प्रेम का पगोढ़ा है
स्नेह की सांकल भी है-
धूप की छाजन है
आशीष का आँचल भी है -
आघातों का भंजक है
संवेदनाओं का सम्बल भी है-
पीड़ा में प्रकाश पुंज है
वेदनाओं का नाशक भी है -
डूबती निगाहों की ठौर
सागर में किश्ती
आशाओं का आँगन भी है -
उँगलियों को आधार,
संस्कार को आकार देता
पैरों का दिशा वाचक भी है -
जब भी आँखे नम हुईं
हाथ सिर पर पहले दिया
देने को खुशियां स्नेह सारा
वो देने वाला याचक भी है -
सह लिया घावों को अपने
रो लिया जब बोझिल हुआ
न देख सका आंसू कभी
कभी बसंत कभी सावन भी है-
टुकड़ों में चाहे बँट गया
हर आपदा से जूझता
माँगा नहीं सिला कभी
जीवन का अमृत आयन भी है -
जब लौट आती आश
टकरा प्रस्तर भित्तियों से
वात्सल्य की खुली बाहें लिए
पिता संतान का शुभालय भी है-
आभार है आशीष है
प्रबोध व प्रतिमान है
कह सका न दर्द अपना
त्याग ही प्रतिदान है -
सुखी रहो फूलो -फलो
ये शब्द उच्चरित होते रहे
संतान हित जिए मरे ये
एक पिता का ख्याल भी है -
- उदय वीर सिंह
6 टिप्पणियां:
बहुत सुन्दर प्रस्तुति।
--
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा आज सोमवार (16-06-2014) को "जिसके बाबूजी वृद्धाश्रम में.. है सबसे बेईमान वही." (चर्चा मंच-1645) पर भी है।
--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
बहुत सुन्दर प्रस्तुति।
--
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा आज सोमवार (16-06-2014) को "जिसके बाबूजी वृद्धाश्रम में.. है सबसे बेईमान वही." (चर्चा मंच-1645) पर भी है।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
बहुत सुन्दर प्रस्तुति।
--
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा आज सोमवार (16-06-2014) को "जिसके बाबूजी वृद्धाश्रम में.. है सबसे बेईमान वही." (चर्चा मंच-1645) पर भी है।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
सुन्दर सन्देश पितृ दिवस पर...
सुंदर प्रस्तुति पितृदिवस पर।
बहुत सुन्दर प्रस्तुति।
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