शनिवार, 27 सितंबर 2014

अंधों से हिजाब कर लो-


 




 ख्वाबों को आँखों से कभी आजाद कर लो
उजड़ा  हुआ चमन है फिर आबाद कर लो -

दौर लौटा कभी , बन के माजी जो गया
क्या मुनासिब है ,अंधों से हिजाब कर लो-

ये तो मालूम है उदय के चाँद तेरा ही नहीं
ये अच्छा नहीं की रातें तुम खराब कर लो -

टूट  जाता   है  दिल    आईना एक  दिन
ये मुनासिब नहीं की खुद को नाराज कर लो
  
उदय वीर सिंह 

बुधवार, 24 सितंबर 2014

तेरी चाहत में अपना मैं रब देखता हूँ -

इबादत का जब  भी  सबब  देखता हूँ
तेरी चाहत में अपना मैं रब देखता हूँ -

नेमत  है  रब   की  ये  मुकद्दर हमारा
उलफत की निगाहों  से सब देखता हूँ -

गुजरे  जब  गलियों  से  रहबर हमारे
लौट आने  की  उनकी  डगर देखता हूँ

सुरमई शाम की हो गुलजार महफिल
मसर्रत -ए - शब  की  सहर  देखता हूँ -
  

रविवार, 21 सितंबर 2014

जिंदगी के हर मोड़ पर ऐ दोस्त

मिलती है हर किसी से वफ़ा का ख्वाब लेकर ,    
ये मालूम है जफ़ा करेगी ,
मोहब्बत फिर भी है तुमसे जिंदगी-
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ये करवटों जैसी नहीं है के बदल ली जाये
एक बार  ही लेती है आगोश मे    
अफ़साने  हजार  लेकर   जिंदगी -
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 जिंदगी के हर मोड़ पर ऐ दोस्त 
जमात-ए-रकीब पाया 
एक तेरा ही साया मुक़द्दस जो अपने  करीब पाया   -
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मैंने जब जब देखा शिवाले की तरफ 
कसम ओ  वादे आये 
जब भी देखा घर की तरफ माँ बहुत याद आई ... 
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शनिवार, 20 सितंबर 2014

जरा कम बोलती हैं -


जरा  कम  बोलती हैं -

दरकती  पलों  में , जुबा  खोलती हैं
दिल की  दीवारें  जरा  कम  बोलती हैं -

 भूल जाता जमाना है जख्मों को देकर
दिया कब है किसने, ये नहीं भूलतीं हैं-

यादों  के  घर से  जब  निकली बारातें
दुल्हन  की  डोली  के  पट  खोलती  हैं -

जमाने की आँखों ने जो मंजर दिखाये
भावना की तराजू पर  रख तोलती  हैं  -

- उदय वीर सिंह 



   

    

बुधवार, 17 सितंबर 2014

वेदना को प्यार दे दो -


पथ प्रतीक्षित कामना  के
प्रीत को आकार दे दो -
मधु अधर, मृदु कंठ में है
मद गीत को आभार दे दो -
हो सुवासित नभ क्षितिज  नित
बीज को आधार दे दो -
क्लांत मन अवसाद त्यागे
वेदना को प्यार दे दो -
प्रमाद की विष ग्रन्थियां तज
पथ विषम सहकार दे दो -
सज उठेंगे नैन सूने
स्वप्नों का संसार दे दो -

- उदय वीर सिंह

रविवार, 14 सितंबर 2014

अरि गोरी का अनुचर निकला -

वर  पृथ्वीराज  का    देव  -  कवि 
अरि  गोरी  का  अनुचर  निकला -
कुछ मनसबदार अकबरी जाग्रत हैं 
जिसे समझा रत्न  पत्थर  निकला -
माना   संसारी  ,   तो  कामी क्रोधी 
सन्यासी      तो     बद्द्तर  निकला -
वसन    गाँठने     की    सूरत  थी
सुई   की   जगह   नस्तर  निकला -
राष्ट्र , प्रेम   का    सजग  अध्येता 
राष्ट्र -  द्रोह    का    घर    निकला -
श्रद्धा  संस्कृति  आस्था  का  नेता
प्रतिकूल    माण  का स्वर निकला - 
राष्ट्र -  गीत    का  परम  सनेही    
संकल्प शक्ति से कमतर निकला -


- उदय वीर सिंह 






शुक्रवार, 12 सितंबर 2014

दिव्य -दृष्टि में घोर अंधरे ....


कब तक रुकते कर में आंसू
जब बह निकले दो नयनों से-
भींगा 
 आँचल  वेदन- बदली 
कब  आश  पूरी  है सपनों से -

जब   चाहा  सावन  के झूले 

फुहारी   ऋतू ,  अंगार  हुयी
दानव -ज्वाल बुझा कब कैसे
बिखरी   ओस   की  बूंदों  से-
मानिंद  कांच,  उर  टुटा  तो
थे   हाथ  पराये , पत्थर  भी
बेड़ी   डूबीं   मजधार    भंवर
पतवारहीन   हो   अपनों  से -
चन्दन -वन  की राह अकेली
विष - दंश  मिलेंगे  ज्ञात रहा
हैं दिव्य -दृष्टि में  घोर अंधरे
गंतव्य  मिला  तो   अंधों  से -

उदय वीर सिंह

मंगलवार, 9 सितंबर 2014

मजहबी किश्तियाँ हैं -


मेरे मुल्क में कौन रहता है .मुझे नहीं मालूम
इतना मालूम हैयहाँ फिरके वालों की बस्तियां हैं -

इंसान और इंसानियत कहीं टूर गए दबे पांव
उन्माद के समंदर में आबाद मजहबी किश्तियाँ हैं - 

उदय गम और ख़ुशी भी कितने बदले बदले से हैं 
किसी की बरबादियों में बसती किसी की खुशियां हैं- 

आग तो आग है जब जलती है तो जला देती है
काजी- काफिर के मसलों में जली तमाम सदियाँ हैं -

- उदय वीर सिंह

शुक्रवार, 5 सितंबर 2014

गुरु - शिक्षक !


शिक्षक दिवस की पूर्व संध्या पर सदैव स्मरणीय
 गुरु -शिक्षकों का शत-शत  वंदन ..
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गुरु - शिक्षक !
श्रेष्ठ है ,श्रद्धा है 
सुजान है ,सम्मान है 
भक्ति,प्रेरणा, आशा है ,
अभिमान है 
दीप है ,इससे प्रकाशित होते हैं दीप कितने   
मूल्य है मूल्यवान है 
उत्तर है अनंत प्रश्नों का 
स्रोत है ज्ञान पुंजों का ,
चराचर का संज्ञान है,
सृजन है संवेदना है 
बसंत है विस्वास का ,
मरूभूमि का नखलिस्तान है ...
वेदना पर विजय है , 
राग है प्रेम व आस्था का 
पावन है ,आचमन है संस्कारों का ,
समर्पण का प्रतिदान है 
सुधा कलश है 
माली है सुरमयी वीथियों का, 
सीढ़ी है सफलताओं की ,
क्षितिज है बीज का 
वल्लरी का आसमान है ..
शिक्षा का पात्र
शिक्षक महान है .......

- उदय वीर सिंह  




बुधवार, 3 सितंबर 2014

अवाम के जानिब.....


फतवे  और  फरमान  तो हैं आवाम के जानिब 
दंगे ओ फसाद हैं हिन्दू- मुसलमान के जानिब -

कोई भी लक्षमन -रेखा फतवेदारों के लिए नहीं 
सारे नियम कानून हैं मजलूम इंसान के जानिब-

गोंद में पोते -पोतियां है गैर मजहबी दामाद के
संस्कृति संस्कार की बातें हैं अवाम के जानिब-
   
सेक्यूलरिज्म शब्द गवारा नहीं मंचों पर जिन्हें 
घर खुला  मैदान  है बिधर्मी मेहमान के जानिब -  

-उदय वीर सिंह