाह हो गया हमसे ? आशंका भरे मन से कई सवाल मुंह से अनायास निकल गए |
     चुप बुढ़िया ! बकवास बंद कर तेरे घर की  तलाशी  लेनी है |  और कौन-कौन है तेरे घर में ? एक पुलिस के जवान ने डाँटते हुए पूछा |
 शेष जवान भी घर में दाखिल हो इधर-उधर देखने  सामान इधर उधर फेंकने ,उलटने- पलटने लगे |
   मैं हूँ साहब ,मेरी बेटी जो बीमार है ,उसकी दवा लेने मेरा बेटा कुंदन शहर गया है आता ही होगा  हम उसी की राह देख रहे हैं | हमें लगा की वही आया है |
यशोदा देवी ने बताया |
   क्या हुआ अम्मा ? शोर - गुल सुन बेटी प्रतिमा
छत से नीचे आई |
किसको तलाश रहे हैं आप लोग ? प्रतिमा ने पूछा .
 चुप रह छोकरी ! तेरा आतंकवादी भाई कहाँ है ?
दवा लेने गया है साहब मैंने बताया तो आपको , बीच में टोक कर माँ यशोदा देवी ने बताया |
  बुढ़िया ! सच सच बता वरना तेरी खैर नहीं और तेरी इस छोरी का वो हाल करेंगे की ये कई जनम भूल न पायेगी .
    ना साहब ! ऐसा न करना , हम लोगों ने कोई गुनाह नहीं किया है ,हमारा किसी से कोई दुश्मनी या ताल्लुक नहीं है हमारे पति एक ईमानदार शिक्षक थे ,उनके स्वर्गवास के बाद  उनकी पेंसन से हमारा बसर होता है साहब ! बेटी प्राइवेट स्कुल में पढ़ाती है ,बेटा कामर्स के दूसरे साल में है ,कभी किसी से उची आवाज में वो बात नहीं करता है | यकीन करो साहब! आप को कोई गलतफहमी हुई है | यशोदा देवी पैर पकड़ गिड़गिड़ाते हुए कहा |
     बुढ़िया ज्यादा चालाकी ना दिखा ,तेरा बेटा आज शहर में हुए बम विस्फोट के आरोपियों के साथ सी सी कैमरे में देखा गया है | और तूं अपने को हरिश्चंद्र की औलाद बता रही है ,गर्दन पकड़ झंझोड़ते हुए जवान ने कहा |
   सर ! और कुछ नहीं मिला ,इसे छोडो लड़की को ले चलो ,जब दस जवान इस लड़की की मालिस करेंगे ये अपने आप सब बता देंगे | दूसरे जवान ने बेटी प्रतिमा को काबू करते हुए बोला |
 पुलिस के जवान ,प्रतिमा को ले मां यशोदा को बिलखता छोड़ चले गए | माँ चिल्लाती रही लोग तमाशबीन बने रहे ,यशोदा की चिल्लाहट व रुदन से काफी देर बाद मोहल्ले वाले इकठे हुए ,आपस में कानाफूसी कर रहे  थे |
     कोई कह रहा था टीवी पर खबर मैंने देखी है, मेडिकल स्टोर के सीसी कैमरे में कुंदन भी दिख रहा था संदिग्ध आतंकवादियों के साथ में , जो एक मेडिकल स्टोर से कुछ लोगों के साथ अपनी साईकल में कुछ सामान लिए निकल रहा है ,क्या पता कुछ भी संभव है  साईकल जो विस्फोट स्थल से मिली है वह कुंदन की बताई जा रही है | क्या कहा जाये ,वैसे कुंदन से यह आशा नहीं की जा सकती |
अरे किसी के दिल में क्या है कौन जनता है ? एक अन्य व्यक्ति का कहना था | कुछ एक पडोसी साथ रह गए ,शेष पल्ला झाड़ निकल लिए |
एक माँ दिल पर पत्थर रख सब सहन करती रही, सुनती रही अपने बच्चे की, अपनी तईं तलाश करती रही सहायता के लिए जहाँ- जहाँ जा सकती थी गयी | पर सहायता संवेदना की जगह मायूसी ही मिली |
        एक प्यारा एकलौता होनहार बेटा आतंकी घोषित हो गया | बेटी दरिंदों के हाथ बंधक किस हाल में होगी सोचकर हृदय काँप उठता | दो दिन हो गए एक अन्न का टुकड़ा भी मुंह में नहीं गया | कुछ सगे सम्बन्धी आये जितना प्रयास कर सकते थे किये |
     करीब रात के नौ बजने वाले है, आसमान में आवारा बादलों की आमद के साथ नमीं है ,बूंदा बंदी की भी संभावना है रह - रह कर विजली भी अपना रौद्र रूप दिखा जा रही है ,सड़क पर आवाजाही भी कम है कुंदन लंगड़ाते हुए अचानक घर में दाखिल हुआ ,पैर में पट्टी बंधी है |      तूं कहाँ था !  कुंदन को  देख मां धाह मार कर रो पड़ी |      कुछ मत पूछ माँ ! अब ठीक हूँ ,एक भलेमानस पुलिस वाले की सहायता से उसकी मोटर-सायकिल पर घर पहुंचा हूँ ,बड़ा नेकदिल इंसान था माँ कुंदन बोला |
     मैं मेडिकल स्टोर से दवा ले रहा था , तीन चार लोग थे कुछ दवा खरीद, वो मेरे साथ हो लिए उनके साथ कुछ सामान था ,वे मेरी साईकिल पर रख बात- चित करते निकले ,सड़क पर रोशनी नहीं थी आती जाती गाड़ियों की रोशनी ही रास्ता दिखाती, मुझे लगा की वो मेरे शहर अकबरपुर से परिचित नहीं हैं ,मैंने उन्हें रास्ता बताया   एक ने मेरी साईकिल अपने हाथ में ली और थोड़ा आगे निकल गया | मुझे कुछ असामान्य नहीं लगा |
  मैंने कहा मुझे इधर जाना है, विष्णु मंदिर और मेन मार्किट आगे है ,अब साईकिल मुझे दे दें मुझे घर पहुँचाने में देर होगी |
       चलना हो तो साथ चलिए वरना आप जाएँ साईकल हम भेज देंगे | एक सभ्य सा दिखता आदमी बोला |  अचानक मेरे पैर में कुछ लगा मैं गिर पड़ा ,दर्द और खून से मैं बिलबिला गया ,किस ने मुझे अस्पताल पहुँचाया पता नहीं , पैर में गोली छीलते हुए निकल गयी थी |आराम मिलते मैं घर पहुंचा  हूँ मुझे आप की प्रतिमा दी की चिंता थी आप लोग परेशान होगे |दवा साईकल में रह गयी ,फोन भी कहीं गिर गया |
 बेटे ! पुलिस वाले उसी दिन देर रात घर आये तुम्हें ढूंढते तुम्हें ना पा तेरी बहन को उठा ले गए हैं  | किस हाल में होगी मेरी बेटी ,उनका इरादा अच्छा नहीं लगा मां ने रोते हुए बताया |  
मैं देखता हूँ माँ ,मुझे एक गिलास पानी दे ,भूख भी है क्या -क्या दिन देखने होंगे ,मायूस आवाज में कुंदन
बोला |  
   दस्तक दर दस्तक दरवाजे पर होने लगी थी |
मैं देखती हूँ कुंदन ! एक हाथ में पानी का गिलास लिए दूसरे से दरवाजा खोला ,देखा तो सामने पुलिस  बिना पूछे धक्का देते हुए पुलिस के जवान अंदर आ गए |
कहाँ छुपा रखा है अपने आतंकवादी बेटे को ? कड़क आवाज में एक ने इधर- उधर देख पूछा ।शेष अन्य कमरों में चले गए ।
मेरा बेटा आतंकवादी नहीं है, ये यहीं बैठा है अभी अभी आया  है ,घायल है आतंकवादियों ने इसे गोली मारी इसकी साईकल ले चले गए ,इसे मरने को छोड़ | और अब तुम सब इसके पीछे पड़े हो, दयावान की जगह शैतान बनकर ।
मेरी बेटी कहाँ है ? अरे तुम लोग भी तो बेटे -बेटी वाले हो ? क्या तुम लोगों का दिल नहीं पसीजता ? न्याय क्यों नहीं करते ?
चुप बुढ़िया ! हमें अपना काम करने दो । वर्दीधारी की रौबदार आवाज गूंजी ।  
अगर मेरे बच्चों को कुछ हो गया तो मैं जान दे दूंगी  |ईश्वर तुम लोगों को कभी माफ़ नहीं करेगा । यशोदा देवी का करुण क्रंदन गूंज उठा ।
हवलदार इसे हथियार की पहचान कराओ ! वर्दीधारियों में से एक ने कहा ।
पहचान ये क्या है ? एक ने अपनी पिस्तौल कुंदन के हाथ देते हुए कहा।
सर ! ये हम ले कर क्या करेंगे कुंदन घबराया हुआ बोला ।
ले पकड़ इसे ! गोली तो तूं चलना जानता है ना ?
नहीं सर ! कुंदन ने भोलेपन से जबाब दिया ।
तो तूं निर्दोष बचना चाहता है ? वर्दीधारियों में से एक ने कहा ।
मैंने कुछ नहीं किया है सर ! कुंदन ने कहा। तब मैं दस तक गिनती गिनूंगा  ,तूं मेरे सामने से जहाँ चाहता है भाग जा ..... पीछे मुड़ कर देखना भी नहीं ।
माँ -बेटे आवाक थे |
  साहब ! कहीं मत भेजो मेरे बेटे को ,देखो एक गिलास पानी भी नहीं पी पाया है .इसने कोई अपराध नहीं किया है ।
 इसी लिए तो कहा रहा हूँ ,बचना चाहता है तो भाग जा पुलिस वाले साहब ने कहा ।
कुंदन, मां की तरफ डबडबायी आँखों देखा ,अभी मां के हाथों से पानी का गिलास भी नहीं पी पाया था |
साहब कह रहे हैं तो बेटा चला जा , प्रतिमा भी आ जाएगी ,तूं चिंता ना कर | माँ की ममता ने किसी रहस्य को दरकिनार कर दिया |
कुंदन भारी मन से साहब के निर्देश पर ना चाहते हुए भी जाने को विवस था |,माँ और बहन का जीवन जेहन में कौंध रहा था ।
हाथ में पिस्तौल लिए लड़खड़ाता घर से बाहर भागने लगा ,अभी नौ तक गिनती पूरी नहीं हुई थी ,पुलिस के दूसरे जवान ने गोली दाग दी |  
   दस मिनट के भीतर शहर के हुक्मरानों व प्रिंट मिडिया, इलेक्ट्रानिक मिडिया के सम्बाददाताओं का हुजूम इज्जतनगर मोहल्ले में उमड़ आया ,आतंकवादी की लाश को कैमरों में कैद किया जा रहा था |
न्यूज चैनलों पर निरंतर खबर प्रसारित हो रही थी ,अकबरपुर बम ब्लास्ट का आरोपी एक खूंखार आतंकवादी मुठभेड़ में मारा गया | उसके शेष साथियों की सरगर्मी से तलाश जारी है ,खबर है की मारे गए आतंकी की बहन भी आतंकवाद से जुडी हुई है ,जिसका अभी कोई सुराग नहीं मिला है |  
   न्याय व विश्लेषण की त्वरित गति का नायाब नमूना | जय किसकी पराजय किसकी एक अबूझ पहेली बन कर रह गयी है |

उदय वीर सिंह


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